दादी माँ की हर सुबह
मीनाक्षी झादादी सुबह तड़के उठती थी
चूल्हे के पास जाकर मिट्टी
के लेप से चूल्हे को पोछती थी
हमेशा सर पर साड़ी रखती थी
चप्पल पहनने का अभ्यास ना था
चप्पल भूल जाती थी यहाँ-वहाँ
कभी ट्रेन में तो कभी किसी के यहाँ
शहर में उसका मन नहीं लगता था
गाँव में उसकी जान बसी थी
हर आँगन दिन में एक बार
ज़रूर घूमती और झाँकती
कुछ कहती थी और कुछ सुनती थी
मेहमान आते थे तो चार घर से
चार पकवान ले आती घर को
मिट्टी के बर्तन में दाल पकाती थी
झोपड़ी में भी रहती थी दादी
पर रोज़ कामवाली आती थी
खेत में जो मज़दूर काम करते थे
उनके लिए 50 रोटियाँ बनाती थी
मैं तो 5 बनाकर थक जाती हूँ
ठंडी में आग जलाती थी
आग में आलू पकाती थी
हमें भी खिलाती थी
उस पर चाय भी बनाती थी।