दस रुपए का सिक्का 

15-01-2023

दस रुपए का सिक्का 

डॉ. आरती ‘लोकेश’ (अंक: 221, जनवरी द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

उफ़! दिख ही नहीं रहा। कहाँ चला गया? अलमारी के नीचे तो नहीं? पचहत्तर की हो चली हूँ। आँखों की रोशनी भी ख़त्म हो रही है। झाड़ू से भी सकेर के देख लिया। ऐसा कहाँ दुबक गया है राम जाने! पूरे दस रुपए का सिक्का था। ऐसे ही तो नहीं छोड़ सकती। इनकी पेंशन का हिस्सा था वह। भला हो सरकार का। इनके जाने के बाद 35 सालों से पाँच सौ रु. पेंशन तो दे रही है कम से कम। नहीं तो हर वक़्त बस दूसरों का मुँह देखा करो। 

अब जितना झुक सकती हूँ, उतना देख लिया। क्या करूँ? क्या न करूँ? कुछ समझ नहीं आ रहा। दस रुपए की गोली लाने की सोच रही थी वो ब्लड प्रैशर वाली। अब इन लोगों को बोलूँगी दवा लाने को तो वो मशीन मेरे हाथ पर बाँधकर कहेंगे कि वहम है तुम्हें। या वो दूसरी गोली ला देंगे। उसे खाकर मेरे शरीर पर छाले पड़ जाते हैं। 

कान का एक पर्दा तो पहले ही से ख़त्म था, अब दूसरे ने भी साथ देना छोड़ दिया है। आवाज़ भी तो नहीं आई कि आभास ही हो जाता किस तरफ़ को गया होगा। पोते को आवाज़ लगाकर देखती हूँ, अगर सुन ले तो! अपनी मर्ज़ी का है। चाहे तो घंटों मेरे पास बैठा रहे; न चाहे तो घड़ी भर टिकना मुश्किल। 

“अरे ओ बबलू! ज़रा देख तो बेटा कहीं मेरा सिक्का गिर गया है। वो पीले सफ़ेद वाला।” 

“अम्माँ स्कूल जा रहा हूँ। फिर ट्यूशन है। शाम को आकर देखता हूँ।” 

अरे भूल ही न जाऊँ तब तक कहीं। अब ये मरी सरकार ने भी अच्छे ख़ासे नोट को सिक्के में बदल दिया। नोट होता तो अब तक दिख तो गया होता। देखूँ! मँझले को पुकार के देखूँ? वैसे तो किसे मेरे दस के सिक्के की पड़ी है। 

“अरे ओ जोगी!” 

“मम्मी आज क्लाइंट्स के साथ मीटिंग है। बाद में बात करता हूँ . . .। मम्मी तुम्हारा मोबाइल कब से बज रहा है। ऊपर मेरे फ़्लोर तक आवाज़ आ रही है। उठा क्यों नहीं लेतीं।” 

हे भगवान! पता नहीं कौन है? ये मोबाइल की आवाज़ भी धीमी हो गई है। लगता है बड़े का फोन है लंडन से। 

“हाँ बेटा, फोन सुनाई नहीं दिया। बस दस का सिक्का खो गया था। उसे ही ढूँढ़ रही थी।” 

“माँ तुम भी ये क्या किरमचीपन में लगी रहती हो जब देखो। दस का ही तो था। खो गया तो खो गया। जाने दो उसे। इतनी दूर से, इतने पैसे ख़र्च करके तुम्हारे हाल-चाल जानने को फोन करो तो तुम ये कोई बकवास-सा क़िस्सा ले बैठती हो।” 

इसके आगे भी बड़के ने बहुत कुछ कहा पर मुझे कुछ सुनाई नहीं दिया। अच्छा ही है कि भगवान सुनने की शक्ति कम करता जा रहा है। दस रुपए के सिक्के का नुक़्सान फिर भी छोटा ही है।

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