कहानी यूँ तो पूरी लग रही है
वैभव 'बेख़बर'
1222 1222 122
कहानी यूँ तो पूरी लग रही है
तेरे बिन कुछ अधूरी लग रही है,
मुहब्बत में हुआ बर्बाद जीवन
मुहब्बत फिर ज़रूरी लग रही है,
हमारी ज़िंदगी में , है अँधेरा
फ़क़त बाहर से नूरी लग रही है,
ये शोहरत खींच लायी ज़िस्म फिर भी
दिलों के बीच दूरी लग रही है,
तेरे लहजे में फ़न की नाज़ुकी है
मगर भाषा ग़ुरूरी लग रही है!