छोटी चिड़िया–03

01-02-2023

छोटी चिड़िया–03

डॉ. भारती सिंह  (अंक: 222, फरवरी प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

कोरोना काल में 11 जुलाई 2020 का वक़्त था जब छोटी चिड़िया सोच रही थी श्रावण मास है ज़रा, धरती की हरियाली देख आऊँ। ऐसा सोच कर वह अपने घोंसले से बहुत दूर एक रिहायशी इलाक़े से होकर गुज़र रही थी, वहाँ अचानक उसने देखा कि एक बुज़ुर्ग महिला जो तुलसी जी के चौरे में बड़ी आस्था और तसल्ली से जल दे रहीं थीं। पहले जब कभी चिड़िया उधर से उड़ती पल भर ठहर जाती थी। आज उसने सोचा क्यों न मैं चलकर अम्मा को देखूँ कि इनकी क्या विशेषता है? वह नीचे उतर कर मुँडेर पर बैठ गयी . . . उसने देखा कि पास में चिड़ियों के लिए मिट्टी के कसोरों में दाना-पानी रक्खा था। चिड़िया भी ख़ुशी से चहचहाती हुई गयी और दाना चुगने लगी और फुदक-फुदक कर उनके घर का जायज़ा लेने लगी। 

उसने देखा कि ठंडी-ठंडी हवा का संसर्ग पाकर तुलसी जी का पौधा, मनी प्लांट, रबर प्लांट और करोटन ख़ूब-ख़ूब ख़ुश थे और लहलहा रहे थे, चारों तरफ़ आस-पास हरियाली बिख़री थी। वह घर के अंदर दाख़िल हुई और खुले-खुले आँगन में आ गई, वहाँ उसने अम्मा को बहुत ध्यान से देखा कि उनके चेहरे पर बेशुमार झुर्रियाँ थीं लेकिन चेहरे पर एक चमक और आत्मविश्वास था। वह सुंदर काण्ड का सस्वर पाठ करने में तल्लीन थीं। वहीं सामने की ओर एक सिलाई मशीन खुली हुई रक्खी थी जिस पर कोई आधा सिला हुआ कपड़ा पड़ा था। वहाँ चिड़िया को बहुत अच्छा लग रहा था अतएव वह फुदक-फुदक कर दाना चुगती रही और पूरे घर में चहल-पहल करने लगी जैसे वह उसका अपना ही घर हो। तभी उसने देखा कि अम्मा ने अपने कृष्ण गोपाल को भोग लगाया और घंटी बजायी। आस्था के साथ प्रसाद लेकर किचन में आ गयीं और अपनी चाय तैयार कर झटपट ड्राइंग रूम में आकर भजन का चैनल लगा दिया। साथ ही आहिस्ता-आहिस्ता चबा-चबा कर नाश्ता करने लगीं। इसी बीच एक-एक करके काम वाली और दूध वाली के लिए अम्मा ने दरवाज़ा खोला। अब तक चिड़िया बहुत प्रभावित हो चुकी थी उसने उन्हें हृदय की गहराई से अम्मा स्वीकार कर लिया था। 

उसे अब तक घर में कोई भी नहीं दिखाई दिया। इतने एकाकी घर में भी कितनी जीवंत दुनिया थी, उसकी रुचि और भी बढ़़ने लगी। उसने सोचा कि क्यों न अपना आज का दिन यहीं गुज़ारा जाय। सारी दुनिया में तो कोरोना के कारण कोहराम मचा हुआ है। अम्मा के हाथों और चेहरे की झुर्रियों को देखकर जहाँ उसका दिल मोम की तरह पिघल रहा था वहीं वह उत्साहित हो रही थी। उसने पल भर सोचा कि अम्मा हवा का झोंका हैं फिर भी जीवंत हैं। चिड़िया ने ग़ौर से देखा अम्मा मास्क लगा चुकीं थीं और गाय के लिए रोटी लेकर अपने बग़ीचे की ओर धीरे-धीरे बढ़ चलीं। चिड़िया भी उनके साथ हो ली। बग़ीचे में माली से उन्होंने कुछ पौधे लगवाये और घास-फूस निकलवाया, स्वयं पौधों में पानी दिया। साथ ही लौटते वक़्त कुछ हरी सब्ज़ियाँ साथ ले आयीं। अब घड़ी में दिन के दो बज चुके थे। उन्होंने अपने लिए भोजन बनाया और मिट्ठू के साथ-साथ उसके लिए भी आँगन में खाने के लिए रख दिया। भोजन करने के पश्चात अम्मा चौकी पर लेट कर फिर से भजन सुनने लगीं। चिड़िया चिंतन कर रही थी कि अम्मा कितनी अनुभवी और स्वाभिमानी महिला हैं। इनके कई बच्चे नाती पोते सभी हैं। इनका भरा-पूरा संसार है। इनके सभी बच्चे ऊँचे-ऊँचे ओहदे पर हैं लेकिन यह स्थायी रूप से कहीं नहीं रहती हैं। अपने इस संसार को कदापि नहीं छोड़ सकतीं। ये इस उम्र में भी स्वावलंबी और मज़बूत आत्मबल वाली महिला हैं। सभी त्योहारों में रंग भरती हैं, अपने सभी बच्चों के लिए इस उम्र में भी अचार, पापड़, बड़ी, मुरब्बे एवं तरह-तरह की मिठाइयाँ बनाती रहती हैं। ये सोचती हैं कि कोई बच्चा अपने घर से ख़ाली हाथ न जाने पाये बल्कि हर बच्चा अपने अपने हिस्से की माँ की ख़ूबसूरत सी यादें भी अपने साथ लेता जाये। उस दिन छोटी चिड़िया भी अम्मा की यह ख़ूबसूरत सी याद लेकर फुर्र से उड़ गयी और नीले नीले ख़ुशनुमा आकाश में उड़ान भरने लगी। इस बीच वह सोच रही थी कि समूची दुनिया हिल उठी है लेकिन इस घर में दुनिया वैसी ही है। कितना धैर्य व संतुलन है यहाँ, अम्मा उसे सकारात्मक उर्जा का जीती-जागती मिसाल लगीं। उसे यहाँ तक महसूस होने लगा कि उसके पंखों में पहले से अधिकाधिक उर्जा का संचार हो रहा था। अम्मा से मिलने वह फिर फिर आएगी, सचमुच ज़रूर आएगी। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें