छोटी चिड़िया–06

01-06-2023

छोटी चिड़िया–06

डॉ. भारती सिंह  (अंक: 230, जून प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

(22 जुलाई 2020)

2020 का वक़्त समूची दुनिया में एक हलचल लेकर आया और उसने मनुष्य को मनुष्य से भी अकेला कर दिया लेकिन छोटी चिड़िया ने सुबह-सुबह ऑंखें खोलते ही देखा कि सूरज के आने में अभी वक़्त था; तब तक वह अपने बच्चों को दाना चुगा दे। बच्चे माँ की मीठी-मीठी चहचहाहट से अलसाये हुए उठ गए। चिड़िया ने उन्हें दाना-पानी दिया और बच्चों को आपस में खेलते और टहलते देख ख़ुश हो उठी लेकिन उसे आज मनुष्य जाति का हाल भी तो लेना था। अतएव वह बच्चों को घोंसले में रहने की हिदायत देकर निकल पड़ी। 

टौंस नदी के किनारे बड़ी दूर से सूरज का लाल गोला निकलता हुआ दिखायी दे रहा था; आख़िर सूरज को भी काम पर निकलना था, सूरज भी बहुत घूमंतू है, सारी दुनिया को ख़ुश करने के लिए उसे घूमना पड़ता है। चिड़िया अच्छे मूड में सूरज की तरह ही तरोताज़ा थी। सुबह के वक़्त नदी की तरफ़ से आती हुई हवा भी उसे सुखद और शीतल प्रतीत हो रही थी, सभी पेड़-पौधे ख़ूब लहलहा रहे थे। यह सिविल लाइन है नगर का संभ्रांत इलाक़ा जिसे ठंडी सड़क कहते हैं। वह आलीशान बँगलों को पार करते-करते मुख्य सड़क से अंदर गली की ओर मुड़ गयी और दाहिनी ओर के मकानों को पार करती हुई एक गेट से लगे बाउंड्रीवाल पर बैठ गयी और अपने आगमन की शुभ सूचना देने लगी। 

मकान बहुत पुराना था लेकिन महत्त्वपूर्ण था। चिड़िया ज़रा भी हिचकी नहीं और धड़ल्ले से चहचहाते हुए अंदर की ओर चली गयी और उड़ते हुए अंतिम मकान के आँगन में उतर गयी। आँगन में चिड़िया टहलती रही। वहाँ उसने पूजा करती हुई एक महिला को देखा, घर में कोई भी नहीं था। वह बिल्कुल अकेली थीं। यह डॉ. संवेदना जी थीं जिन्होंने हनुमान चालीसा समाप्त किया और किचन में घुस गयीं अपने लिए एक अच्छी सी चाय बनाने . . . और चाय लेकर उन्होंने कुछ चावल के दाने चिड़िया के लिए कोने में रख दिये थे क्योंकि बंदरों का भय था कि वे देख लेंगे तो नाहक़ ही छीना झपटी पर उतारू हो जाएँगे। चिड़िया दाना चुगने में मशग़ूल हो गयी। और संवेदना जी चाय पीकर ऑनलाइन क्लासेज़ लेने के लिए कुर्सी पर बैठ गयीं। चिड़िया चहकती हुई बड़े से आँगन में टहलती रही। संवेदना जी की कक्षाएँ 3 बजे दोपहर तक अनवरत चलती रहीं। 

इस बीच चिड़िया को प्यास लगी। कहीं भी नल में पानी नहीं था। भरी दोपहर में उसका प्यास के मारे गला सूख रहा था, अतएव आँगन से बाहर उसने देखा कि किसी के घर के पास का नल खुला है, वहाँ उसने पानी पिया। संभवतः यह बंदरों ने खोला हो, इस तरह से रोज़ रोज़ टंकी का सारा पानी बह जाता है। संवेदना जी के यहाँ पानी नहीं पहुँच पाता था। चिड़िया अब फिर संवेदना जी के आँगन में आकर टहलने लगी। उन्होंने नल खोला, नल में पानी नदारद, उन्हें खाना बनाना था शायद। एक छोटी बाल्टी ही पानी था। उन्होंने फिर ताल मखाना फ़्राई किया और एक कप चाय तैयार कर गुनगुनाती हुई किचन से वापस कमरे में आ गयीं और मोबाइल में कोई पोस्ट डालने का उपक्रम कर रही थीं। चिड़िया को उनका गाना बहुत सुखद लगा। उसने सोचा कि इतनी उमस भरी दोपहरी में क्लासेज समाप्त करने के बाद बिना कुछ खाये पिये गुनगुनाती हुई पोस्ट डाल रही थीं। इनके यहाँ कोई भी नहीं था जो कोई सामान या सब्ज़ी ला सके। पूरे शहर में लाॅकडाउन था, बिना हरी सब्ज़ियों के संवेदना जी कैसे रहती होंगी! 

उस दिन मातृ दिवस था, इनके बच्चे भी इनके साथ नहीं थे। इनका मन कैसे लगता होगा? चिड़िया सोच रही थी। उसने तो अपने बच्चों को रोज़ से जल्दी उठाकर उन्हें दानी पानी भी दे दिया था . . . लेकिन इनका इस शहर में कोई भी नहीं था . . . 

आस-पास के अस्पतालों में कोरोना के मरीज़ निकल रहे थे। इनके मोहल्ले में बड़ी दूर तक बहुत से घर सील थे। नदी के किनारे का पूरा इलाक़ा भी सील था। काम करने वालों का आना-जाना बंद था। आदमी-आदमी को छूने से परहेज़ कर रहा था। कोरोना के कारण बहुत से लोगों की मृत्यु अचानक हो जा रही थी। सभी लोग अपने-अपने गाँव की ओर चले गये थे। आस-पास अत्यधिक सन्नाटा पसरा हुआ था। मेरी तरह इनका कोई घोंसला या संसार नहीं था? चिड़िया यह सब सोच रही थी तभी उसने सुना कि वह मोबाइल पर अपने बेटे से बात कर रही थीं कि उनको तीन वर्ष से वेतन नहीं मिला था और उनके घर वाले नहीं चाहते थे कि वे अपने घर लौट कर आएँ, घर वालों को डर था कि उन लोगों को इनसे कोरोना हो जाएगा। 

संवेदना जी बिल्कुल अकेली थीं, उस वक़्त उन्हें दुनिया की वास्तविकता का आभास अच्छी तरह से हो गया था कि जीवन की यही सच्चाई है। सब-कुछ बनावटी है, चिड़िया ने देखा कि इनके मेज़ पर दवाइयों की शीशियाँ थीं जिसमें से ये दवा खा रही थीं। इनको कोरोना नहीं हुआ था लेकिन ये बी पी से लेकर बहुत से रोगों की दवाइयाँ ले रही थीं। कमरे में अनाज का कार्टन भी बंद पड़ा था। शायद इनकी तबियत बिल्कुल ठीक नहीं थी। चिड़िया सोच रही थी कि कैसे घर वाले थे जो इनकी खोज-ख़बर बिल्कुल भी नहीं लेते थे। ये अपने बेटे को छात्रावास से भी अपने पास नहीं बुला पा रही थीं क्योंकि इनके पास यहाँ कोई सुविधा नहीं थी। बेटा अपने छात्रावास में अकेला था, उसको वार्डेन घर जाने के लिए दबाव डाल रहे थे। उसके पिता उसे अपने घर में आने से लगातार मना कर रहे थे और यह कह रहे थे कि “छात्रावास में रहकर ही तुम्हें अपनी पढ़ाई करनी चाहिए, या तो छात्रावास से सीधे गाँव चले जाओ या अपनी माँ के पास, इधर मेरे पास गोवा मत आना।” कोरोना का भय इतना भयंकर था कि लोग अपने सगे रिश्तों से भी पीछा छुड़ा रहे थे ऐसी दुखद स्थिति में भी संवेदना जी बड़े धैर्यपूर्वक अपनी ऑनलाइन कक्षाएँ कैसे ले पा रही थीं। यही चिड़िया सोच कर दुखी हो रही थी। वह सोच रही थी कि मनुष्य की जाति बड़ी ही स्वार्थी है। इतने में ही संवेदना जी फिर से कोई गीत गुनगुनाने लगीं, चिड़िया उनको गुनगुनाते देखकर ख़ुश हो उठी और वह भी चहचहाने लगी। उसको गीत के बोल सुकून दे रहे थे . . . वह सोच रही थी कि वह फिर इनका हाल लेने ज़रूर आएगी। इस बुरे वक़्त में इन्हें केवल राशन और दवा ही मिल पा रही थी। इस शहर में ये दो लोग और मकान मालिक ही इनका ध्यान दे रहे थे। उस स्थिति को देखकर चिड़िया जीवन की सच्चाई पर गंभीरतापूर्वक विचार करती हुई आकाश में उड़ चली। 

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