कलाकार

सरिता गोयल (अंक: 208, जुलाई प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

कलाकार हूँ मैं, कला बाँटती हूँ। 
दर्द मिट जाए सबका, दवा बाँटती हूँ। 
कलाकार हूँ मैं, कला बाँटती हूँ। 

 
शिक्षक हूँ मैं, ज्ञान देना कला है, 
तम अज्ञान का जो मिटा दे, वह प्रभा बाँटती हूँ। 
कलाकार हूँ मैं, कला बाँटती हूँ। 

 
कुम्भकार हूँ मैं, घट बनाना कला है, 
आतप में शीतल करे कंठ को जो, 
ऐसी वो जल की मैं धार बाँटती हूँ। 
कलाकार हूँ मैं, कला बाँटती हूँ। 

 
लेखक हूँ मैं, लेख लिखना कला है, 
अंतस के रहस्यों को जो करदे प्रकट, 
ऐसे लेखों की मैं जयमाल बाँटती हूँ, 
कलाकार हूँ मैं, कला बाँटती हूँ। 

 
गीतकार हूँ मैं, गीत लिखना कला है, 
निराश मन में भी जो आशा के दीपक जला दे, 
भावों से भरी गीतावली बाँटती हूँ, 
कलाकार हूँ मैं, कला बाँटती हूँ। 

 
मज़दूर हूँ मैं, इमारत बनाना कला है, 
सबके सपनों का जो आशियाना बना दे, 
वो बरगद से भी घनी मैं छाँव बाँटती हूँ, 
कलाकार हूँ मैं, कला बाँटती हूँ। 

 
चिकित्सक हूँ मैं, जीवन देना कला है, 
बुझते हुए चिराग़ को भी करदे जो रोशन, 
आशा की सबको किरण बाँटती हूँ। 
कलाकार हूँ मैं, कला बाँटती हूँ। 

 
गृहणी हूँ मैं, घर बनाना कला है। 
प्यार, समर्पण, ममता से
सींचे जो घर की हर क्यारी, 
ख़ुश्बू से भरा मैं चमन बाँटती हूँ। 
कलाकार हूँ मैं, कला बाँटती हूँ। 

 
जड़ हो या हो चेतन कोई,
करता है जो काम, 
मेरी नज़र में कलाकार है,
ना मिलता उसको आराम, 
किसे जगह दूँ मैं कविता में,
किसे छोड़ दूँ आप बताओ। 
मैं प्रतीक हूँ हर कलाकार की,
जो मुझमें है, वह सबमें पाओ। 

 
ख़ून-पसीना बहाकर निशदिन, 
ख़ुशियों भरा मैं संसार बाँटती हूँ, 
कलाकार हूँ मैं, कला बाँटती हूँ। 

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