एक लघु कथा

01-06-2022

एक लघु कथा

मीनाक्षी झा (अंक: 206, जून प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

दिवंगत हो गए बच्चों के पितामह। पितामह के बंधु-बांधव क़रीब ही बसे थे और घर लोगों से भरा था। 

पितामही थी त्रिपुरा सुंदरी और उनकी लाड़ली भी पद्मिनी थी। 

बन ठन के ना रहने पर मुझ पर सदैव शासन करती रही थी। 

बहुत हल्के रंग के कपड़े दुकान से बदल-बदल कर आ-जा रहे थे। 

चटक नहीं तो एकदम फीका भी नहीं चलेगा, इन पर कैसे फबेगा? 

इस प्रश्न पर वाद-विवाद हो रहा था। 

तेरह दिन आते-आते सफ़ेद केश भी रंग से रँगे जा रहे थे, आज सूतक समाप्त होने जा रहा था। परिजन पूजा में उपस्थित होने जा रहे थे। पद्मिनी के नैनों में काजल की रेखा सुशोभित हो रही थी, “कुछ ज़्यादा हो गया क्या?” प्रश्न वह मुझसे पूछती थी, अवाक्‌ सी मैं उसको देखती रह गई, जो सर्वदा माता-सहित कहती थी कि यह ना आती तो पिताजी कुछ और दिन सुखपूर्वक जी लिए होते। 

आनंद चिन्मय है या तन्मय? 

मेरे लिए अन्वेषण का विषय है! 

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