लोकतंत्र
आरती चौरसियाहर सड़क एक सवाल है
हर गली एक ख़तरा,
चिपके हैं इश्तेहार, हर दीवार पर
जैसे बाज़ार में लगती है, हर चीज़ की नुमाइश
सोचने को विमर्श नहीं,
निर्णय हर चौराहे पर
बंद हर किवाड़ के पीछे बैठे हैं हम
डर कर शायद,
दंड मिल न जाए किस किसको
बैठा है तख़्ते पर जो भी
निर्णय भी उसके ही पक्ष का
धोखा है या फ़रेब
शायद
आँधी का ये झोंका है।
नाम तंत्रों का तंत्र
लोकतंत्र है इसका
किन्तु घट में छिपा एक विकट
विकट में जितने प्रश्न
बढ़ रहे उतने जवाब
जवाबों के ढेर हैं
पर न उसका कोई मेर है
होश में मदहोश
एक पूरा मेरा सरफ़रोश है।