आत्महत्या कर ली सब चीज़ों ने
आरती चौरसियाआत्महत्या कर ली सब उन चीज़ों ने,
जो जान न सके कि वो कौन हैं।
न जाने कहाँ, किधर, कहीं दूर,
बस अपने अक्स को खोते जा रहे हैं।
किरदारों में उलझा जा रहा हर शख़्स,
भीड़ की क़तारों में बस चलते जा रहे हैं।
चूँ ज़बाँ से, ज़बाँ चूँ से निकल नहीं रही किसी की,
सब जीव यहाँ माटी कि मूरत होते जा रहे हैं।
समुद्र से पहाड़ हो जाने का स्वप्न हर कोई बुनता जा रहा है,
ऊँचाई का यह कौन सा ज़हर जो हर कोई पीता जा रहा है।
भूल रहेहैं हम वुजूद सबका,
जो समुद्र के धरातल का भाव भूलते जा रहे हैं।
कठपुतली की तरह बस सब राह पर चलते जा रहे हैं,
भूल रहे हैं कि हम क्या और क्या होते जा रहे हैं।
कर ली सब उन चीज़ों ने आत्महत्या,
जिसे हम न जान सके कि हम क्या होते जा रहे हैं।