डॉ. कमल किशोर गोयंका: 21वीं सदी के हिंदी साहित्य का महत्त्वपूर्ण स्तंभ
डॉ. सोमदत्त काशीनाथडॉ. कमल किशोर गोयंका 21वीं शताब्दी के हिंदी साहित्यकारों में एक महत्त्वपूर्ण ही नहीं एक अद्वतीय स्थान रखते हैं। उन्होंने विशेष रूप से हिंदी साहित्य के उन पक्षों को छुआ है, जिनको उनसे पूर्व के साहित्यकार एवं आलोचक अनदेखा कर दिया था। एक ओर वे अपनी रचनाधर्मिता निभाते हुए हिंदी साहित्य की विविध विधाओं को संपुष्ट करने का प्रयास करते रहे तो दूसरी ओर केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के असंख्य हिंदी-प्रेमियों का प्रेरणा-स्रोत बनकर उन्हें अपने द्वारा रची गईं कृतियों को प्रकाशित करने का प्रोत्साहन देते रहे। वे उस वृक्ष के भाँति बन रहे जो ऊपर की ओर फैली अपनी डालियों के साथ-साथ धरती को छूतीं अपनी जड़ों के सहारे भी फल देते रहे। हाँ उसी अंजीर या कटहल के वृक्ष के समान थे डॉ. कमल किशोर गोयंका जी—एक सहज, सरल एवं सुलझे हुए व्यक्तित्व के धनी किन्तु ऊँच आदर्शों एवं लोक-कल्याणकारी भावनाओं से युक्त।
डॉ. कमल किशोर गोयंका जी का जन्म 11 अक्टूबर 1938 को उत्तर प्रदेश के बुलंद शहर में हुआ था। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए, एम.फिल और प्रेमचंद के साहित्य पर पीएच. डी. भी किया था। साथ ही वे दिल्ली के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से डी.लिट्. पूरा करना वाले एकमात्र शोधार्थी रहे। वे प्राध्यापक के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय में वर्षों तक कार्यरत रहे और वहीं से अवकाश भी प्राप्त किया। हिंदी के प्रति उनकी सेवा-भावना केवल प्राचार्य बनने तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि वे केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल एवं केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा में लंबे समय तक उपाध्यक्ष के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान करते रहे। डॉ. कमल किशोर गोयंका जी ने 50 से अधिक पुस्तकों की रचना की है और कई ऐसे रचनाकारों की रचनाओं को संगृहीत किया है जो समय के अंधकार में विलुप्त हो गए थे। कुछ रचनाकारों की पुस्तकें वर्तमान पाठकों के लिए उपलब्ध नहीं हो रही थीं, इसीलिए गोयंका जी ने उन रचनाओं को नया रूप देकर उन्हें पुनः प्रकाशित भी करवाया। गोयंका जी ने न केवल डॉ. बृजेंद्र भगत ‘मधुकर’ की कविताओं एवं उनके गीतों को एकत्रित किया है और उन्हें एक बृहत् संकलन का रूप दिया है, बल्कि इस मॉरीशस जैसे छोटे देश के इस रचनाकार के प्रयासों को संपादित करने के साथ-साथ उन्हें सम्मानित भी किया है। वे लगातार मॉरीशस के रचनाकारों के संपर्क में रहते थे। उन्हेंने मॉरीशस में उपन्यास सम्राट् डॉ. अभिमन्यु अनत जी के साथ जो पत्राचार किया था उनके पत्रों को संकलित करके एक पुस्तक का रूप दिया है। पत्र किसी भी देश के के इतिहास के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ होते हैं। और ये वे पत्र किसी एक देश के साहित्यकार की लेखनी से उतरकर किसी अन्य देश के साहित्यकार के हाथों में पहुँचा हो तो तथ्यों के साथ-साथ भावनाओं के आदान-प्रदान की दृष्टि से भी वे पत्र महत्त्वपूर्ण माने जा सकते हैं। ऐसे समृद्ध पत्रों को पाठकों के लिए उपलब्ध कराना एक अत्यन्त ही सराहनीय प्रयास है।
वास्तव में डॉ. कमल किशोर गोयंका जी ने उपन्यास सम्राट् प्रेमचंद पर न केवल विशेष अध्ययन किया बल्कि आजीवन उन्होंने प्रेमचंद की रचनाओं को अपने हृदय से लगाए रखा। उन्होंने प्रेमचंद पर 22 पुस्तकें लिखी हैं। वे प्रेमचंद की जीवनी को काल-क्रमानुसार लिखने वाले प्रथम साहित्यकार रहे हैं। उनकी इन आलोचनात्मक पुस्तकों में भावनाओं की गहनता के साथ-साथ विचारों की उत्कृष्टता अबाध्य रूप से झलकती है। गोयंका जी की लेखनी ने हिंदी साहित्य-प्रेमियों को प्रवासी साहित्य पर छह पुस्तकें एवं तीन प्रतिनिधि संकलन, अन्य लेखकों पर बीस पुस्तकें, साढ़े तीन सौ से अधिक लेख, शोध-पत्र प्रसूत किए हैं। यह किसी भी साहित्यकार के लिए एक महान उपलब्धि से कम नहीं है।
गोयंका जी प्रेमचंद के जीवन, विचार तथा साहित्य से इतना प्रभावित थे कि वे दशकों तक निरंतर कार्यरत अपने इस आदर्श लेखक के विचारों में गोता लगाते रहे। उन्हें यूँ ही प्रेमचंद के सर्वश्रेष्ठ विद्वान नहीं माना जाता है। उन्होंने प्रेमचंद जी के विपुल साहित्य को एकत्रित करने के साथ-साथ प्रेमचंद के मौलिक दस्तावेज़, उनके पत्र, उनकी डायरी, बैंक-पासबुक, चित्र एवं तस्वीरें, पांडुलीपियाँ तथा कई अन्य निजी सामान इकट्ठा किए हैं। इन सभी दुर्लभ सामनों के ऐतिहासिक मूल्य को पहचानकर उन्हें साहित्य तथा इतिहास के अध्येताओं के लिए उपलब्ध कराके डॉ. कमल किशोर गोयंका ने आज की पीढ़ी पर ही नहीं बल्कि आनेवाली कई पीढ़ियों पर अकल्पनीय उपकार किया है।
हिंदी साहित्य में उनके अमर तथा निरंतर योगदान के लिए, डॉ. कमल किशोर गोयंका जी को कई भारतीय एवं अंतराष्ट्रीय मंचों से सम्मानित किया गया है। उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय की हिंदी अनुसंधान परिषद के आजीवन सदस्य बनने का सौभाग्य भी उन्हें प्राप्त हुआ। दिल्ली के हिंदी अकादमी, कोलकाता की भारतीय भाषा परिषद, उत्तर प्रदेश संस्थान, मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी, आगरा के केंद्रीय हिंदी संस्थान, मॉरीशस की हिंदी प्रचारिणी सभा आदि विश्व की कई प्रतिष्ठित संस्थाओं के मंचों पर डॉ. कमल किशोर गोयंका जी को सम्मानित तथा पुरस्कृत किया गया। वे क़लम के सिपाही प्रेमचंद के पदचिह्नों पर चलकर क़लम तथा कर्म के सिपाही बने रहे। लंबे समय से साँस की बीमारी से गस्त रहने के बाद मंगलवार 01 अप्रैल 2025 को डॉ. कमल किशोर गोयका ने अपना पार्थिव शरीर त्याग दिया। किन्तु वे हमारे लिए हिंदी साहित्य का जो भव्य संसार छोड़कर गए हैं वह सदा हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा।