हमारे राम की 18 कहानियाँ: 3. राम का न्याय 

01-01-2024

हमारे राम की 18 कहानियाँ: 3. राम का न्याय 

शशि महाजन (अंक: 244, जनवरी प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

गोधूलि का समय था, सीता ने कुटिया के मुख्य द्वार से देखा, बहुत से ग्रामीण पुरुष धूल उड़ाते हुए चले आ रहे हैं, अर्थात्‌, आज फिर वह चाहते हैं रामन्याय करें, रात को यहीं रहेंगे और सीता को उनके भोजन तथा शयन की व्यवस्था करनी होगी। उन्होंने भीतर जाकर राम और लक्ष्मण को बुलाया ताकि वे आगे बढ़कर अतिथियों की अगवानी कर सकें। स्वयं जाकर उन्होंने जल का मटका तथा कुछ कुल्हड़ बाहर रख दिए, ताकि अतिथि सबसे पहले अपनी प्यास बुझा सकें और हाथ मुँह धो सकें। राम और लक्ष्मण मुख्य द्वार पर स्वागत कर रहे थे, और सीता भीतरी द्वार पर अतिथियों से जल ग्रहण करने तथा जंगल से ताज़ा आये फल लेने का आग्रह कर रही थी। 

जब अंतिम अतिथि आ चुका तो राम और लक्ष्मण भी भीतर आ गए। लक्ष्मण भीतर से चटाइयाँ ले आये, राम बैठे तो सभी अतिथि उन्हें घेर कर बैठ गए। लक्ष्मण ने सीता के निकट जाकर कहा, “इनके भोजन की क्या व्यवस्था की जाये भाभी?” 

“मेरे विचार से तुम बाहर आग लगा दो, लकड़ियाँ भीतर बहुत हैं, मैं उस पर खिचड़ी चढ़ा देती हूँ, चावल, घी, नमक और दाल कुटिया में हैं, आशा है पर्याप्त होंगे, सारी रात आग को जलाये रखना होगा, इतने सारे प्राणी कुटिया में नहीं समा सकते, आग से गर्मी भी मिलेगी और वन्य प्राणियों से रक्षा भी हो जायगी,” सीता ने कहा। 

“सोने के लिए कुछ जन चटाइयों पर सो जायेंगे, और कुछ मृगछालों पर,” लक्ष्मण ने सुझाया। 

“हाँ, उनकी व्यवस्था में कठिनाई नहीं होनी चाहिए,” सीता बोलीं।

“भैया के भक्त तो बढ़ते ही जा रहे हैं, अच्छा हो हम भोजन, शयन आदि की व्यवस्था को बढ़ाने का उपाय सोचें,” लक्ष्मण सोचते हुए बोले। 

“वो भी हो जायगा,” कहकर सीता भीतर चल दी और लक्ष्मण भी लकड़ियाँ उठाने के लिए उनके पीछे चल दिए। 

बाहर राम कह रहे थे, “इससे पहले की हम वार्तालाप आरम्भ करें मैं चाहता हूँ हम सब संध्या के मंत्र पढ़ें और ईश्वर से मन की शान्ति की प्रार्थना करें।” 

सबने आँखें बंद कर लीं, और उस जंगल में मंत्रों का स्वर गूँज उठा, लक्ष्मण और सीता, एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिए, वे जानते थे कि राम किसी भी चर्चा से पहले सबसे पहले मन की शान्ति की प्रार्थना करते थे, ताकि सत्य बिना भावनाओं में भटके, स्वयं उजागर हो सके। 

प्रार्थना के बाद, राम ने हाथ जोड़कर पूछा, “कहिये अतिथिगण, कैसे आना हुआ?” 

“राम, आप तो जानते हैं, इन जंगलों में कई गाँव बसे हैं, कुछ गाँव नदी किनारे हैं, कुछ पहाड़ पर हैं, कुछ घाटी में हैं, कहने का अर्थ है, प्रत्येक कीअपनी एक अर्थव्यवस्था है, जो उस गाँव के लोगों के लिए पर्याप्त है, परन्तु दूसरे गाँव के लोग घुसकर हमारे गाँव में अपना सामान बेचने चले आते हैं जिससे हमारे गाँव की अर्थव्यवस्था में अस्थिरिता आ जाती है, और बार-बार युद्ध की स्थिति का निर्माण होता है। हम यहाँ बारह गाँव के प्रतिनिधि आये हैं आप निर्णय करें,” एक प्रौढ़ ने कहा।

राम ने कहा, “कृपया जो लोग इसके पक्ष में हैं हाथ उठायें।” 

छह लोगों ने हाथ उठा दिया, राम मुस्कुरा दिए। 

“तो पहले विपक्ष के लोग बोलें,” राम ने मुस्कुरा कर कहा। 

“सुनिए राम, हमारा गाँव नदी किनारे है, हम चाहते हैं हम मछलियाँ बाक़ी के गाँवों में बेचें और बदले में इनके यहाँ जो है, खरीदें,” किसी ने खड़े होकर कहा। 

“और राम हमारे यहाँ की भूमि उपजाऊ है, हम अपनी उपज दूसरे गाँवों में बेच कर इनका सामान लेना चाहते हैं,” दूसरे ने कहा। 

“बहुत अच्छे,अब पक्ष के लोग बोलें,” राम ने हाथ उठाकर कहा। 

“राम, हमारी ज़मीन पथरीली है, यदि ये लोग अपनी उपज बेचते हैं, तो हमारी उपज कोई नहीं लेता, वह इनसे महँगी होती है, बाहर के लोग हमारी जीविका समाप्त कर रहे हैं,” एक युवक ने दुखी होते हुए कहा। 

“और राम, हमारे गाँव की धरती हमें इतना देती है जो हमारे लिये पर्याप्त है, पर यह भी सही है कि हमारे कारीगर इतने कुशल नहीं हैं, बाहर वाले आकर हमारे कारीगरों की जीविका को नष्ट करते हैं,” एक वृद्ध ने युवक के समर्थन में कहा। 

राम ने उस व्यक्ति के कंधे पर हाथ रखते हुए, मुस्कुरा कर कहा, “मैं समझ रहा हूँ।” 

फिर थोड़ा रुककर राम दृढ़ता पूर्वक बोले, “मेरे विचार से एक व्यक्ति को यदि दूसरे गाँव मैं अपना सामान बेचना है तो, उसे ऊँचे कर देने होंगे।” 

किसी ने आपत्ति उठाते हुए कहा, “राम, व्यापार है तो सब कुछ है, लोग इस तरह से एक-दूसरे के रहन-सहन, भाषा, विचारों को जानते हैं।” 

“और इससे युद्ध भी होते हैं। धनी गाँव निर्धन गाँवों को हथियार बेचकर और समृद्ध हो जाते हैं,” पहले 
वाले युवक ने विरोध के स्वर में कहा। 

राम ने कहा, “यह सही है आवश्यकता से अधिक धन पाने की लालसा ही दूसरों के अधिकार छीनने की भावना को जन्म देती है।” 

“पर राम मनुष्य इस लालसा के साथ ही जन्म लेता है,” विरोधी दल में से किसी ने दार्शनिकता पूर्वक कहा। 

राम यकायक खड़े हो गए, उनके चेहरे पर तेज था और आँखों में दृढ़ता, “तो मनुष्य का युद्ध इस भावना के साथ होना चाहिये, न कि एक दूसरे के साथ।” 

सीता ने आकर कहा, “भोजन तैयार है, आप सब हाथ धोकर पंक्ति मैं बैठ जाएँ।” 

“हमें भोजन नहीं न्याय चाहिए। क्या आज करुणामय राम न्याय देने मैं असमर्थ हैं?” किसी अतिथि ने चुनौती देते हुए कहा। 

“यह आप क्या कह रहे हैं अतिथि?” लक्ष्मण ने क्रोध से कहा। 

“राम न्याय देगा, पर उससे पहले आप सीता की रसोई से कुछ ग्रहण करें,” राम ने बिना संयम खोये, हाथ जोड़ते हुए कहा। 

सभी शांत हो गए, राम, सीता, लक्ष्मण तीनों ने भोजन परोसा, सीता ने देखा, खिचड़ी समाप्ति पर है, पर अतिथि अभी भूखे हैं, उसने राम की और चिंता से देखा, राम के चेहरे पर पीड़ा उभर आई। उन्होंने हाथ जोड़कर कहा, “आज राम का सामर्थ्य बस इतना ही है।” 

“राम तुम्हारे आग्रहवश हम बैठे थे, वरना हमारी भूख तो तुम्हारे स्नेह से ही मिट गई थी,” किसी ने कहा। 

राम, सीता, और लक्ष्मण, तीनों ने हाथ जोड़ दिए। 

सोने के लिए चटाइयाँ तथा मृगछालाएँ बिछा दी गई, “राम, हमें न्याय दो, सुबह सूर्य उदय से पहले हमें चल देना है,” पहले वाले वृद्ध ने कहा। 

“मेरा न्याय यह है कि यदि कोई गाँव अपनी सीमाओं को व्यापार के लिए नहीं खोलना चाहता तो दूसरों को उसके इस चयन का सम्मान करना चाहिये,” राम के निश्चयपूर्वक कहा। 

कुछ लोग राम के इस निर्णय से इतने प्रस्सन हुए कि उन्हें कंधों पर उठा लिया। राम के आग्रह पर नीचे उतारा तो जय-जयकार के नारों से जंगल को गुंजायमान्‌ कर डाला। 

राम ने उन्हें शांत कराते हुए कहा, “परन्तु मेरी बात अभी समाप्त नहीं हुई है।” 

सब शांत होकर उनके आगे बोलने की प्रतीक्षा करने लगे। 

राम ने कहा, “मैंने इसलिए यह निर्णय दिया है, क्योंकि मैं नहीं चाहता मनुष्य के जीवन का ध्येय धन अर्जित करना हो। मैं चाहता हूँ, हमारे युग के मनुष्य के जीवन का ध्येय शान्ति प्राप्त करना हो, ताकि सब मानसिक तथा बौद्धिक ऊँचाइयों को छू सकें।” 

राम की वाणी मैं इतनी आद्रता थी कि लग रहा था जैसे हवा भी दम साधे उनके शब्दों की प्रतीक्षा कर रही थी। 

राम ने कहा, “प्रत्येक गाँव अपनी सीमा पर गुरुकुल बनवाये, जहाँ ओजस्वी गुरु सभी विषयों पर शिक्षा दें, मनोरंजन-गृह बनवायें, स्वतंत्र व्यापार के स्थान पर स्वतंत्र शिक्षा और मनोरंजन हो, इस तरह से लोग आपस में 
मेल-जोल बढ़ाएँ, और एक ऐसे युग का निर्माण करें जिसमें हथियारों की आवश्यकता न रहे।” 

राम के इस विचार ने सबका मन मोह लिया। एकांत में राम ने सीता से पूछा, “कैसा लगा मेरा निर्णय?” 

“ठीक आपकी तरह मोहक,” सीता ने मुस्कुरा कर कहा, ”लक्ष्मण भी बहुत प्रसन्न थे, पर आज उन्हें भी भूखा सोना पड़ा।” 

“कोई बात नहीं, कल यह जंगल हमें भरपूर देगा, राम ने आसमान देखते हुए स्वप्नमयी आँखों से कहा। 

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