भले ही बाग़ तू नीलाम कर दे
वैभव 'बेख़बर'
1222 1222 122
भले ही बाग़ तू नीलाम कर दे
हमारा गुल हमारे नाम कर दे,
है सूरज मुद्दतों से सर के ऊपर
ठिकाना बख़्श दे या शाम कर दे,
बड़ी मग़रूर दौलत हो रही है
ज़रूरत आदमी की आम कर दे,
चमत्कारी कोई र'ब है गर तो
इरादे ज़ुल्म के नाक़ाम कर दे,
मुझे गुलशन का कोई ग़म नहीं है
मेरी मेहनत-कशी गुलफ़ाम कर दे,
मुसीबत देखकर डरने लगें हैं
मुहब्बत का हँसीं अंजाम कर दे