एक चहुँ-आयामी लेखक: मेरी नज़र से

01-05-2025

एक चहुँ-आयामी लेखक: मेरी नज़र से

पूजा अग्निहोत्री (अंक: 276, मई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

सन्दीप तोमर एक संवेदनशील रचनाकार हैं। उनकी कहानियों और उपन्यासों में मध्यवर्गीय जीवन, नारी-वेदना, सामाजिक चेतना, आम आदमी की कराह और स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की पड़ताल निरंतर होती रही है। रूसी कहानीकार प्रेमचंद, शरतचंद्र, जयशंकर प्रसाद उनके प्रिय और आदर्श कहानीकार और क़िस्सागो हैं। लघुकथाकारों में मंटो और जगदीश कश्यप की चर्चा बार-बार वे अपनी चर्चाओं में करते हुए अघाते नहीं हैं। शरदचंद का नायक श्रीकांत उनका प्रिय कथा नायक है। जिसमें उन्हें अपना अक्स दिखाई देता है। सन्दीप तोमर एक कुशल आलोचक भी हैं, उन्होंने कितनी ही पुस्तकों की समीक्षा करके अपनी आलोचनात्मक प्रतिभा का परिचय दिया है। उनका प्रथम प्रकाशित उपन्यास ‘थ्री गर्ल्फ़्रेंड्स’ चर्चित उपन्यास है। जिसमें भोगे हुए जीवन की विसंगतियों को ठीक करने की एक छटपटाहट साफ़ तौर पर दिखाई देती है। इसी भोगे हुए जीवन का उल्लेख वे बार-बार अपनी रचनाओं में करते हैं। पूर्व के जीवन के हर पल की सार्थकता/व्यर्थता पर उनकी पैनी नज़र रहती थी। स्त्री पात्र उन्हें परेशान करते हैं। उन्हीं के शब्दों में, “मेरी नायिकाओं ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा? यह मेरी व्यक्तिगत हार है या एक विशेष समय में होने वाली नासमझी और अपरिपक्वता, जहाँ कुछ भी अनुरूप नहीं रहा। मैं इस्तेमाल होता गया। मुझे अक्सर शरदचंद के ‘श्रीकांत’ की याद आती है जो अपनी नायिकाओं के सामने सैदव कमज़ोर पड़ता गया। काश, जो कुछ भी मैंने जिया, वह ‘रियल लाइफ़’ न होकर ‘रील लाइफ़’ होता तो उसमें से जो अस्वीकार्य था, उसे काट कर अलग किया जा सकता था या फिर ये कहानी या उपन्यास के रफ-ड्राफ़्ट की तरह होता तो इसे सुधारकर ठीक किया जा सकता था।” सन्दीप तोमर कहते हैं कि अगर फिर से ज़िन्दगी के क्षण जीने का मौक़ा मिले तो वे दुखद पलों को पुनः जीना चाहेंगे। ये वाक्य उनके पूर्व के कथनों को झुठलाने जैसा लगता है . . . वे प्रेमिका या जीवन के विशेष पलों को लेकर अब संजीदा रहना नहीं चाहते। उनका मानना है कि उस समय जो निर्णय उन्होंने लिए हैं; उसके अलावा उनके सामने कोई विकल्प नहीं बचता था। थ्री गर्ल्फ़्रेंड्स की नायिकाओं के बारे में बात करते हुए वे कहते हैं, “जो कुछ उन्होंने किया, उनके पास भी शायद कोई विकल्प नहीं था। वे समाज की महिला पात्र हैं और उन्होंने समाज में जिस तरह से शिक्षा पायी है या यूँ कहूँ जिस तरह की परवरिश उनकी रही है उससे इतर उनके पास करने को कुछ बचता नहीं।”

सन्दीप तोमर का जीवन दर्शन आत्मविश्लेषणवादी है। वे अपने जीवन को प्रत्येक कोण से देखने/परखने का अथक प्रयास करते हैं, उन्हें आत्म-आलोचना से कोई परहेज़ नहीं है। जनवादी सोच उनका सबल पक्ष है। वे समाज में व्याप्त जिन विसंगतियों को देखते हैं, उनसे उनका हृदय द्रवित होता है, तब वे लघुकथा जैसी मुश्किल विधा को अपना हथियार बना समाज को सचेत करने का प्रयास करते हैं। उनका आत्मविश्लेषणवादी नज़रिया स्वयं को आज की सामाजिकता से जोड़कर अपने सामाजिक सरोकारों को तलाशते के लिए लालायित करता है। समाज में व्याप्त आडंबर, पाखंड, बनावटीपन और दिखावा उन्हें अन्दर तक झकझोरता है तब वे इस तरह की सामाजिक विषमताओं को सिरे से ख़ारिज करते हैं। आज की उपभोक्तावादी सोच और स्वार्थभरी जीवन शैली के बीच पनपे हुए कपटी मानव सम्बन्ध भी उनकी मुख्य चिंता में शामिल हैं लेकिन इस मकड़-जाल में फँसने से वे स्वयं को बचा नहीं पाते हैं और न ही दूसरों को इस तरह की नियत और मौक़ापरस्ती से ही स्वयं को अलग कर पाते हैं। थ्री गर्ल्फ़्रेंड्स की एक नायिका जब उनके बारे में कहती है, ‘सुदीप तो मेरा एटीएम है जिसे मैं जब चाहे जहाँ और जैसे चाहे जब इस्तेमाल कर सकती हूँ’, जो वे इसे बड़ी सहजता से स्वीकार कर लेते हैं। जब उनके मित्रगण उन्हें आगाह करते हैं कि नायिका आपको इस्तेमाल कर रही है तो उनका जवाब होता है, “जब स्वयं को पता हो कि सामने वाला आपको इस्तेमाल कर रहा है तो इस्तेमाल होने का आनंद ही कुछ और है।” वे कहते हैं, “जिस तरह समाज में लोग अपना असली चेहरा छिपाकर रखते हैं और नक़लीपन का आवरण ओढ़ समाज में पाक-साफ़ बने घूमते हैं उनके लिए मैं कहता हूँ, लोग मुखौटे पहनकर अपनों को ही छल रहे हैं, छल क्या रहे हैं छलने के भ्रम में जी रहे हैं, ये लोग अपने मूल रूप को कहीं क़ैद में रख छोड़े हैं और जो वो घूम-फिर रहे हैं वो असल में उनकी छाया-प्रतिलिपियाँ हैं, जिनका असल से कोई वास्ता नहीं है। उन्हें लगता है कि सामने वाले को असल और नक़ल का अंतर नहीं पता है, बस यही उनकी नासमझी है। सबसे मज़ेदार बात ये है कि ये मुखौटे धारण किये लोग धीरे–धीरे अपने उस कहीं तिजोरी में रखे मूल स्वरूप को खो देते हैं और वह छायाप्रति जिसे लिए वे घूमते रहे वही छाया-प्रति उनकी मूल प्रति में रूपायित हो जाती है और ये कारनामा इतनी सहजता से होता है कि उन्हें इस रूपांतरण का इल्म तक नहीं होता। अब उनकी नियति ही ये हो जाती है कि शेष ज़िन्दगी उन्हें इसी मुखौटे के साथ काटनी पड़ती है। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि हमेशा मेकअप में रहने वाली सुंदरी की पहचान जब उसी तरह की बन जाती है और जब कभी आप उसे मूल रूप यानी बिना मेकअप के देखेंगे तो उसमें आपको कोई अलग ही व्यक्ति दिखाई देगा, अब यह समझना मुश्किल होगा कि मूल प्रति कौन सी है? उस सुन्दरी की भी ये विवशता होती है कि वह इस आशंका में जीती है कि इस रूप सज्जा से इतर अगर किसी ने मुझे देखा तो मेरा परिचय कौन सा होगा? इसी आशंका में वह सुन्दरी किसी के साथ आत्मीयता के स्तर तक नहीं आ पाती। ‘थ्री गर्ल्फ़्रेंडस’ की नायिका भी इससे जुदा नहीं है।” इस तरह से देखें तो सन्दीप तोमर का सम्पूर्ण जीवन इस तरह की विसंगतियों से भरा पड़ा है और इस तरह के अन्धकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होने की प्रक्रिया में वे लगातार संलग्न रहते हैं। 

सन्दीप तोमर के जीवन के दो नहीं तीन भिन्न धरातल हैं। एक साहित्यिक धरातल, दूसरा निजी (व्यक्तिगत) और तीसरा जनवादी (समाजवादी धरातल)। एक साहित्य का समाज, दूसरा उनका व्यक्तिगत समाज और तीसरा राजनीतिक (जनवादी पक्ष)। सन्दीप तोमर के लेखन को अगर अलग-अलग पैरामीटर पर देखें तो वे कहानियों में एक साहित्यिक पक्ष के साथ खड़े दीखते है, उपन्यासों में वे व्यक्तिवादी पक्ष के साथ खड़े हैं और लघुकथाओं में वे जनवादी हो जाते हैं। उनकी वैयक्तिक दुर्बलताएँ जिस पर बाह्य समाज उनके साहित्यिक जीवन के प्रारम्भ से उन पर आक्रमण करता रहा है, उनकी सन्दीप तोमर कभी परवाह नहीं करते। बचपन से लेकर वर्तमान समय तक अनेकों दुर्घटनाओं से क्षत-विक्षत शरीर और मन (भी) और उसकी पीड़ा को सहते-सहते ही उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन के लक्ष्य को साधा है। शारीरिक अक्षमता या पीड़ा कभी उनकी साहित्य साधना के रास्ते में अवरोध नहीं बनी। वे बेबाक होकर लिखते हैं। साहित्य-जगत में उनका पदार्पण होते ही चर्चित और लोकप्रिय होना और उनके लेखन को साहित्य जगत में स्वीकृति मिलने का कारण उनका लेखन और उनके अपने विशेष चिंतन का तरीक़ा है। वे बारीक़ी से समाज का अवलोकन व विश्लेषण करते हैं, यह उनका सबल पक्ष है। 

सन्दीप तोमर ‘नई कहानी’ को लिखने की विकसित हुई शैली से भी परिचित हैं उसके साथ-साथ लघुकथा के शिल्प और कथा-विन्यास के मापदंडों से भी पूर्णतः परिचित हैं। अपने अट्ठारह-बीस साल के सतत लेखन में उन्होंने लघुकथा के विधान पर जितनी मेहनत से काम किया, वह उनकी रचनाओं में परिलक्षित होता है। कहानी और उपन्यास लेखन में वे आत्मकथ्यात्मक शैली को अपनाते हैं। उपन्यास के क्षेत्र में उन्होंने नए रचनाकारों को आज के सामाजिक और राजनीतिक सरोकारों के अनुकूल लिखने के लिए एक आधारभूमि देने का कार्य किया है। 

उन्हें आज की चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रेरित किया और स्वयं क़लम के माध्यम से एक तरह से उनके साथ खड़े रहे। अखिलेश द्विवेदी और दिलीप सिंह जैसे जुझारू प्रतिभावान लेखकों के निर्माण में उनका सहयोग अप्रतिम माना जाता है। लेखिकाओं से पेशागत निकटता और निजी जीवन में महिला पात्रों से प्रगाढ़ता उन्हें संदेहों के कठघरे में हमेशा खड़ी करती है, लेकिन सन्दीप तोमर इन बातों की तरफ़ न कभी ध्यान देते न ही इनसे विचलित होते हैं। उनका मानना है कि साहित्य और गृहस्थी जीवन के दो अलग-अलग पहलू हैं, जिन्हें जोड़कर नहीं देखा जा सकता। अखिलेश द्विवेदी द्वारा लिए गए एक साक्षात्कार में वे एक सवाल के जवाब में कहते हैं, “लेखन और गृहस्थी को मैं अलग-अलग रूपों में देखता हूँ, समाज में चारों ओर आपको अलग प्रेम कथानक मिलते हैं तो ये एक महज़ संयोग ही कहा जा सकता है कि आपको उसमें मेरे निजी जीवन का आभास हो . . . फिर सच जब सामने आता है तो अधिक मुखर होकर पुनः प्रस्फुटित होता प्रतीत होता है . . . इसे किसी एक नायिका या पूर्व प्रेमिका से जोड़ना उचित नहीं . . . हाँ इसे यूँ कहा जा सकता है कि किसी एक नारी पात्र के रूप में विभिन्न नायिकाएँ मेरे लेखन का हिस्सा बनती हैं . . . जिससे कई बार पाठक को एक ही नायिका का भ्रम पैदा होता है . . .” 

सन्दीप तोमर प्रेम को लेखन का एक मज़बूत पक्ष मानते हैं उनका कहना है कि प्रेम के बिना साहित्य अधूरा है। उन्हीं के शब्दों में—मेरी अधिकांश कहानियाँ प्रेम के इर्द-गिर्द घूमती हैं . . . असल में जीवन में प्रेम है तो सब कुछ है . . . प्रेम से इतर मैं जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता। फिर प्रेम सिर्फ़ दो विपरीतलिंगी जीव तक ही नहीं सिमटा है। हर रिश्ता प्रेम पर ही तो टिका है . . . प्रकृति बहुत ख़ूबसूरत है प्रेममय है। लेखक जो देखता है वही तो लिखता है। कहानी कल्पना से नहीं लिखी जा सकती . . . फ़िक्शन भी यथार्थ के बिना सम्भव नहीं। लेकिन कई कहानियाँ हैं जो सामाजिक ताने-बाने को लेकर लिखी गयी हैं। एक ऐसी ही कहानी है ‘ताई’ जिसमें सास-बहू के रिश्तों की बारीक़ियों को दिखाया गया है। 

सन्दीप तोमर जब लिखते हैं तो अपने रचनाकर्म में इतना डूब जाते हैं कि उन्हें ख़ुद की सुध-बुध नहीं रहती। उनके लेखन में महादेवी वर्मा के रेखाचित्रों की झलक भी मिलती है शरदचंद्र की क़िस्सागोई भी, वे ओशो की तरह प्रवचन की मुद्रा में भी आ जाते हैं तो कहीं कार्ल मार्क्स की तरह चिंतन की मुद्रा अख़्तियार कर लेते हैं। 
उनके सान्निध्य और मार्गदर्शन से अनेकों नवोदित कथाकारों/कवियों को सीखने का अवसर मिल रहा है। वे सोशल मिडिया का इस्तेमाल नवोदित कथाकारों/कवियों को लिखने के गुर सिखाने का सतत प्रयास करते रहते हैं। 

सन्दीप तोमर अपने दांपत्य संबंधों को साहित्य जगत से एकदम अलग रखने के हिमायती हैं। उनका मानना है कि दाम्पत्य का लगाव या अलगाव साहित्य का हिस्सा बनाया जाए ये एकदम आवश्यक नहीं। वो कहते हैं—किसी के निजी प्रसंगों को क्यों साहित्य के नाम पर उछाला जाए, इसका निर्णय रचनाकार पर छोड़ देना चाहिए कि वह किस तरह का साहित्य रचे। कुछ लोग यश, मान, प्रतिष्ठा और सफलता के चरम पर पहुँचकर कुछ भी लिखना शुरू करते हैं। 

सन्दीप तोमर के जीवन में एक समय धन कमाने की लालसा जन्म लेने लगी। उन्होंने अध्यापन के साथ कई क्षेत्रों में हाथ आज़माने की कोशिश की लेकिन उस मात्रा में धन कभी नहीं आ सका, जिसकी उम्मीद उन्होंने की। वे इतना अवश्य चाहते थे कि उनका जीवन ऐशो-आराम और सुविधा संपन्न हो। उनके जीवन के लगाव/बिखराव को साहित्य के माध्यम से कभी नहीं आँका जा सकता। वे कभी इस विषय पर स्पष्टीकरण भी नहीं देते और न ही किसी के साथ या निजी जीवन में वे अपने व्यवहार के औचित्य को सिद्ध करने का प्रयास ही करते हैं। ‘जहाँ मैं हूँ’ उनका आत्मकथात्मक उपन्यास है जिसमें उन्होंने अपनी संघर्षगाथा लिखने का एक प्रयास किया है जिसमें अपने पक्ष में उनकी आत्म-स्वीकृतियाँ मिलती हैं, जो ‘एक अपाहिज की डायरी’ नाम से प्रकाशित हुआ। वैवाहिक जीवन के किसी पहलू पर वो क़लम नहीं चलाते हैं। बहराल ये उनका लेखन का निजी तरीक़ा है जिसमें आलोचक के लिए कहीं कोई स्पेस नहीं है। 

सन्दीप तोमर एक बेहद प्यारे इंसान हैं, इस सत्य को उनके सभी साहित्यिक/ग़ैर-साहित्यिक मित्र व आलोचक सब क़ुबूल करते हैं। उनके नज़दीकी मित्रों की निर्मिति में सन्दीप तोमर के बौद्धिक संबल और नवोदित लेखकों के लिए मार्गदर्शन को दरकिनार नहीं जा सकता। 

सन्दीप तोमर एक महत्त्वपूर्ण बात को स्वीकार करते हुए कहते है, “मैं पूरी ईमानदारी के साथ स्वीकार करता हूँ कि जो कुछ भी मेरे अन्दर अच्छाई का अंश या प्यारा या जीवन्त जैसा कुछ है, वह सब मेरे मित्रों, मेरे पारिवारिक लोगों, आत्मीयों जनों का दिया हुआ है और जो अवगुण ग़लत आदतें, मेरा अहम् या कुछ भी अरुचिकर मेरे अन्दर समाहित है—वह सब मेरा ख़ुद का है, उसमें किसी का कोई अख़्तियार नहीं है। मैं तहेदिल से मेरे सगे-सम्बन्धियों, मेरे मित्रों का कृतज्ञ हूँ जिन्होंने मुझे मान–सम्मान दिया। उनकी उदारता ही मेरा संबल है। कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि ज़िन्दगी में जो कटुता, विश्वासघात, अपमान और ग़लतफ़हमियों जैसा कुछ है वो मेरी शारीरिक अक्षमता के कारण है, मुझे लगता है कि यह बात एकदम नहीं है। ‘थ्री गर्लफ्रेंड्स’ की नायिकाओं की अपनी समझ उनका सामाजिक विकास उनके निर्णय के ऊपर हावी रहा जिससे मैं अपना जीवन प्रभावित हुआ नहीं देखता। मगर इतना अवश्य कहूँगा कि मित्रों ने जितना सम्मान, प्यार और अपनापन दिया है वही सब बार-बार उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने को बाध्य करता है और कृतज्ञता ज्ञापित करना मेरे लिए उऋणी होने जैसा है। मेरे मित्रों ने मुझे जो दिया उसकी तुलना भी किसी बहुमूल्य निधि से भी नहीं की जा सकती। ये सब सोचकर कभी-कभी मैं अभिभूत हो जाता हूँ कि अगर ये मित्र न होते तो संभवतः मैं न होता, मैं यानी एक रचनाकार! अगर मेरे अज़ीज़ मित्र मेरे साथ न होते तो शायद ये शख़्स किसी गुमनाम गली में खो गया होता।” 

सन्दीप तोमर ने अपनी रचना प्रक्रिया में साहित्यकार की भूमिका को निभाने की पूरी ईमानदारी से कोशिश की है। ‘एक अपाहिज की डायरी’ इसका एक प्रमाण है। कहानीकार के रूप में वे किसी शिल्प या भाषा की कलिष्टता की परवाह नहीं करते हैं। उनके लिए कहानी कहना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जैसे जीवन के अन्य कार्य स्वाभाविक है ऐसे ही रचना कर्म है। हाँ, वे रचनाधर्मिता में अनुशासन को महत्त्व देते हैं, उनके लिए किसी भी विधा का अनुसंधान महत्त्वपूर्ण है लेकिन उन्हें प्रयोगधर्मिता से परहेज़ नहीं है। ‘एक अपाहिज की डायरी’ में सन्दीप तोमर के जीवन के वो महत्त्वपूर्ण पल व्यक्त हुए हैं जो संभवतः एक व्यक्ति के सामाजीकरण के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से ज़िम्मेदार होते हैं। उनके लिए अपने पैतृक स्थान का अध्ययन समय बहुत प्रिय है क्योंकि वे ही उनके निर्माण के दिन थे, साथ ही सरकारी नौकरी त्याग कर दिल्ली विश्वविद्यालय आकर अध्ययन करने के समय को वो याद करते हैं, जहाँ से जीवन को एक दिशा और साहित्यिक पहचान मिलनी शुरू हुई। ‘थ्री गर्लफ्रेंड्स’ की नायिकाओं से निकटता भी इसी समय पनपी। उन्हें प्रो. चाँद किरण जी सलूजा से अपार स्नेह और संबल प्राप्त हुआ, जिसका ज़िक्र वे अपनी बातचीत में आत्ममुग्ध होकर अक्सर करते रहते हैं। गुरुदेव से वार्तालाप को वे अपने विचारों की परिपक्वता का माध्यम मानते हैं। 

सन्दीप के दो उपन्यास और आये जो ‘दीपशिखा’ और ‘एस फ़ॉर सिद्धि’, दोनों ही उपन्यास स्त्री-प्रधान हैं। जिनमें स्त्री का साझा दर्द समाहित है। दीपशिखा की कहानी को पौराणिक स्टाइल में प्रस्तुत किया गया है तो सिद्धि आधुनिक ज़माने की स्त्री का प्रतिनिधित्व करती है। सन्दीप तो दोनों ही पुस्तकों से ख़ासी प्रसिद्धि मिली। इतना ही नहीं उनकी आत्मकथा ‘कुछ आँसू कुछ मुस्कानें’ भी उनकी बेहद ईमानदारी और बेबाकी की मिसाल है, जिसमें वे अपने विकलांगता के चलते संघर्षों के साथ अपने लेखकीय जीवन पर लेखन करते हैं। यह किताब आम आत्मकथाओं से हटकर क़िस्सागोई से भरपूर है, यही बात सन्दीप तोमर को नए लेखकों से अलग श्रेणी में खड़ा करती है। सन्दीप ने अपने उपन्यास लेखन में संस्मरणात्मक शैली को अपनाया, वे कहीं पर लिखते हैं कि जब आत्मकथ्यात्मक शैली में उपन्यास लिखे जा सकते हैं तो संस्मरणात्मक शैली में क्यों नहीं? इसी शैली में लिखने का परिणाम 2025 में अद्विक प्रकाशन की महत्वाकांक्षी योजना यादों के झरोखे से के तहत उनकी पुस्तक ‘फिर न लौटा मन’ एक संस्मरणात्मक किताब का विश्व-पुस्तक मेला में विमोचन होना है। 

सन्दीप तोमर की इच्छा थी कि वे वकालत करें या फिर सक्रिय राजनीति में भागीदारी करें, लेकिन दिल्ली आगमन और ‘थ्री गर्लफ्रेंड्स’ की प्रमुख नायिका के साहित्य प्रेम ने उन्हें फ़्री लांसिंग लेखन की ओर आकर्षित किया। उन्हें शीघ्र ही आभास हो गया कि आज के दौर में लेखन को आजीविका का साधन नहीं बनाया जा सकता। ऐसा कोई आस-पास नहीं था जो उनकी फ़्री लांसिंग प्रवृति का आजीवन पोषक बनकर रह सकता। एक-एक करके तीन नायिकाओं की वैवाहिक जीवन के लिए असहमतियों के बावजूद वो टूटते नहीं बल्कि स्वयं जल-जल कर स्वयं के जीवन को स्वयं ही दीप्त करते है। हालाँकि वे स्वयं कहते हैं कि उनके साहित्यिक निर्माण में उन नायिकाओं का योगदान है जिन्होंने उनके अस्तित्व को नकारा। इन बातों का उल्लेख सन्दीप तोमर को निश्चित ही अपनी आत्मकथा में करना चाहिए। हालाँकि वे इस बात के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हैं। 

उनका लेखन चहुँ-आयामी हैं—कहानी, उपन्यास, कविता और लघुकथा। वे चारों क्षेत्रों में ही नएपन के लिए जाने जाते हैं और सफल भी हुए है। उनकी मानसिक संरचना बहुत ही सहज और बहुआयामी होते हुए भी जटिल भी है। सन्दीप तोमर सरीखे व्यक्त देखने में अत्यंत सरल होते हैं लेकिन ऐसे व्यक्तियों को समझ पाना बहुत कठिन होता है। ऐसे व्यक्तियों के बारे में अनुमान लगाना भी मुश्किल होता है। अभी सन्दीप तोमर के पास साहित्य समाज को देने के लिए बहुत कुछ है। देखना ये है कि अपनी जटिल मानसिक संरचना से कितना सहज साहित्य समाज के सामने प्रस्तुत करते हैं। 

पूजा अग्निहोत्री 
 (लेखिका, कवयित्री) 

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