जीवन
वैद्यनाथ उपाध्यायजीवन
एक बड़े हादसे से होकर गुज़र रहा है
मन व्यथित है।
पीछे मुड़कर
दूर तक देखता हूँ
कहाँ क्या चूक हो गई?
सब कुछ जल चुका है
राख के ढेर में
अब
मैं सपनों की किरचन बीन रहा हूँ।
सोचता हूँ
अगर मैंने यह किया होता
काश यह हादसा न हुआ होता!
उसने अगर यह न किया होता
यह सब मीठे जुमले हैं
विचार के
कभी फ़िट नहीं बैठता ज़िन्दगी में
मैं अब जान गया हूँ
लाभ-हानि दोनों जीवन के ही अंग हैं।
ज़िन्दगी
अब कठिन समय से होकर गुज़र रहा है
लेकिन मुझे यक़ीन है
मेरे सपनों के फूल खिलेंगे
महकेगा अपना चमन
फिर से चिड़िया चहचहाएगी
ज़िन्दगी को सँवारकर
निकल आऊँगा मैं
फिर इस घुटन से बाहर।