आँसू
पूजा अग्निहोत्री
इंसान के सबसे सच्चे साथी,
बड़े अजीब होते हैं ये आँसू,
ज़िन्दगी की हर शै में समाये हुए,
कभी ग़म में भी अकेला नहीं छोड़ते,
ख़ुशी में भी चले आते हैं, दौड़ते।
बचपन में ज़िद के होते थे
मम्मी पापा इनको साथ देखकर
जल्दी ही मान जाते थे,
न माने तो दादी, उनके लिये तो
ब्रह्मास्त्र थे मेरी नयनबिंदु,
कई बार उड़ेला गया वात्सल्य सिंधु।
ससुराल में, मेरे आँसू बने
विजय मुस्कान का कारण,
कभी सासू माँ की, कभी ननद जेठानी की।
और कभी कभी प्राणेश्वर के अहं को करते तुष्ट।
और मेरे अबला एकल होने के वहम को करते पुष्ट।
पर एक सच्चे साथी रहे हमेशा,
यदि स्त्री के पास आँसू न हों तो,
तो वो हो भावशून्य,
मणि हीन सर्प सा हो उसका अस्तित्व
स्त्री संपूर्णता के कारक, आँसू और ममत्व।