दिन 365 बीत गए
जयदेव टोकसियादिन 365 बीत गए
कुछ हार गए कुछ जीत गए।
लिपट-लिपटकर मिलने वाले
नमस्ते करना सीख गए।
दिन 365 बीत गए।
कुछ लौट आए, कुछ लौट गए
कुछ सह गए कुछ चीख गए।
वक्त-वक्त कर मरने वाले
अपनों संग रहना सीख गए।
दिन 365 बीत गए।
कुछ रीत आयी कुछ शोर हुआ
एक धागे भारत पिरो दिया।
कोरोना से लड़ने को
भारत सारा एक ओर हुआ।
जाने वाले जाते-जाते
इंकलाब तो बोल गए।
दिन 365 बीत गए।
अब नव वर्ष आग़ाज़ हुआ
पुराना दामन साफ़ हुआ।
बीती बातें—बीते झगड़े
वो सब कुछ अब माफ़ हुआ।
जब नव वर्ष आग़ाज़ हुआ॥