किस कारण साजन छाँह न की
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया ‘प्राण’
(दुर्मिल सवैया में समस्या पूर्ति)
स्थिति
पति साथ गई नव दृश्य दिखा,
सच चौंक गई परवाह न की।
असमंजस में सब भूल गई,
यह क्या वह क्या फिर चाह न की॥
तब पूछ लिया पति ने मुझ से,
खुश प्राण रही पर वाह न की।
हर बार कहा कुछ पूछ सही,
फिर मौन खुला पर आह न की॥
समस्या
तब एक सवाल किया पति से,
जब चाल चली अवगाहन की।
वह प्राण खड़ी नत मस्तक जो,
लगती असली तिय पाहन की॥
यह जीवित है तब कौन कहो,
पकड़े रसरी रथ वाहन की।
सिर ऊपर घाम चढ़ी फिर क्यों,
किस कारण साजन छाँह न की??
पूर्ति (उत्तर)
इस बार जवाब दिया पति ने,
वह जीव नहीं प्रिय पाहन की।
पकड़े कर में रसरी सजनी,
रथ वाहक है पथ वाहन की॥
जब लू न लगे तन में तब क्या,
सरदी गरमी अवगाहन की।
सिर ऊपर चूनर प्राण धरी,
इस कारण साजन छाँह न की॥