ध्वनियों का संसार
डॉ. वंदना मुकेश
आवाहन है तो हुंकार
ढोल-नगाड़े की टंकार।
पीड़ा में निकले सिसकारी,
आनंदित मन किलकारी।
पंछी बोलें चहचह चुक-चुक
भँवरे करता गुनगुन गुनगुन।
कूहु कूहु करती हैं कोयल,
कैंहों कैंहों करता मोर।
नदिया बोले कलकल-कलकल
पानी की हलचल है धबधब।
झींगुर की है किर्र-किर्र
तो बोलें मेंढक टिर्र-टिर्र।
वृक्षों की सर-सर है धीमी,
पत्तों की हलचल में सुरसुर।
भिन-भिन, भिन-भिन मक्खी करती
मच्छर करते भुनभुनभुन।
टिपटिप, रिमझिम बरसे पानी,
झिमझिम-झिमझिम खू़ब झमाझम।
जितने शब्द उतनी ध्वनियाँ या
कितने शब्द कितनी ध्वनियाँ
फिर भी नहीं समाती इनमें
भावों की चंचल अठखेलियाँ