चरकटु

विनय कुमार (अंक: 289, दिसंबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

रात्रि के दो बजे आँगन में लोगों के गाने की आवाज़ से मेरी नींद खुल गई। जैसे ही मैंने अंगड़ाई ली मेरी अर्द्धांगिनी की नींद टूट गई। वह जैसे ही मेरे ऊपर झल्लाई, मैंने उसे चुप रहने को बोला। 

“गाने की आवाज़ सुनकर वह घबरा गई?” 

पत्नी बोली, “मुझे डर लग रहा है।” 

मैं बोला, “किस बात से?” 

पत्नी बोली, “इतनी रात को कौन गाना गा रहा है? घुँघरुओं की आवाज़ भी आ रही है।” 

मुझे याद आया कि पत्नी रात को जी-सिनेमा पर डरावना नाटक ‘आहट’ देखकर सोई थी। थोड़ी देर मैंने भी नाटक देखा था। नाटक में रात को भूतों की बारात को देखकर नौजवान लड़का डर जाता है। 

मैं बोला, “ये लोग कोई भूत नहीं हैं। ये चरकटु हैं।” 

पत्नी ने पूछा, “चरकटु क्या होता है?” 

मैंने बताया,” ‘चरकटु’ हमारे हिमाचल प्रदेश क्षेत्र का लोकनाट्य है जिसमें दीपावली के बाद मज़दूर लोग दिन भर मज़दूरी करने के बाद रात को घर-घर जाकर नाटक दिखाकर आनाज लेते हैं। नाटक में एक पुरुष महिला का वेष धारण कर नृत्य करता है। उसे चरनौली कहते हैं। उसने घुँघरू पहन रखे होते हैं। ये हमारे नए घर में पहली बार आए हैं। मैं इन्हें पाँच सौ रुपये दूँगा।” 

पत्नी बोली, “नहीं जी। बाहर मत जाओ। मुझे बहुत डर लग रहा है। ये पक्का भूत ही हैं। रात को दो बजे कौन घर से बाहर निकलता है।” 

मैंने समझाया, “यह हमारी लोक संस्कृति है। ये लोग हमारी लोक संस्कृति को जीवित रखे हुए हैं। यह बहुत ही गौरव की बात है। मैं बाहर जाकर इन्हें पैसे देकर आता हूँ। ये बेचारे दिन भर मज़दूरी करने के बाद रात को घर-घर घूमकर नाटक खेल रहे हैं। इन्हें पैसे ज़रूर दूँगा।” 

पत्नी डरी हुई थी, “नहीं जी। मुझे बहुत डर लग रहा है। मैं आपको बाहर जाने नहीं दूँगी।” इतना कहकर ज़ोर से मुझसे लिपट गई। 

चरकटु आँगन में कुछ पैसे मिलने की आशा में थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद चले गए। अर्द्धांगिनी थोड़ी ही देर में खर्राटे मारने लगी। थोड़ी देर पहले कितना डर रही थी  और अब कितना मस्त होकर सो रही है। 

मुझे बचपन की घटना याद आ गई। 

जब मैं बारहवीं कक्षा में पढ़ता था। मेरे साथ मेरा चचेरा भाई मनु जो दसवीं कक्षा में पढ़ता था, रात को आठ बजे बाज़ार से घर वापस आ रहे थे। गाँव की पगडंडी में एक सुनसान जगह पर गौशाला थी। गौशाला का मालिक मर गया था और गौशाला वीरान पड़ी थी। गाँव के लोगों का कहना था कि उन्होंनेे वहाँ पर भूत को देखा था। बच्चे दिन में भी वहाँ से गुज़रते समय डरते थे। मुझे ख़ुराफ़ात सूझी। मैं मनु से दो क़दम पीछे हुआ और अपनी जेब में एक पत्थर डाल लिया। मैं मनु के पीछे चल रहा था। गौशाला के पास पहुँचते ही मैंने चुपके से पत्थर गौशाला पर फेंक दिया। आवाज़ सुनते ही मनु वहाँ से भागा। पीछे-पीछे मैं दौड़ा। आगे नेकराम तांत्रिक का घर था। मनु उनके आँगन में चिल्लाने लगा। नेकराम ने दरवाज़ा खोला। मैं भी आँगन में पहुँच गया। 

मनु ने घबराते हुए कहा, “दादा जी, गौशाला में भयंकर आवाज़ हुई। जैसे गौशाला की छत पर कोई दौड़ रहा हो।” 

नेकराम ने कहा, “बच्चो अंदर आ जाओ। मुझे सब पता है। गौशाला के भूत से मेरा कई बार सामना हो चुका है। मैंने उसे कई बार मार के भगाया है।” 

नेकराम गाँव का तांत्रिक था। आज उसे हमारे सामने अपनी धाक जमाने का मौक़ा मिला था। वह दो-ढाई घंटे तक भूतों के साथ अपनी लड़ाइयों की कहानी सुनाता रहा। मनु के पिता जी आकर हमें घर लेकर गए। 

यह स्मरण आते ही मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई कि गाँव में ऐसा कोई भी बुज़ुर्ग नहीं है जिसने भूतों के साथ मल्ल युद्ध न किया हो और भूत ने उससे बीड़ी माँगकर न पी हो। 

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