ग़ाज़ीपुर, गंगा और इश्क़
उपेन्द्र यादव
ज़िंदगी में तुम भी मिलोगी
नहीं पता था
पर तुम्हें पा कर लगा
मैं पूरी दुनिया पा लिया
तुम ना मिली होती
तो कुछ अधूरा सा
रह गया होता
पर अब ये ज़िंदगी
मुकम्मल सी हो गई है
ख़ुशी के पल में
रो देता हूँ
दुख के क्षण में
हँस लेता हूँ
बिना वसंत के ही
खिल उठता हूँ
हर पत्ते-पत्ते में
हर कली, हर बूटे में
तुम्हारी आभा दिखती है
जब देखता हूँ
बड़े शहरों में लड़कियों को
तो याद तुम्हारी आती है
और देर तक
सोचता रह जाता हूँ
तुम्हारे बारे में
मेरा मन घसीटता रहता है
तुम्हें खोने-पाने को लेकर
हर लड़की में
अक्स तुम्हारा दिखता है
किसी के हाथ
किसी की आँखें
सब तुम्हारी ही तो लगती हैं
हर एक में तुम्हीं दिखती हो
तब मन कचोट जाता है
कहता है तुम मेरे पास क्यों नहीं हो
तुम मुझसे इतनी दूर क्यों हो?
जब कोई कहता है
मेरा शहर बहुत अच्छा है
बनारस, बिलासपुर, ग्वालियर
सबके अपने क़िस्से हैं
तब मुझे भी लगता है
कि हमारा भी एक शहर है
एक छोटा सा शहर ग़ाज़ीपुर
जिसे कोई नहीं जानता
पर वो दुनिया का
सबसे प्यारा शहर है
क्योंकि उस शहर में
तुम रहती हो
क्योंकि उस शहर में गंगा बहती है
क्योंकि उस शहर से जुड़ी
हमारी हज़ारों यादें हैं
मासूम सपने हैं
और एक अधूरी ज़िंदगी है।