ध्वनियों का संसार 

01-11-2024

ध्वनियों का संसार 

डॉ. वंदना मुकेश (अंक: 264, नवम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

आवाहन है तो हुंकार 
ढोल-नगाड़े की टंकार। 
 
पीड़ा में निकले सिसकारी, 
आनंदित मन किलकारी। 
 
पंछी बोलें चहचह चुक-चुक 
भँवरे करता गुनगुन गुनगुन। 
 
कूहु कूहु करती हैं कोयल, 
कैंहों कैंहों करता मोर। 
 
नदिया बोले कलकल-कलकल
पानी की हलचल है धबधब। 
 
झींगुर की है किर्र-किर्र 
तो बोलें मेंढक टिर्र-टिर्र। 
 
वृक्षों की सर-सर है धीमी, 
पत्तों की हलचल में सुरसुर। 
 
भिन-भिन, भिन-भिन मक्खी करती
मच्छर करते भुनभुनभुन। 
 
टिपटिप, रिमझिम बरसे पानी, 
झिमझिम-झिमझिम खू़ब झमाझम। 
 
जितने शब्द उतनी ध्वनियाँ या 
कितने शब्द कितनी ध्वनियाँ 
फिर भी नहीं समाती इनमें 
भावों की चंचल अठखेलियाँ

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