ख़्वाहिशें

15-12-2021

ख़्वाहिशें

प्रज्ञा पाण्डेय (अंक: 195, दिसंबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

अवारपार ज़िम्मेदारियों के बीच
ख़्वाहिशों की छोटी सी तरंग
दिल के किसी दूर कोने में छिप
बनाती उछलने की कोई सुरंग। 
 
किसी नन्ही चिड़िया सी फुदकती
आ बैठ, मन के आँगन में
जुनून जोश भरकर वो चहकती
उड़ती सपनों की गगन में। 
 
ख़्वाहिश नहीं है, किसी और का होने की
ख़्वाहिश है ख़ुद मुझे ख़ुद में हो खोने की
ख़्वाहिश नहीं है हीरे, मोती, सोने की
ख़्वाहिश है दिल में प्रेम बीज बोने की। 
 
ख़्वाहिश नहीं है कि दुनिया में सबसे अमीर बनने की
ख़्वाहिश है किसी घुटते के लिए जीवन समीर बनने की
ख़्वाहिश नहीं है किसी विशेष के दिल पर राज करने की
ख़्वाहिश है सभी के दिल के कोने में अपना नाम करने की। 
ख़्वाहिश नहीं है ख़्वाहिशों को अल्फ़ाज़ों में सजाने की
ख़्वाहिश है अपने ख़्वाहिशों को हक़ीक़त बनाने की
ख़्वाहिश नहीं है पूरे आसमान को अपना बनाने की
ख़्वाहिश है आसमां के बुलंदियों तक उड़ान भरने की। 
 
ये छोटी छोटी सी ख़्वाहिशें जीने की वज़ह देती हैं
इन ख़्वाहिशों से ही ज़िन्दगी को तवज्जह मिलती है
 
ख़्वाहिशें जो दिल में हिलोरें खाती हैं
ख़्वाहिशें जो मीठी धुन में गुनगुनाती हैं
ख़्वाहिशें जो जुनून बन कर छाती हैं
अक़्सर ख़्वाहिशें वही अधूरी रह जाती हैं।  

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