कभी आना मेरे गाँव की गलियों में
अमित कुमार दे
कभी आना . . .
मेरे गाँव की गलियों में—
पेड़ों की फुनगियों में,
रिश्तों के बंधन में,
शुद्ध हवा झोंकों में
आम के बग़ीचों में,
कोयल की कूक में,
दोपहरी के धूप में,
घर में, आँगन में,
माँ की लोरी में,
दादी की गोदी में,
गीत में, संगीत में
त्योहारों में, तीज में!
कभी आना . . .
मेरे गाँव की गलियों में—
सुबह के भोर में,
पक्षियों के शोर में,
हर रिश्ते-नाते में,
पीपल के छाँव में,
मुहल्लों में, घाटों में,
मंदिरों की घंटियों में,
बरगद के झूलों में,
सरसों के फूलों में,
चने के गुच्छों में,
गेहूँ की बाली में,
सूरज की लाली में!
कभी आना . . .
मेरे गाँव की गलियों में—
धूप में, दीप में,
शंख की फूँक में,
यज्ञ की महक में,
पक्षियों की चहक में,
खेतों में, खलिहानों में,
चाय की छोटी दुकान में!
कभी आना . . .
मेरे गाँव की गलियों में—
गायों के झुण्डों में,
रिश्तों के संगों में,
होली के गीतों में,
दोस्तों की टोली में,
अपनों की प्रीत में,
सखा-सहेलियों में,
बचपन की यादों में,
काजू की डालियों में,
साइकिल के पहियों में,
जेष्ठ की गरमी में,
पेड़ों की छाओं में,
माघ की ठंडी में,
अग्नि के घेरे में,
बसंती बहार में,
सावन की फुहार में!
कभी आना . . .
मेरे गाँव की गलियों में!!
2 टिप्पणियाँ
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सुप्रभात संपादक महोदय, साहित्य कुञ्ज पत्रिका का पीडीएफ कैसे मिलेगा? मार्गदर्शन करें |
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मैं संपादक महोदय का आभारी हूँ, जो मुझे साहित्य कुञ्ज पत्रिका में स्थान मिला |