लॉकडाउन में
अवनीश कुमारसन्नाटा पसरा
हर गली, हर कूचे और
हर नुक्कड़ पर;
शहर की गलियाँ हो गईं
किसी स्याह जंगल के
सुनसान रास्तों-सी;
खोमचे, ठेले अब
ग़ायब हो गए हैं;
अब वे मलिन बस्तियों से
कालोनियों में नहीं आते;
अब चौबीसों घण्टे
बेबस हैं वे
बदबूदार घरों में रहने को;
दीवारों में बंद ज़िंदगियाँ
तलाश रहीं हैं
खुला आसमान।