दिल-ओ-जाँ से दिया जिसको सहारा
वैभव 'बेख़बर'
1222 1222 122
दिल-ओ-जाँ से दिया जिसको सहारा
उसी ने कर लिया मुझ से किनारा
जहाँ पर ज़िस्म को मिलती तवज्जोह
वहाँ लगता नहीं है दिल हमारा
हमारे दोस्त तक ना बन सके तुम
ज़माना बन गया दुश्मन हमारा
अकेले ही सफ़र में चल पड़ा हूँ
कहाँ तक ताकते रस्ता तुम्हारा
बिछड़कर रूह फिर मिलती कहाँ है
बदन मिल सकता है तुमको दोबारा
हमारी आँख का जो नूर बनता
न निकला आसमाँ में वो सितारा
अभी भी शक़्ल वो धुँधली बहुत है
के जिसको उम्र भर हमनें निहारा
हमारी भी कहानी रुख़ बदलती
ज़रा सा साथ मिलता गर तुम्हारा