माँ स्वीकार करना
प्रज्ञा पाण्डेयहृदय को तेरा मंदिर बनाकर, तेरी छवि बसाऊँ
मन को सवारी बनाकर, चेतना द्वारपाल बिठाऊँ
माँ स्वीकार करना।
चित्त का चौक पुराकर, वाणी को कलश बनाऊँ
अश्रुजल से अभिषेक कर, बुद्धि की जौ बिछाऊँ
माँ स्वीकार करना।
श्रद्धा की साड़ी पहना कर, आस्था का चुनर ओढ़ाऊँ
भक्ति का शृंगार कराकर, विश्वास का आभूषण पहनाऊँ
माँ स्वीकार करना।
प्रेम का पुष्प चढ़ाकर, समर्पण का हार पहनाऊँ
भावनाओं का भोग लगाकर, प्रेमाश्रु पान कराऊँ
माँ स्वीकार करना।
त्याग का धूप जलाकर, आत्मा का दीप जलाऊँ
हर्षित मन को वाद्य बनाकर, तेरी महिमा आरती गाऊँ
माँ स्वीकार करना।
क्रोध का बलि चढ़ाकर,कामनाओं का हवन जलाऊँ
जब मोह-माया त्याग कर, मैं तेरी शरण में आऊँ
माँ स्वीकार करना।