कृत्रिम बुद्धिमत्ता के युग में भाषा और साहित्य 

15-09-2024

कृत्रिम बुद्धिमत्ता के युग में भाषा और साहित्य 

डॉ. वंदना मुकेश (अंक: 261, सितम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

भूमिका

बचपन में लोककथाओं में जादू की छड़ी वाली परी के चमत्कार लुभाते थे नरभक्षी डायन और राक्षसों की जान किसी द्वीप पर किसी पक्षी में बसी है, सोचकर आश्चर्य होता था। मायावी राक्षस, लक्ष्यवेधन कर, अपने स्थान पर वापस आनेवाले युद्ध उपकरण, मनचाहा रूप बदलने का वरदान। 

कल्पना करिए कि 2030 के विश्वरंग की सारी व्यवस्था रोबोट करें। सम्मेलन का संयोजन, आपका स्वागत, सत्र संचालन तथा सभी खाने-ठहरने की व्यवस्था का सारा संचालन मानवरूपी रोबोट ही करें तो जैसे इस बार विश्वरंग की व्यवस्थाएँ देखने भोपाल से संयोजन समिति के सदस्यों को बार-बार मॉरीशस आना पड़ा वह नहीं करना पड़ेगा। 

बचपन में लोककथाओं में जादू की छड़ी वाली परी के चमत्कार लुभाते थे नरभक्षी डायन और राक्षसों की जान किसी द्वीप पर किसी पक्षी में बसी है, सोचकर आश्चर्य होता था। लेकिन आज, एआई के युग में ये सब चीज़ें कितनी सहज और सम्भव लगती हैं। रिमोट कंट्रोल, ईमेल स्मार्ट फोन, क्लाउड और अब चैटबॉट जैसे विभिन्न उपकरण निरंतर विकास की सीढ़ियों को द्योतित करते हैं। 

मनुष्य ने उत्तरोत्तर विकास किया है और अपने जीवन में सुख-सुविधाएँ बढ़ाने के लिए नित नए आविष्कार किए हैं। मनुष्य द्वारा पहिये के आविष्कार से आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता के आविष्कार तक की यात्रा अनोखी रही है। हर आविष्कार आशंकाएँ लेकर आता रहा और हमारे जीवन का अहम अंग बनता गया। आज जीवन के विविध क्षेत्रों में सूचना प्रौद्योगिकी के विस्तार और वर्चस्व ने स्तंभित कर दिया है। एआई संचालित और प्रशिक्षित सहायकों से हर क्षेत्र में एक नई कार्यपद्धति का विकास हुआ है। जिसके लिए सम्भवतः हम अभी पूरी तरह तैयार नहीं है। इसलिए हमारे मन में अनेक प्रश्न उमड़-घुमड़ रहे हैं

सम्भवतः मैं कुछ भी ऐसा नहीं कहूँ, जो आपको ज्ञात न हो अथवा वर्तमान में उपलब्ध तकनीकी सुविधाओं की सहायता से जिसका आप शोध न कर सकें, किन्तु इस सत्र के विषयानुरूप कृत्रिम बुद्धिमत्ता के परिप्रेक्ष्य में भाषा और साहित्य पर एक संवाद अवश्य स्थापित किया जा सकता है। 

वर्तमान युग, डिजिटल युग है, त्वरा का युग है। चुटकी में, अर्थात्‌ त्वरित समाधान चाहिए, प्रत्येक व्यक्ति हर कार्य का तत्काल परिणाम पाना चाहता है। किसी के पास न सालों सीखने का समय है न सीखने के लिए किसी के पास जाने का समय। सूचना संचार के विकास से अब घर बैठे ही स्वयं को ज्ञान-संपन्न बनाया जा सकता है। गूगल गुरु ने तो बड़े-बड़े गुरुओं की छुट्टी कर दी है। गुरु को ढूँढ़ने की आवश्यकता नहीं है। प्रौद्योगिकी से क़दम मिलाते हुए असंख्य शिक्षक, कलाकार एवं रचनाकार यूट्यूब, फ्लिपबोर्ड, सबस्टैक, और स्टीमिट जैसे अनेक इंटरनैट प्लैटफार्मों के माध्यम से करोड़ों पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं तक अपनी बात सीधे ‘एक किल्क में’ पहुँचा सकते हैं। 

यहाँ हम यह स्पष्ट करना चाहते है, कि जब हम हिंदी भाषा और साहित्य की बात करते हैं तो उसमें अन्य भारतीय भाषाओं के संदर्भ को संलग्न समझा जाए। 

सर्वप्रथम हिंदी पर कृत्रिम बुद्धमत्ता के प्रभाव पर एक दृष्टि डालना आवश्यक है। 

1. हिंदी भाषा अनुसंधान और कृत्रिम बुद्धिमत्ता

भाषा, भावों और विचारों की अभिव्यक्ति और आदान-प्रदान का सबसे सबल माध्यम है। भाषा ध्वनि, शब्द और वाक्यों के अर्थपूर्ण संयोजन से बनती है। भाषा-विज्ञान के नियमों के अनुसार भाषा निरंतर परिवर्तनशील है। अर्थ-विस्तार, अर्थ-संकोच एवं अर्थ-परिवर्तन की प्रक्रिया भाषा के विकास के सामान्य चरण हैं। 

1.1 कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपकरण भाषायी विश्लेषण और अनुसंधान में बड़ा सहायक सिद्ध हो सकते हैं। उदाहरणार्थः सोशल मीडिया की भाषा, बोलचाल की भाषा और साहित्यिक भाषा के आँकड़े बड़े पैमाने पर इकट्ठा कर सांस्कृतिक-सामाजिक संदर्भों से युक्त भाषाओं के नमूने तैयार कर सकते हैं। जिनसे व्यापार-बाज़ार ग्राहक की आवश्यकता को समझा जा सकता है।

2. अनुवाद के क्षेत्र में भी एआई महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। आज एआई के माध्यम से तत्काल अनुवाद की सुविधा उपलब्ध है। इससे वैश्विक संचार सुलभ हो गया है। 

3. मिड जर्नी, डीप आर्ट, स्टेबल डिफ्यूज़न जैसे शब्द को चित्र में बदलनेवाले एआई सहायक संप्रेषणीयता में वर्धन कर रहे हैं। 

4. भाषायी विविधता के संरक्षण में एआई का योगदान महत्त्वपूर्ण है। संसार की जो भाषाएँ विलुप्त हो रही हैं उनके नमूनों का डिजिटलीकरण करके सँजोया जा सकता है। उदाहण मोडी लिपि जो शिवाजी के काल में सरकारी कामकाज की लिपि थी। 

5. सीरी और गूगल असिसटेंट सिस्टम भाषण को टेक्स्ट में बदलकर भाषा विश्लेषण को आसान बना देते हैं। 

वस्तुतः हिंदी कंप्यूटर की भाषा के रूप में सुदृढ़ होती जा रही है। लेकिन फिर भी दिल्ली अभी दूर है। ऊपर बताए गए एआई के विभिन्न उपकरण भाषा अनुसंधान के क्षेत्र में अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं उनमें भी नित नये और बेहतर संस्करण आते जा रहे हैं। 

2. भाषा अनुसंधान के पश्चात भाषा शिक्षण में एआ ईकी भूमिका पर एक दृष्टि डाली जा सकती है। 
इसके दो पक्ष हैं एक शिक्षक के दृष्टिकोण से, तथा दूसरे विद्यार्थी के दृष्टिकोण से। 

2.1 इसके प्रयोग से शिक्षक रचनात्मकता से अपने पाठों के रुचिकर बना रहे हैं।

2.2 शिक्षकों का सर्वाधिक समय जाँचने में, मूल्यांकन करने में जाता है किन्तु ग्रेडस्कोप जैसे एआई प्लैटफ़ॉर्म परीक्षाओं का कम समय में सटीक मूल्यांकन कर समय की बचत करते हैं।

2.3 विविध स्तर पर भाषा और साहित्य शिक्षण के पाठ्यक्रम तैयार कर किए जा रहे हैं।

2.4 ड्रीम बॉक्स तथा न्यूटन जैसे एआई पर आधारित प्लैटफ़ॉर्म छात्र की योग्यता और गति के अनुरूप, उनके सीखने के तरीक़े और गति को समझते हुए विशिष्ट पाठ्यक्रम का निर्माण अत्यंत लाभकारी है। यह एक ओर छात्र के आत्मविश्वास में बढ़ोतरी करता है वहीं दूसरी ओर शिक्षक के दबाव को भी कम करता है।

2.5 नई भाषा सिखाने के लिए कक्षा के अतिरिक्त ड्यूओ लिंगो जैसे ऐप से अभ्यास करना।

2.6 रीडिंग असिस्टेंट-दृश्य मीडिया की सहज उपलब्धता के कारण पढ़ने का चलन अब कम हो रहा है ऐसे में रीडिंग असिस्टेंट ऐप एक वरदान है। इससे टैक्स्ट को सुना भी जा सकता है।

2.7 शोध-और अनुसंधान के क्षेत्र में इसका प्रयोग हो रहा है लेकिन फ़िलहाल मुख्यतः अंग्रेज़ी में।

यह सभी सुविधाएँ हिंदी भाषा के लिए पूरी तरह प्राप्त नहीं हैं। किन्तु इसके विकास की गति से वह दिन दूर नहीं है 

3. सर्जनात्मक साहित्य-यदि सर्जनात्मक साहित्य को व्यापक अर्थ में लिया जाए तो रूढ़ साहित्य कथा कहानी, नाटक के अतिरिक्त संगीत, नृत्य, चित्रकला फ़िल्म इत्यादि भी समाहित की जा सकते हैं

3.1 जो साहित्य भोजपत्रों में संगृहीत था वह आज इंटरनैट क्लाउड में संगृहीत हो रहा है, जहाँ एक साथ कई लोग उसका उपयोग कर सकते हैं।

3.2 ग्रामरली, चैट जीपीटी लेखन सहायक की भूमिका बख़ूबी निभा रहा है। प्रूफ़ रीडिंग, संशोधन, लेखन, विकल्प शब्द से लेकर किसी एक पाठ के कई विकल्प प्रस्तुत कर देता है

3.3 साहित्य जगत में चैटजीपीटी अलादीन के चिराग़ वाला जिन्न सा प्रतीत होता है। जो माँगो सो मिलेगा लेकिन उसकी अपनी सीमाएँ भी हैं, जिनमें से हिंदी भाषा भी एक है। किसी भी विषय पर तुरत रचनात्मक साहित्य उपलब्ध हो सकता है।

3.4 ओपन एआई का म्यूज़नेट नामक सॉफ़्टवेयर विभिन्न संगीत शैलियों में संगीत का निर्माण कर सकता है। स्पॉटिफाय और एपल म्यूज़िक एआई के प्रयोग से श्रोताओं के गीतों की पसंद के आधार पर प्ले लिस्ट बना सकते हैं अथवा गाने सुझा सकते हैं। नये गायकों की आवाज़ का विश्लेषण कर उसकी कमियों और विशेषताओं का अध्ययन, संगीत शिक्षण म्यूज़िक प्रोडक्शन इत्यादि हर क्षेत्र में एआई को बोलबाला बढ़ता ही जा रहा है।

दो सप्ताह पूर्व एक समाचार पढ़ा-साउथ कोरिया में रोबोट द्वारा पहली आत्महत्या। कारण, काम की अधिकता, यहाँ लोग सप्ताह में 70 घंटे तक काम करते हैं, प्रत्येक 10वां व्यक्ति रोबोट है। 

समाचार पत्रों की अन्य सुर्ख़ियों पर भी एक बानगी के तौर, नज़र डालना उचित होगा—रोबोट को मानवीय चेहरा प्रदान किया अब उसमें भावों और संवेदनाओं का संचार। एआई चैटबॉट आपस में लड़ सकते हैं . . . ‘क्या अब रोबोट कक्षा में पढ़ाएँगे?’ 

सुनकर आश्चर्य तो होता है किन्तु कहीं न कहीं मन भयाक्रांत भी हो जाता है। 

अंग्रेज़ी में तथा यूरोप में तो पर तो इस विषय पर अनेक फ़िल्में चौथे दशक से ही बनती आ रही हैं, ‘मैट्रिक्स’, ‘आई-रोबोट’, ‘हर’ जोआक्युइन फीनिक्स (Joaquin Phoenix) मुख्य भूमिका में हैं। लेकिन अब इस विषय पर हिंदी में भी ‘रोबोट’, ‘रा.वन’, ‘तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया’ जैसी फ़िल्में आई हैं। जिनमें मानव और एआई के भविष्य का चित्रण है। 

लाभ:

यह सच है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता संचालित उपकरण हमारे समय की अभूतपूर्व बचत करते हैं, जिज्ञासाओं का क्षण में समाधान कर सकते हैं, सूचना प्राप्त कर सकते हैं। प्रूफ़रीडिंग कर सकते हैं, अनुवाद कार्य भाषायी पुल बनेगा तो लेखन सहायक युवाओं को अपनी भाषा में भाषा में लिखने के लिए प्रेरित करेगा। ये हमारे अकेलेपन के एक अच्छे मित्र या सहायक सिद्ध हो सकते हैं, हमसे विभिन्न विषयों पर चर्चा और बहस कर सकते हैं, हमारी संवेदनाओं को समझ कर उसी के अनुरूप व्यवहार करने लगेंगे। 

सीमाएँ:

मानव निर्मित मशीन

1. बुद्धि का ह्रास 

2. वैचारिक क्षमता का क्षरण

3. पढ़ने की प्रवृत्ति का ह्रास—त्वरित समाधान की चाहत, उतावलेपन की प्रवृत्ति के कारण पढ़ने की प्रवृत्ति का ह्रास हो रहा है।

4. ग़लत जानकारी की सम्भावना—गूगल के गॉडफ़ादर कहे जानेवाले ज्योफ्री हिंटन ने गूगल छोड़ते हुए यह चेतावनी दी कि गूगल से प्राप्त जानकारी ग़लत हो सकती है। 

पुरानी कहावत है कि जो हाँड़ी में होगा वही चमचे में आएगा। मानव निर्मित होने के कारण यह दायित्व मनुष्य का है। एक बात विचारणीय है कि अब तक के सारे एआई प्लेटफ़ॉर्म, चैटबॉट इत्यादि हिंदी भाषा में बोल तो सकते हैं लेकिन उनके सोच की भाषा पश्चिमी है, ये पश्चिमी देशों की कंपनियों द्वारा बनाए जाते हैं अतः उन्हीं की दृष्टि है, उसी के आधार पर समाधान है। 

अभी हाल ही में माईक्रोसॉफ़्ट ने क्राउड स्ट्राईक नामक लायब्रेरी सिक्युरिटी सर्विस से जब अपना सिस्टम अपडेट किया और विंडोज़ पर ऑटो अपडेट भेजा तो क्राउड स्ट्राईक की ख़राबी से माइक्रोसॉफ़्ट कंप्यूटर्स क्रैश हो गए। हवाई सेवाएँ, चिकित्सा और बैंक संबंधी सभी सेवाएँ ठप हो गईं। कल्पना कीजिए कि कोई रोबोट आपकी शल्य चिकित्सा कर रहा है और उसमें ख़राबी आ जाए। 

कैसी विडंबना है कि तकनीक के जिस विकास और डिजिटलीकरण के कारण मनुष्य एकाकी होता जा रहा है वही तकनीक ऐसे सॉफ़्टवेयरों का निर्माण कर रही है जो मनुष्य का भावनात्मक साझी बन कर उनका अकेलापन मिटाएँगे। 

उपसंहार

चुनौतियाँ हैं तो संभावनाएँ भी कम नहीं हैं। 

एआई की उपस्थिति के साथ हिंदीभाषी, हिंदीशिक्षक, हिंदी के रचनाकार अर्थात्‌ हर वह व्यक्ति जो हिंदी जानता है उसका दायित्व बढ़ जाता है। वह अंग्रेज़ी तथा अन्य पश्चिमी भाषाओं में उपलब्ध ज्ञान-संपदा को हिंदी में अनूदित करके उसे समृद्ध बनाए। 

फिर सारे उपलब्ध साहित्य को डिजिटाईज़ करना आवश्यक है क्योंकि वही एआई द्वारा पुनः हमें दी गई सूचना का आधार होगा। 

हिंदी में वैज्ञानिक सामग्री का अनुवाद 

हिंदी भाषा-भाषियों को कंप्यूटर से दोस्ती करनी होगी। उसे सीखना होगा। यह एआई ने ही सुगम कर दिया है कि हम अंग्रेज़ी में लिखे साहित्य को स्कैन कर हिंदी में परिवर्तित कर समझ लें। 

यदि हम कंप्यूटर विज्ञान पर गहरी पकड़ रखें तो हमारे युवाओं के लिए नौकरी के अनेक अवसर सहज उपलब्ध हो जाएँगे। इसके लिए कंप्यूटर और इंटरनेट की सुविधा सब जगह सुगमता से उपलब्ध होना प्रमुख है। 

 

कृत्रिम बुद्धिमत्ता का क्षेत्र शोध की अनंत संभावनाओं से भरा है। विषय शोध की अनंत संभावनाओं से भरा है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अन्वेषण जनकल्याण के लिए किए गए थे किन्तु आज उनका दुरुपयोग घातक युद्ध सामग्री बनाने में हो रहा है। एक प्रतिभा विश्व कल्याण के लिए आविष्कार करती है तो वहीं दूसरी प्रतिभा विनाशकारी कृत्य करती है। ‘एवेंजर्स एज ऑफ़ अल्ट्रान’ नामक फ़िल्म में आयर्न मैन और हल्क दुनिया को बचाने के लिए एआई अल्ट्रान को बनाते हैं किन्तु वह इतना सशक्त हो जाता है कि वह सोच-विचार कर इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि दुनिया को सबसे बड़ा ख़तरा इंसान से ही है, और इंसानों को नियंत्रण में करना है। अब यह समय ही बताएगा कि कौन किस पर नियंत्रण करता है। किन्तु यह हमें कदापि भूलना नहीं चाहिए कि अंततः एआई एक मानव निर्मित मशीन है और मनुष्य ही उसका नियंत्रक है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिन्स ने एआई के विषय में चेतावनी हमें भूलनी नहीं चाहिए कि एआई पर नियंत्रण नहीं किया गया तो आगे जाकर यह विध्वंसक हो जाएगा। यदि कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग विवेकपूर्वक किया जाए तो यह मानव के विकास का, उसके जीवन के विविध क्षेत्रों-जैसे साहित्य-कला और विज्ञान का एक अभूतपूर्व, सकारात्मक और महत्त्वपूर्ण संसाधन सिद्ध हो सकता है

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