मन गिलहरी
लिली मित्रा
प्रीत हरीतिमा लिए
अनोखी
साजन तुम्हरे मन की
गलियाँ . . .।
नरम घास का बिछा
ग़लीचा
स्नेह भरित जूही की
कलियाँ . . .
साजन तुम्हरे मन की
गलियाँ . . .।
बना गिलहरी सा
मन मेरा . . .
फुदक रहा हर डाल
पात पर . . .
अधिकार समझ मैं
फिरूँ निडर सी
बैठ शाख़ पर तोड़ूँ
फलियाँ . . .
साजन तुम्हरे मन की
गलियाँ . . .।
क्या तुमने सहलाया
मुझको . . .?
पीठ पे उभरी स्पर्श
धारियाँ . . .
गझिन पूछ लहराकर
भागूँ,
लचक गई हैं लाज से
डलियाँ . . .
साजन तुम्हरे मन की
गलियाँ . . .।
प्रेम तुम्हारा पाकर
प्रीतम,
चपल भईं मेरी स्वर-
ध्वनियाँ . . .
दिखने में मैं लगती
भोली . . .
तुम संग जागी मन की
रंग-रलियाँ . . .
साजन तुम्हरे मन की
गलियाँ . . .।