मैं और तुम
लिली मित्रा
नीलाभ का
विस्तृत विस्तार
और तुम . . .
जुग सहस्र योजन पर
दमकता सूर्य
और तुम . . .
अदृश्य
प्रवाहित मंद,
कभी प्रचंड बयार
और तुम . . .
चंद्र की षोड़शी
कलाओं से निखरता
रात्रि का ललाट
और तुम . . .
नित्य घटित
खगोलीय अलौकिकताएँ
और तुम . . .
करना होगा आत्म का विकास
तब होंगे एकसार
मैं . . . और . . . तुम . . .।