आदत

अवनीश कुमार (अंक: 178, अप्रैल प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

आदत!

अच्छी, भली और बुरी आदत

किसी शैतान और समझदार बच्ची की तरह

कभी ज़िंदगी का कोई खिलौना तोड़ती, तो

कभी किसी को सम्भालती भी

कोई हाथ से छूट जाता, तो 

कोई अपने आप फेंक देती

अनेक रिश्तों से घिरे जीवन में

कभी कड़वाहट लाती, तो

कभी मिठास घोलती;

जब भी कोई कुछ बोलता है, तो

श्रोता कोई ऐसा अंदाज़ा लगा लेता कि

चन्द शब्दों में ही बयान हो गई आदत

जो सच तो नहीं होता, पर

उसे लगता कि

महज़ ज़रा से लफ़्ज़ ही पर्याप्त हैं

किसी की आदत को समझने के लिए

उसे बिल्कुल यक़ीन हो जाता कि

इन चन्द शब्दों ने

सामने वाले का सारा अंतस खोल दिया।

पर यह तो वास्तविक नहीं है

शब्द तो भावों को प्रकट करने वाले

किसी राह चलते पथिक की तरह हैं

कोई पूर्ण रास्ता नहीं;

क्योंकि पथ से तो सभी राही गुज़रते हैं

पर सब के यात्रा वृत्तांत में होते हैं

रास्ते के अलग-अलग शब्दचित्र

और उसी वर्णन से पाठक 

अपने मस्तिष्क में बना लेता

रास्ते के अलग-अलग दृश्य।

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