फूल्लो देवी

01-09-2025

फूल्लो देवी

विनय कुमार (अंक: 283, सितम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

राजा सिद्धसेन के समय मंडी रियासत की दो जागीरों कमलाह और अनंतपुर में दुश्मनी अपने चरम पर थी। जब तक दोनों अपना लगान समय पर देते रहते, सिद्धसेन को इससे कोई लेना-देना नहीं था। अपितु सिद्धसेन इससे ख़ुश था क्योंकि राणा आपस में लड़ते रहेंगे तो उनके राजपाट को कोई चुनौती नहीं देगा। इसके अलावा सिद्धसेन का ध्यान कुल्लू की सीमा पर कुल्लू के राजा मान सिंह की बढ़ती गतिविधियों की तरफ़ अधिक था। मंडी और कुल्लू रियासतों में तनाव बढ़ रहा था। 

कमलाह और अनंतपुर दोनों ही अजेय दुर्ग थे। दोनों को घेरा डालकर जीतना असंभव सा कार्य था। इस कारण दोनों राणा एक-दूसरे के ख़िलाफ़ सीधी लड़ाई नहीं करते थे। कभी धान के खेतों में तो कभी सोन नदी के किनारे छुट-पुट झड़पें होती रहती थीं। 

कमलाह का राणा अपनी ज़िन्दगी के पैंसठ वर्ष देख चुका था। उसकी अर्द्धांगिनी फूल्लो देवी; उससे तीस वर्ष छोटी थी। उसे राणा से दो पुत्रियों की प्राप्ति हुई थीं। राणा अपना अधिकांश समय मदिरापान, मांस खाने और भाँग पीने में व्यतीत करते थे। रानी दुर्ग के एक कमरे में पड़ी रहती थी। वह कभी अपनी सहेलियों तो कभी अपनी बेटियों के साथ अपना दिल बहलाती थी। 

रानी की सौतन का बेटा जो राजगद्दी का वारिस था, वह रानी को अपनी माँ के समान सम्मान देता था। उसकी माँ का निधन हो चुका था। दुर्ग की प्राचीर से अनंतपुर का क़िला भी दिखाई देता था। रानी को क़िले से निकलकर गाँव में जाकर लोगों से मिलने के बहुत कम अवसर मिलते थे। चंदन छठी के व्रत के दिन सभी स्त्रियाँ सोन नदी के किनारे नहाने जाया करती थीं। औरतें सोन नदी में नहाती थीं और आपस में ख़ूब ठिठोलियाँ करती थीं। 

एक बार चंदन छठी के व्रत के दिन सभी औरतें नदी में नहा रही थीं। रानी ने सोचा कि आस-पास के सुंदर प्राकृतिक नज़ारे का दर्शन करने का यह उत्तम मौक़ा है। रानी अकेली ही खेतों में घूमने निकल पड़ी। एक खेत के पास उसने देखा कि सोलह-सत्रह वर्ष का लड़का भाँग के पौधे की पत्तियों को हाथों से मल रहा है। लड़का ग़ौर वर्ण का था और उसका शरीर हष्ट-पुष्ट था। रानी एक टक लगाए उसे देखती रही। तभी लड़के ने भी उसे देखा। लड़का उसे देखकर घबराया नहीं। उसने थोड़ी देर रानी को देखा और वह फिर भाँग मलने लग पड़ा। 

रानी ने लड़के से पूछा, “तुम कौन हो और यहाँ क्या कर रहे हो?” 

लड़के ने रानी की तरफ़ देखा और मुस्कुरा कर कहा, “मैं अनंतपुर के राणा का लड़का जमनु हूँ। अगर मेरे पिता ने मुझे भाँग मलते देख लिया तो मेरी शामत आ जाएगी। आप कौन हो?” 

रानी हँसकर कहा, “मेरे पति किसान हैं। मेरा घर पास में ही है।” 

लड़का वहाँ से चला गया। 

अगली सुबह रानी क़िले की प्राचीर से अनंतपुर दुर्ग को देख रही थी तो उसे पिछले कल की घटना याद आ गयी। वह चुपके से दुर्ग से नीचे खेतों में उतर आयी। वह कल वाले स्थान पर पहुँची। पर वहाँ पर कोई नहीं था। वह जमनु को इधर-उधर ढूँढ़ने लगी। थोड़ी दूरी पर उसे जमनु भाँग मलता हुआ मिल गया। 

रानी ने जमनु से पूछा, “तुम आज भी आ गए?” 

जमनु ने बताया, “हाँ, मैं रोज़ाना आता हूँ।” 

इस तरह दोनों को मिलते हुए महीना बीत गया। दोनों की आपस में घनिष्टता बढ़ गयी। रानी जमनु से क़रीबन बीस वर्ष बड़ी थी इसलिए वह उसे प्रेम की नज़रों से नहीं देखता था। लेकिन रानी के दिल में कुछ और ही चल रहा था। त्रिया चरित ने अपना रंग दिखाया। रानी ने जमनु को अपने प्रेम जाल में फँसा लिया। पैंतीस वर्ष की रानी इन प्रेम व्यापारों में भली भाँति निपुण थी। इन प्रेम व्यापारों से अपरिचित जमनु उस पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार हो गया था। वह रानी के साथ विवाह करने के सपने देखने लगा था। 

रानी और जमनु सुबह ही खेतों में आ जाया करते और शाम को वापस लौटते। एक दिन जमनु ने रानी से कहा, “पिता जी हमारे विवाह के लिए मानें या ना मानें, लेकिन मैं सात जन्मों के लिए तुम्हारा हो चुका हूँ।” 

रानी ने भी मुस्कुराते हुए कह दिया, “मैं भी सात जन्मों के लिए तुम्हारी हो चुकी हूँ।” 

और दोनों ने सकलानी माता के मंदिर में एक-दूसरे का सात जन्मों तक साथ निभाने की क़समें खा लीं।

कभी किसी को सुबह खेतों में आने में देर हो जाती तो दूसरा विरह वेदना से तड़प उठता। एक दिन जब रानी नहीं आई तो जमनु ने इतनी भाँग पी कि रात को भी खेतों में सोया रहा। गुप्तचरों से कौन सी बात छुपती है। यह बात जब कमलाह के राणा के कानों में पड़ी तो वह क्रोध से फड़-फड़ा उठा। 

वह रात को भोजन के पश्चात रानी के पास आया। इतने दिनों बाद राणा को रात में आया देख रानी चौंक गई। राणा ने संयम और बुद्धिमता से काम लिया। राणा ने कहा, “सुना है आजकल आप दिन भर खेतों में रहती हैं।” 

रानी समझ गयी कि राणा को ख़बर मिल चुकी है। त्रिया चरित फिर अपना रंग दिखाता है। रानी ने कहा, “महाराज, जिस अनंतपुर दुर्ग को आप मिट्टी में मिलाना चाहते थे, उसे मिट्टी में मिलाने का मैंने बंदोबस्त कर दिया है।” 
राणा ने चौंक कर पूछा, “कैसे?” 

रानी ने उत्तर दिया, “अनंतपुर के राणा के इकलौटे बेटे जमनु को मैंने अपने प्रेम जाल में फँसा लिया है। वह सुबह अकेला ही मुझसे खेतों में मिलने आएगा। तब आप वहाँ उसका काम-तमाम कर दीजिएगा।” 

राणा ख़ुश हो गया। वह रातभर अपने सेनापति के साथ मिलकर षड्यंत्र रचता रहा। रानी चैन की नींद सोती रही। जमनु मरे तो मरे। उसने अपने ऊपर आई मुसीबत को टाल दिया था। 

सुबह होते ही जैसे जमनु खेतों में रानी से मिलने पहुँचा, कमलाह के छुपे हुए सैनिकों ने उसे घेर लिया। निहत्था जमनु दुश्मनों से घिर गया। दूर खड़ी रानी यह सब देख रही थी। राणा तलवार निकालकर जमनु को मारने आगे बढ़ा। तभी दूर झाड़ियों में छुपे हुए अनंतपुर के सैनिकों ने राणा को ललकारा। 

गुप्तचरों ने अनंतपुर के राणा के पास भी जमनु और रानी के प्रेम प्रसंग की बात पहुँचा दी थी। तभी से अनंतपुर के राणा ने इन सैनिकों को जमनु की सुरक्षा में तैनात कर दिया था। ये झाड़ियों में छुपे रहते थे। दोनों पक्षों में भयंकर युद्ध हुआ। राणा और जमनु आपस में लड़े। बुड्ढा राणा, नौजवान जमनु के सामने नहीं टिक पाया। जमनु ने अपनी तलवार राणा के पेट के आरपार कर दी। यह देखकर कमलाह के सैनिक भाग लिए। 

दूर खड़ी रानी यह सबकुछ देख रही थी। त्रिया चरित ने फिर अपना रंग दिखाया। रानी ने जमनु से कहा, “आज तुमने मुझे इस दुष्ट की क़ैद से आज़ाद करा दिया।” 

जमनु रानी को लेकर अनंतपुर दुर्ग की तरफ़ चल पड़ा। दुर्ग पर पहुँचने पर अनंतपुर के राणा ने जमनु का स्वागत किया। जमनु ने अपने पिता से कहा, “पिता जी, जैसा कि मैंने आप से वादा किया था। जिस कार्य को शक्ति के बल पर नहीं किया जा सकता था, उसे मैंने आपको कूटनीति से करके दिखा दिया।”

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