कैसे-कैसे लोग
उपेन्द्र यादव
अन्धे पति का हाथ थामे महिला ट्रेन में भीख माँग रही थी। अपने मजबूर और लाचार होने की दुहाई दे रही थी। आदमी लड़खड़ा कर चल रहा था। वह अपनी आँखों की पलकों को अजीब ढंग से नचा रहा था। जबकि महिला पूर्ण रूप से स्वस्थ और जवान थी। जब भीख माँगते यह जोड़ी आगे बढ़ी तो एक शिष्टमंडल ने उन्हें अपने पास रोक लिया।
वो लोग कहने लगे, “अरे, इनकी आँखें तो ठीक हो सकती हैं। ये बिल्कुल सही हो जाएँगे।”
इस पर महिला ने प्रतिकार किया, “क्या मज़ाक़ करते हो, बाबू? ये जन्मांध हैं। इनकी आँखें कभी सही नहीं हो सकतीं।”
इस पर वो लोग बोले, “हम सभी डॉक्टर हैं। हम लोग एक चैरिटेबल ट्रस्ट के तहत ज़रूरतमंद लोगों की आँखों का फ़्री इलाज करते हैं। यहाँ तक कि आँखें भी ट्रांसप्लांट करते हैं। वो भी मुफ़्त। इनकी आँखें सफ़ेद तो हो रही हैं। पर हम लोग इन्हें संजीवनी प्रदान करेंगे। ये भलीभाँति देखने लगेंगे। ये जन्मांध नहीं हैं। बस इनकी आँखों की रोशनी जा रही है। इन्हें तत्काल उपचार की ज़रूरत है। नहीं तो कुछ दिन बाद स्थिति भयावह हो जाएगी और ये सच में अन्धे हो जाएँगे।”
इस पर महिला ने कहा, “जाने दो बाबू, क्यों पीछे पड़े हो। अगर सच में अन्धे हो जाते हैं, तो हो जाने दो। ठीक ही तो रहेगा। अब आप सबसे क्या छिपाना? यही तो हमारी रोज़ी-रोटी का ज़रिया है। हम इसे नहीं खोना चाहते। इनकी आँखें ठीक करा कर हमें कुछ नहीं मिलेगा। वर्षों से हम भीख माँगकर गुज़ारा कर रहे हैं। आप सब हमारी रोज़ी पर लात मत मारो।”
ये शब्द सुनकर शिष्टमंडल आवाक् रह गया। इसके बाद महिला अपने पति पर झल्लाकर बोली, “यहाँ खड़े-खड़े मुँह क्या देख रहे हो? आगे क्यों नहीं बढ़ते? क्या बनवा दूँ तुम्हारी आँखें?” पत्नी की ऐसी जली-भुनी बातें सुनकर पति आगे बढ़ गया और शिष्टमंडल उन्हें देखता रह गया।