जूनागढ़ की पहाड़ी शृंखला-गिरनार पर्वत

01-11-2023

जूनागढ़ की पहाड़ी शृंखला-गिरनार पर्वत

सोनल मंजू श्री ओमर (अंक: 240, नवम्बर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

क्या आप इत्तिफ़ाक़ पर यक़ीन करते हैं? मैं तो करती हूँ। इसीलिए इस यात्रा को इत्तिफ़ाक़ का नाम दे रही हूँ। हुआ कुछ यूँ कि जब दिल्ली से राजकोट ट्रेन से यात्रा कर रही थी तो सामने वाली बर्थ पर एक अंकल आंटी मिल गए। वो दिल्ली के उसी एरिया से थे जहाँ से हम, लेकिन फिर भी एक दूसरे से अनजान। ये था पहला इत्तिफ़ाक़। राजकोट पहुँचने के लिए अहमदाबाद में ट्रेन चेंज करनी थी, और ये क्या! वही अंकल आंटी इस ट्रेन में भी सामने वाली बर्थ में मिल गए! ये था दूसरा इत्तिफ़ाक़। सफ़र के 23-24 घंटे में उनसे काफ़ी अच्छी जान-पहचान हो गई। बातचीत में पता चला कि वे दिल्ली के ही मूल निवासी है और हर पूर्णिमा जूनागढ़ (गुजरात) गिरनार की तलहटी में भवनाथ मंदिर के पीछे दत्तात्रेय रोड पर स्थित श्री दत्तात्रेय साधना आश्रम में जाते हैं। इस आश्रम की स्थापना सन् 1973 में पूज्य महर्षि श्री पुनीतचारीजी ने की थी। उन्होंने वहाँ का महात्म्य और अपने कई अनुभव हमसे साझा किए। 

यह जानकर हमने भी निश्चय किया कि हम भी इस पूर्णिमा वहाँ जायेंगे और फिर पूर्णिमा आते ही सपरिवार राजकोट से कार द्वारा आश्रम पहुँचे। आश्रम मोटर सक्षम सड़क से जुड़ा हुआ है। जूनागढ़ राजकोट से 102 किमी, पोरबंदर से 113 किमी और अहमदाबाद से 327 किमी की दूरी पर स्थित है। हवाई यात्रा करने वाले अहमदाबाद या राजकोट के बाद ट्रेन या सड़क मार्ग द्वारा जूनागढ़ पहुँच सकते हैं। 

आश्रम पहुँचते ही वहाँ का वातावरण काफ़ी मनोरम लगा। हर समय वहाँ ‘हरि ओम तत्सत जय गुरु दत्ता’ मंत्र का जाप गुंजायमान्‌ रहता है। मेडिटेशन हॉल में सुबह के समय सामूहिक रूप से प्रार्थना, जप और ध्यान किया जाता है। जबकि शाम को सत्संग हाल में पूज्य बापूश्री के पुत्र व पूज्य मैयाश्री के साथ सामूहिक नामजप, ध्यान व सत्संग होता है। यह आश्रम पूरी तरह से गैर-सांप्रदायिक है। पुरुष हो या स्त्री, ब्राह्मण हो या ग़ैर-ब्राह्मण, अमीर हो या ग़रीब, सभी धर्मों और संप्रदायों के लोगों को एक समान सम्मान मिलता है। आश्रम में साधक एक साथ रहते हुए प्रार्थना, ध्यान, जप करते है। यहाँ आने साधकों को अपने गुरु या गुरु-मंत्र को बदलने की आवश्यकता नहीं होती है। यहाँ ध्यान कुटीर, गेस्ट हाउस, सत्संग हॉल, ध्यान कक्ष, यज्ञशाला, गौशाला, रसोई, भोजन कक्ष जैसी सुविधाएँ उपलब्ध है। 

पूरा दिन आश्रम के पवित्र वातावरण में व्यतीत करने के बाद दूसरे दिन हमने गिरनार पर्वत की यात्रा प्रारंभ की। गिरनार पर्वत के बारे में कहा जाता है कि इसका अस्तित्व हिमालय से भी पुराना है। गिरिनार का प्राचीन नाम उर्ज्जयंत था। गिरनार पर्वत के अन्य नाम गिरिनगर और रेवतक पर्वत भी हैं। ये जूनागढ़ की पहाड़ी शृंखला अर्थात्‌ पहाड़ों के समूह को दिए गए नाम हैं, ना कि किसी एक पर्वत का। ये पहाड़ियाँ ऐतिहासिक मंदिरों, राजाओं के शिलालेखों तथा अभिलेखों (जो अब प्रायः ध्वस्त प्रायः स्थिति में हैं) के लिए भी प्रसिद्ध हैं। बेसाल्ट टाइप के पत्थरों से बने इस पर्वत शृंखला में दत्तात्रेय टुंक (ऊंचाई 5500 फ़ीट) न सिर्फ़ गिरनार की बल्कि पूरे गुजरात की सबसे ऊँची चोटी है। 

गिरनार पर्वत को साधु-संतों और जती-सती का ठिकाना कहा जाता है। गिरनार की यात्रा करने के लिए दस हज़ार सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। लेकिन जो लोग सीढ़ियाँ नहीं चढ़ सकते उनके लिए डोली और रोपवे की सुविधा उपलब्ध है। डोली की सुविधा काफ़ी खर्चीली है; ऊपर ले जाना और नीचे लाने में 4-5 घंटे का समय लगता है। रोपवे का फ़ॉउंडेशन 1 मई 2007 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने किया था। रोपवे का शुल्क 650 रु/व्यक्ति हैं, रोपवे सिर्फ़ 3383 फ़ीट ऊँचाई पर अम्बाजी टुंक तक ही ले जाता है। इसके सफ़र में 10 मिनट का समय लगता है। 

गिरनार पर्वत के ऊपर हिंदुओं के धर्मस्थान के साथ-साथ जैनों के भी बहुत सारे तीर्थ स्थान हैं। इसीलिए यहाँ सभी धर्मों के भक्त आते हैं। भगवान दत्तात्रेय चरण पादुकाओं के दर्शन की अभिलाषा लेकर भक्त जब सीढ़ियों से ऊपर की ओर बढ़ते हैं तो उनकी कठिन यात्रा दामोदर कुण्ड से आरम्भ होती है। दामोदर कुण्ड से पवित्र जल लेकर एवं बलदेवजी के मंदिर से ‘बल’ प्राप्त करके भक्तगण यात्रा शुरू करते हैं। इस यात्रा पहला पड़ाव ‘श्वेताम्बर’ 4500 सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद आता है; श्वेताम्बर में दिगंबर जैन सम्प्रदायों के सुन्दर, कलात्मक और शांत मंदिर स्थित हैं। यह जैनों का सिद्ध क्षेत्र है यहाँ से नारायण श्री कृष्ण के सबसे बड़े भ्राता तीर्थंकर भगवन देवादिदेव 1008 नेमिनाथ भगवान ने मोक्ष प्राप्त किया है। ये जैन धर्म के 22 वें तीर्थंकर हैं। पुराणों के अनुसार श्री नेमिनाथ जी शौर्यपुर के राजा समुद्रविजय और रानी शिवादेवी के पुत्र थे। समुद्रविजय के अनुज (छोटे भाई) का नाम वसुदेव था जिनकी दो रानियाँ थीं—रोहिणी और देवकी। रोहिणी के पुत्र का नाम बलराम या बलभद्र व देवकी के पुत्र का नाम श्रीकृष्ण था। इस प्रकार नेमिनाथ जी श्रीकृष्ण के बड़े भ्राता थे। 

यहाँ माता राजुल की प्राचीन प्रतिमा भी स्थापित है। इनका विवाह भगवान नेमिनाथ से होने से पूर्व ही नेमिनाथ जी को वैराग्य हो गया था जिसके कारण माता राजुल ने भी वैराग्य धारण कर इस स्थल पर साधना की थी। यहाँ तीर्थंकर नेमिनाथ की यक्षिनी अंबिका देवी का मंदिर भी हैं। वह नीले वर्ण वाली, सिंह की सवारी करने वाली, आम्र छाया में रहने वाली दो भुजा वाली है। बायें हाथ में प्रियंकर नामक पुत्र के प्रेम के कारण आम की डाली को और दायें हाथ में अपने द्वितीय पुत्र शुभंकर को धारण करने वाली हैं। चूँकि अम्बिका जी हाथों मेंं आम्र वृक्ष धारण करती हैं जिस कारण इस मन्दिर के आस-पास आम्र वृक्ष लगाने की प्रथा पुरातन समय मेंं थी। 

यहाँ जैन मुनियों एवं तीर्थंकरों के दर्शन करने के बाद 1000 सीढ़ियाँ और चढ़ने पर अम्बाजी टुंक स्थान आता है। यहाँ 52 शक्तिपीठों में से एक माँ अम्बाजी का मंदिर है (रोपवे से उतरने पर 100 क़दम पर ही अम्बाजी का मंदिर पड़ता है)। पुराणों के अनुसार माँ सती का पेट यहाँ पर गिरा था और यह मंदिर गुप्त साम्राज्य के समय निर्मित किया गया था। 

अम्बाजी मंदिर से दक्षिण दिशा में एक और पर्वत की चोटी है, जिसे गुरु गोरखनाथ पर्वत कहा जाता है। यहाँ पर नाथ सम्प्रदाय के गोरखनाथ जी की ‘धूनी’ स्थित है, जो अखंड स्वरूप में जलती रहती है। मज़े की बात यह है कि अम्बाजी मंदिर से दूसरी दिशा में पहले 1500 सीढ़ी उतरने और 600 सीढ़ी चढ़ने पर श्रद्धालु गुरु गोरखनाथ के मंदिर में पहुँचते हैं। गुरु गोरखनाथ के दर्शन करने के बाद पुनः श्रद्धालु अपनी दिशा बदलते हुए लेकिन चढ़ाई करके कमण्डल कुण्ड पहुँचते हैं। कमण्डल कुण्ड वह स्थान है जहाँ भगवान दत्तात्रेय ने दत्त टुंक पर्वत की चोटी पर पहुँचने से पहले अपनी धूनी रमाई थी। 

कमण्डल कुण्ड के बाद चढ़ाई और भी कठिन हो जाती है फिर भी श्रद्धालु अपनी भक्ति, श्रद्धा के बल पर दत्तात्रेय टुंक पहुँचकर दत्तात्रेय भगवान के चरण पादुका का दर्शन करके धन्यता का एहसास करते है। भगवान दत्तात्रेय, महर्षि अत्रि और उनकी सहधर्मिणी अनुसूया के पुत्र थे। 

बताते है एक बार माता सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती जी को माँ अनुसूया की पतिव्रता से जलन होने लगी। तीनों ने अपनी पतियों से कहा कि वे भू लोक जाएँ और वहाँ जाकर देवी अनुसूया की परीक्षा लें। ब्रह्मा, विष्णु और महेश संन्यासियों के वेश में अनुसूया के पास जाकर भिक्षा माँगने लगे और एक शर्त रखी कि भिक्षा माता अनुसूया से सामान्य रूप में नहीं बल्कि उनके नग्न अवस्था में रहने पर लेंगे। साधुरूपी त्रिदेव की ये बात सुनकर अनुसूया पहले तो हड़बड़ा गईं लेकिन फिर थोड़ा सँभलकर उन्होंने मंत्र का जाप कर अभिमंत्रित जल उन तीनों संन्यासियों पर डाला। पानी की छींटे पड़ते ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ही शिशु रूप में बदल गए तब अनुसूया ने उन्हें भिक्षा के रूप में स्तनपान करवाया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश के स्वर्ग वापस ना लौटने की वजह से उनकी पत्नियाँ चिंतित होने लगी और देवी अनुसूया के पास आईं। सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती ने उनसे आग्रह किया कि वे उन्हें उनके पति सौंप दें। अनुसूया और उनके पति ने तीनों देवियों की बात मान ली किन्तु अनुसूया ने कहा कि त्रिदेवों ने मेरा स्तनपान किया है इसलिए किसी ना किसी रूप में इन्हें मेरे पास रहना होगा अनुसूया की बात मानकर त्रिदेवों ने उनके गर्भ में दत्तात्रेय, दुर्वासा और चंद्रमा रूपी अपने अवतारों को स्थापित कर दिया, जिनमें दतात्रेय तीनों देवों के अवतार थे। दत्तात्रेय का शरीर तो एक था लेकिन उनके तीन सिर और छह भुजाएँ थीं। विशेष रूप से दत्तात्रेय को विष्णु का अवतार माना जाता है। 

इसके अलावा गिरनार पर्वत के अन्य मुख्य आकर्षण है गिरनार पर्वत शृंखला के चारों तरफ़ की जाने वाली परिक्रमा को 'लिली परिक्रमा' कहा जाता है। श्रद्धालुओं का ऐसा मानना है कि इस पर्वतमाला में तैंतीस कोटि देवताओं का वास है, इसलिए चालीस किमी लम्बी इस लिली परिक्रमा को पूर्ण करने से मोक्ष की प्राप्ति होगी। यह परिक्रमा गिरनार पर्वत के सबसे निचले स्थान पर स्थित भवनाथ मंदिर से शुरू होकर वापस यहीं समाप्त होती है। कार्तिक माह की एकादशी से यह परिक्रमा आरम्भ जी जाती है। जनवरी और फरवरी के महीनों के दौरान भवनाथ मेला आयोजित होता है। इन त्योहारों के बारे में उल्लेखनीय बात यह है कि इन त्योहारों के दौरान हिंदू भक्त और जैन भक्त दोनों बड़ी संख्या में एक साथ आते हैं। तीर्थंकरों के पंचकल्याणकों के रूप में पहचाने जाने वाले पाँच प्रमुख तीर्थों में से एक, गिरनार पूरे देश में अत्यधिक पूजनीय है। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

पुस्तक समीक्षा
सांस्कृतिक आलेख
कविता
सामाजिक आलेख
सिनेमा चर्चा
लघुकथा
यात्रा-संस्मरण
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में