ख़ामोश गीत बज रहा
प्रियांशी मिश्रा
ख़ामोश गीत बज रहा
जलते दिए जो बुझ गए
बरसों पहले खोया जिनको,
तारे बन अब चमक रहे
ख़ामोश गीत बज रहा
हताश दिल धड़क रहे
रक्त के नाते कहलाये
अपने थे, बिछड़ रहे
ख़ामोश गीत बज रहा
आईने भी आज फूट पड़े
चेहरे पर बनतीं सिलवटें
और दुख अपने, छलक रहे
ख़ामोश गीत बज रहा
डबडबाई आँखों से
भीगे इस बरसात में
आँसू भी छलक रहे
ख़ामोश गीत बज रहा
शोले जो मन में जल रहे
फ़ौलाद भी बिखर गया
शमशीर आज खनक रहे
ख़ामोश गीत बज रहा
जो होंठों को कॅंपा रहा
दबाई गई सिसकियाँ
चीखती वो आहटें
ख़ामोश गीत बज रहा
भाग्य कई फूट गए
वो सुहाग की चूड़ियाँ
बस यादों में दमक रहीं
ख़ामोश गीत बज रहा
और लोरियाॅं रटा गईं
नन्ही जाॅं गँवायी जो हमने
यादों में सिमटा गईं
ख़ामोश गीत बज रहा
जल तरंग आज फूट रहे
टूटे मृदंग की लय तान
और ताल भी जो छूट पड़े
मिठास अपनी खो रहे
ख़ामोश गीत बज रहे
ख़ामोश गीत बज रहे।