हम भी कैसे..
लक्ष्मीनारायण गुप्ताहम भी कैसे, पागल जैसे
हँसते, रोते हैं
जात-पाँत के बिछे दर्प पर
आपा खोते हैं।
होश संभाला जबसे हमने
देखा बॅटबारा
देश बॅटा समाज को बॉटा
बॉटा अगनारा।
एक संगठित ग्राम इकाई
टुकड़ों में टूटी
दलगत राजनीति में फँसकर
ग्राम एकता रूठी।
न्याय विमुख जन मानस देखो
ओढ़े अधियारा
मत जुगाड़ने के चक्कर में
संसद गलियारा।