झूठे मुखौटे
डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानीसाथ-साथ खड़े दो लोगों ने आसपास किसी को न पाकर सालों बाद अपने मुखौटे उतारे। दोनों एक-दूसरे के 'दोस्त' थे। उन्होंने एक दूसरे को गले लगाया और-सुख दुःख की बातें कीं।
फिर एक ने पूछा, "तुम्हारे मुखौटे का क्या हाल है?"
दूसरे ने मुस्कुरा कर उत्तर दिया, "उसका तो मुझे नहीं पता, लेकिन तुम्हारे मुखौटे की हर रग और हर रंग को मैं बख़ूबी जानता हूँ।"
पहले ने चकित होते हुए कहा,"अच्छा! मैं भी ख़ुद के मुखौटे से ज़्यादा तुम्हारे मुखौटे के हावभावों को अच्छी तरह समझता हूँ।"
दोनों हाथ मिला कर हँसने लगे।
इतने में उन्होंने देखा कि दूर से भीड़ आ रही है, दोनों ने अपने-अपने मुखौटे पहन लिये।
अब दोनों एक दूसरे के प्रबल विरोधी और शत्रु थे, अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेता।
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