छुप के आता है कोई ख़ाब चुराने मेरे
चाँद शुक्ला 'हदियाबादी'छुप के आता है कोई ख़ाब चुराने मेरे
फूल हर रात महकते हैं सिरहाने मेरे
बंद आँखों में मेरी झाँकते रहना उनका
शब बनाती है यूँ ही लम्हे सुहाने मेरे
जब भी तन्हाई में मैं उनको भुलाने बैठूँ
याद आते हैं मुझे गुज़रे ज़माने मेरे
जब बरसते हैं कभी ओस के क़तरे लब पर
मेरी पलकों से छलकते हैं पैमाने मेरे
याद है काले गुलाबों की वोह ख़ुशबू अब तक
तेरी ज़ुल्फ़ों से महक उट्ठे थे शाने मेरे
दर बदर ढूँढते फिरते तेरे क़दमों के निशान
तेरी गलियोँ में भटकते हैं फ़साने मेरे
चाँद सुनता है सितारों की ज़ुबां से हर शब
साज़े मस्ती में मोहब्बत के तराने मेरे
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