हर एक घर कुछ कहानी कहता है

15-09-2020

हर एक घर कुछ कहानी कहता है

डॉ. शिवांगी श्रीवास्तव (अंक: 164, सितम्बर द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

हर एक घर कुछ कहानी कहता है
कुछ यादें सिमटी होती हैं 
कुछ सपने बुनता है। 
 
कहीं सिसकियाँ ही सिसकियाँ 
और थप्पड़ों की गूँजें
रुदन में किसी की 
कुछ आहें भरता है। 
 
हर एक घर कुछ कहानी कहता है
कुछ यादें सिमटी होती हैं 
कुछ सपने बुनता है। 
 
कहीं किलकारियाँ कहीं तोतली बोली 
कहीं लोरियों की रुनझुन करता है 
नन्हे नन्हे क़दमों से चलते हुए बच्चे की 
अनगिनत यादें पिरोए रहता है। 
 
हर एक घर कुछ कहानी कहता है
कुछ यादें सिमटी होती हैं 
कुछ सपने बुनता है। 

कहीं कुछ बुज़ुर्गों के अकेलेपन की सिसकी 
ख़ाली ख़ाली घोंसले में आहें भरता है 
बच्चों के आने की आहट भर से
पकवानों की ख़ुश्बू से भर उठता है। 
 
हर एक घर कुछ कहानी कहता है
कुछ यादें सिमटी होती हैं 
कुछ सपने बुनता है। 
 
ख़ाली बर्तन के डग डगाने से निकाली, 
भूख से बिलखते मासूमों की सिसकी 
भूख और लाचारी के मर्म सा सिसकता 
बेचैन करवटों सा सिहर उठता है। 
 
हर एक घर कुछ कहानी कहता है
कुछ यादें सिमटी होती हैं 
कुछ सपने बुनता है। 
 
कोने में खड़ा वो एक वीराना सा घर है 
कुछ रोज़ हुए क्रंदन अब धीर सा हुआ है 
मालूम पड़ा फ़ौजी था इकलौता बेटा 
पिता जिसको कंधा दे करके लौटा है।
 
हर एक घर कुछ कहानी कहता है
कुछ यादें सिमटी होती हैं 
कुछ सपने बुनता है।
 
वो दूर जो है दिखता उस घर में 
बेटियाँ हैं और सिर्फ़ बेटियाँ हैं 
उन बेटियों के नाम का इलाक़े में दबदबा है 
एक डॉक्टर बनी है तो एक है वैज्ञानिक 
एक पुलिस की अधिकारी एक फ़ौज में सिपाही। 
 
हर एक घर कुछ कहानी कहता है
कुछ यादें सिमटी होती हैं 
कुछ सपने बुनता है।

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