भेड़ चाल
नीलू चोपड़ाअनुराधा ने आज सवेरे जल्दी उठ कर सारा काम काज-निबटा लिया। उसने अलमारी से अपनी साड़ियाँ निकालीं और उनमें से सबसे अच्छी साड़ी छाँटने की कोशिश में लग गई परन्तु उसमें से उसे एक भी साड़ी ऐसी नहीं लग रही थी जो वह अपनी बेटी मीता के चंडीगढ़ में होने वाले सम्मान सामारोह में पहन पाती। अचानक उसे याद आया कि उसके पिछले जन्मदिन पर उसकी छोटी बहन ने उसे एक बहुत सुंदर बनारसी साड़ी उपहार में दी थी उसे पहनने का उसे मौक़ा ही नहीं पाया था। उसने जल्दी से वह साड़ी निकाली ली। अनुराधा नें अपने पति का एकमात्र सूट को प्रेस करवाने धोबी को भिजवा दिया।
आज वह बहुत ख़ुश थी। बरसों बाद उन्हें भी एक अच्छा अवसर मिला था। ख़ुशी के इन लम्हों को वो यादगार बनाना चाहती थी। बड़ी मुश्किल और सौभाग्य से उन्हें भी अपनी तक़दीर पर गर्व करने का मौक़ा मिला। यह सच है कि अपनी सन्तान की तरक़्क़ी और सफलता पर जो ख़ुशी माता पिता को मिलती है वो अवर्णित होती है। बच्चे के जन्म के बाद माता-पिता अपना सारा जीवन अपनी सन्तान को अर्पित करके उनके जीवन को सँवारने में लगा देते हैं परन्तु यदि किन्हीं कारणों से उनकी सन्तान को अपने जीवन में असफलता का मुँह देखना पड़ता है तो उनकी इस हार से माता-पिता ही सबसे अधिक आहत होते हैं। समाज, और रिश्तेदारों की उँगलियाँ सबसे पहले माँ पिता की परवरिश की ओर ही उठती हैं। दुनियाँ उन्हीं पर अपने व्यग्यं रूपी तरकश चला कर उनके दिल को घायल कर देती है।
अचानक काल बैल की आवाज़ ने सोच में डूबी, अनुराधा का ध्यान भंग हुआ। दरवाज़ा खोला तो सामने परेश की मम्मी मिठाई का एक डिब्बा लिए खड़ी दिखाई दीं। उनका चेहरा ख़ुशी से उद्भासित हो रहा था। परेश की मम्मी निर्मला को देख कर अनुराधा ख़ुश हो गई। आज दोनों एक दूसरे से अपनी अपनी ख़ुशियाँ बाँटने को उतावली हुई जा रहीं थीं। कमरे में आते ही निर्मला ने मिठाई का एक टुकड़ा अनुराधा के मुँह में डालते हुए कहा, “लो अनुराधा मुँह मीठा करो। पता है हमारे परेश को बैंक में नौकरी मिल गई है।”
अनुराधा ने हर्षमिश्रित आश्चर्य से कहा, “वाह, बहुत अच्छी ख़बर सुनाई।”
निर्मला ने अनुराधा को मुस्कुराते हुए बताया कि तुम्हें तो पता ही था कि परेश की बारहवीं की बोर्ड परीक्षा में अंकों की प्रतिशत बहुत कम बन पाई थी। इसके कारण परेश और परिवार को लोगों की बहुत अवहेलना सहनी पड़ी थी। तुम तो जानती ही कि हमारा परेश फ़ुटबाल का एक अच्छा खिलाड़ी था परन्तु परेश की इस ख़ूबी की किसी न तो कभी प्रशंसा ही की और न किसी ने उसे प्रोत्साहित ही किया गया। यहाँ तो समाज में योग्यता की कसौटी केवल डॉक्टर, इंजीनियर, कलक्टर, वैज्ञानिक बनने तक ही सीमित है। जो बच्चे इस दौड़ में विजेता नहीं बन पाते वो अयोग्य और मूर्ख घोषित कर दिए जाते हैं। परेश के साथ भी यही हुआ परन्तु उसने हिम्मत नहीं हारी। दयानन्द कॉलेज में कॉमर्स में बी कॉम की पढ़ाई के साथ साथ उसने फुटबाल की प्रैक्टिस को भी जारी रखा। कॉलेज स्तर के बाद उसने ज़िला स्तर और प्रदेश स्तर पर बहुत सारी प्रतियोगिताएँ जीत कर फुटबाल के खेल के में अपना नाम कमाया। इसी कारण उसे बैंक में यह नौकरी भी मिल गई। यह सुन कर अनुराधा बोली निर्मला तुम सही कह रही हो। यदि हमें भी उचित समय पर आभा मैडम का मार्गदर्शन और सलाह न मिली होती तो आज मेरी बेटी मीता भी अनाम सी ज़िन्दगी गुज़ार कर एक मामूली सी गृहस्थिन बन के रह गई होती। अब देखो उसने, चंडीगढ़ के होमसाइंस कॉलेज में टॉप किया है और गोल्ड मैडल के साथ-साथ कॉलेज में लेक्चररशिप के लिए भी उसका नाम प्रस्तावित किया जा रहा है। इसलिए ही आज हम लोग, चंडीगढ़ अपनी बेटी की ख़ुशी में शामिल होने के लिए जा रहे हैं; यह सुन निर्मला ने भी अनुराधा को बधाई दी। उसी समय दोनों सहेलियों ने मिलकर यह तय किया कि अनुराधा के चंडीगढ़ से लौटने के बाद वह दोनों सोसायटी के क्लब में, अपनी ख़ुशियों को सब में बाँटने के लिए एक छोटी सी पार्टी का आयोजन करेंगी। उस पार्टी में आने वाला ख़र्च को दोनों मिल कर वहन कर लेंगी।
नियत समय पर पूरी तैयारी करके बड़े उत्साह से भरी अनुराधा अपने पति के साथ टैक्सी में चंडीगढ़ के लिए रवाना हो गई। टैक्सी में बैठ, अनुराधा आराम से सिर टिका कर अतीत की किताब के पन्ने पलटने लगी। उसे वो दिन याद आने लगा जब बाहरवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा का परिणाम आया था। बोर्ड की परीक्षा फल आते ही सोसायटी में शोरगुल मच गया था। जहाँ एक ओर बच्चों के दिलों की धड़कनें तेज़ हो गईं थी वहाँ दूसरी ओर अभिभावक भी उत्साहित से दिखाई दे रहे थे। सभी को अपने अपने बच्चों के विभिन्न विषयों में आए अंकों को देखने की आतुरता हो रही थी। साल भर तो बच्चों और उनके अभिभावकों का अधिकांश समय अच्छी रेफरेंस पुस्तकें, अच्छे ट्यूटर्स खोजने में लग जाता है। सत्र के आरंभ में ही विभिन्न विषयों की पढ़ाई के घण्टे निर्धारित किए जाने लगते हैं। इन सबके पीछे एक बात बिल्कुल स्पष्ट होती है कि अधिकतर बच्चों और उनके अभिभावकों का लक्ष्य बस एक ही होता है सिर्फ़ और सिर्फ़ अच्छे अंक मिल जाएँ ज्ञान कितना अर्जित हुआ इसकी चिंता किसी को नहीं होती। इसके बाद किसी तरह प्रतियोगी परीक्षाओं में अच्छा रैंक लाकर बस डॉक्टर, इंजीनियर, कलक्टर आदि बन जाएँ इससे कम कोई कुछ नहीं चाहता। यह किसी महायुद्व लड़ने जैसा ही होता है। साल भर कड़ी करने के मेहनत करने के बाद रिज़ल्ट आता है उसके तुरन्त साथ ही दूसरे महाभारत की तैयारी आरम्भ होने का बिगुल बज जाता है। अब बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए के लिए तैयार होना पड़ता है। अभिभावकों की भी भाग-दौड़ शुरू हो जाती है। एक बार फिर अच्छे कोचिग सेंटर में प्रवेश के लिए चिंता आरम्भ हो जाती है।
कोटा शहर, शिक्षा नगरी के नाम से विख्यात हो चुका है। सबकी इच्छा वहाँ के अच्छे से अच्छे कोचिंग सेन्टर्स में दाख़िला लेने की होड़ आरम्भ जाती है अभिभावक बड़ी-बड़ी फ़ीस देकर बच्चों का दाख़िला करवा कर गंगा स्नान की तरह अपनी क़िस्मत को सराहते हैं। आज सवेरे से ही जवाहर सोसायटी में भी यही शोरगुल मचा हुआ था। बोर्ड परीक्षा के नतीजे आने की ख़बर मिलते ही सोयायटी में हलचल मच गई। सीमा, रीना, प्रिया, नेमत, दीपक, सलिल, नीता, मेहर और बहुत सारे बारहवीं कक्षा के छात्रों को जैसे ही यह ख़बर मिली वो अपने रिज़ल्ट और अंक देखने स्कूल की ओर दौड़े पड़े। दूसरी ओर मीता, परेश और रवि के पैर मानो उठ ही नहीं रहे थे। घबराहट हो रही थी मन भय के कारण ज़ोरों से धड़कने लगा था। आरंभ से ही उनकी विज्ञान और गणित में रुचि नहीं थी परन्तु उनके अभिभावकों ने ज़बरन अपनी इच्छा को उन पर थोप दिया था। इनके माता पिता ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था वह यदि बच्चे आर्टस के विषय लेकर आगे की पढ़ाई करेंगे तो उनकी इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी। उनके बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। अभिभावकों बेचारों की एक न चली। अब परीक्षाओं के बाद उन्हें पास होने की भी उम्मीद कम नज़र आ रही थी। कुछ ही देर में सबक़ा रिज़ल्ट सामने आ गया। अधितर बच्चे 65 से 98 प्रतिशत तक नम्बर लेकर पास हुए थे परन्तु इन तीनों बच्चों के 48 से 55 प्रतिशत नम्बर ही बन पाए थे। एक ओर अधिकांश घरों में बधाई और पार्टी का माहौल था वहाँ नीता, परेश और रवि के घर मुर्दनी सी छाई थी। डाँट-डपट के साथ ही उन पर मायूसी के बादल छाए थे। मीता के पापा तो सारा दोष मीता की मम्मी को ही दे रहे थे। उधर परेश की मम्मी अपने पति को उलाहने दे रही कि उन्होंने ऑफ़िस में ओवर टाइम करने के चक्कर में बेटे की पढ़ाई को उपेक्षित कर दिया। रवि तो ग़ुस्से में अपने माता-पिता को ही दोष दे रहा था। उसका कहना था कि विज्ञान और गणित उसकी बिल्कुल रुचि नहीं थी उसकी इच्छा के विपरीत वही विषय लेने को मजबूर किया गया इसी कारण उसके कम अंक आए हैं। अधिकतर अभिभावक अपने अपने बच्चों को लेकर शिक्षा नगरी कोटा जा पहुँचे थे। आनन-फानन में कोचिंग सेंटर्स में प्रवेश दिला कर होस्टल और पी जी के चक्कर काटने शुरू हो गए थे। इधर रवि के पापा ने भी एक कोचिंग सेंटर में मोटी फ़ीस दे कर जैसे-तैसे उसे प्रवेश दिलवा दिया। वहाँ एक अन्य लड़के के साथ शेयरिंग के कमरे में रवि के रहने का प्रबंध करके उन्होंने अपने को धन्य मान लिया।
मीता की मम्मी, पति के उलाहने खा कर क्षुब्ध सी बैठी थी। उन्हें समझ नहींं पा रही थी कि वह कहाँ ग़लत थी? सवेरे से लेकर रात तक वह अपने परिवार की ख़ुशहाली के लिए तन मन से कार्यरत रहती फिर भी दोष उसी का माना जा रहा था। मीता को, पापा का इस तरह मम्मी पर दोषारोपण करना सही नहींं लग रहा था। मम्मी बेचारी का क्या दोष है? वह हमेशा सारे काम अकेली करती रहती है। पढ़ाई के चलते माँ ने कभी उससे घर का काम करवाने में मदद नहीं माँगी। वह क्या करती? विज्ञान और गणित समझ ही नहीं आता था। उसने कई बार पापा जी को दबे स्वर में अपनी समस्या बताई भी परन्तु उन्होंने उस समय ध्यान ही नहीं दिया। पापा के ऑफ़िस जाने के बाद वह अपनी मम्मी के गले लग कर बहुत रोई। उसका रिज़ल्ट देख कर पापा निराश हो गए थे। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि उच्च शिक्षा मीता के बस की नहीं है वह अब उसकी आगे की पढ़ाई करवाने और कहीं किसी कॉलेज में एडमिशन दिलवाने के लिए बिल्कुल उत्सुक नहीं थे। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि इसे घर का काम-काज, सिलाई-बुनाई आदि सिखाओ। कुछ साल बाद शादी कर के विदा करो।
यह सुन कर मीता और उसकी मम्मी का दिल निराशा से भर गया। क्या करें किससे अपनी समस्या बताएँ? अचानक मीता को अपने स्कूल की आभा मैडम की याद आई। वह बहुत ही नम्र और अच्छी थी। सभी विद्यार्थियों के साथ एक समान व्यवहार करती थीं। वह केमिस्ट्री की अध्यापिका थी आभा मैडम ही उसकी एक मात्र हितैषी थी। वह दोनों अपनी समस्या को लेकर, उनकी सलाह लेने आभा मैडम के घर चली गईं। वो उसी सोसाइटी में रहती थीं। उनके घर निराशा और चिन्ता से घिरी हुईं दोनों माँ और बेटी ने अपनी पूरी समस्या आभा मैडम को सुना डाली। आभा मैडम उन दोनों से बड़े प्यार से मिलीं। दोनों यह देख कर ढंग रह गईं क्योंकि मीता को कल की एक घटना याद आ गई कल जब वह स्कूल में मार्कस्लिप लेने गई थी तब अधिकतर अध्यापकों ने उसे उपेक्षित निगाहों से देखा था। कुछ अध्यापकों ने तो उसे अपना रिज़ल्ट को ख़राब कर देने का ताना भी दिया था। मीता बहुत क्षुभित-सी हो कर स्कूल से लौटी थी। इसके विपरीत आभा मैडम का स्वभाव अलग था। वो बहुत स्नेह से मिलीं। उन दोनों के बार-बार मना करने के बाद भी उन्होंने पहले उन्हें चाय नाश्ता करवाया। इसके बाद माँ बेटी ने हिम्मत करके उन्हें विस्तार से अपनी समस्या बताई। आभा मैडम ने दोनों को धीरज देते उनकी हिम्मत बढ़ाते उन्हें बड़े प्यार से बताया और समझाया कि मीता की जिस विषय में रुचि हो उसे विषय में आगे की पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उदाहरण के लिए यदि मीता की रुचि सिलाई-कढ़ाई, पाक कला में है तो मीता को बी.ए. होमसाइंस में दाख़िला करवाने की सलाह दी। यही नहीं उन्होंने मीता और उसकी मम्मी को कुछ विभिन्न जगहों के होम सांइस कॉलेज के पते और फ़ोन नम्बर भी उपलब्ध करवाए। जहाँ पता करके वो इन कॉलेजों के विषय में सारी जानकारी प्राप्त कर सकती थीं। मीता ने आभा मैडम की सहायता से उन सब कॉलेजों की पूरी जानकारी जुटाई। अब मीता को राह मिल गई लेकिन कॉलेजों में पता करने पर मालूम हुआ कि इन कॉलेजों में होस्टल आदि को मिला कर पूरा ख़र्च उनकी बजट से बाहर जा रहा था। यह जानकर भी मीता की मम्मी ने हिम्मत न हारी। वह अपनी बेटी के भविष्य के लिए बहुत चिन्तित और सजग थीं। उन्होंने निश्चय किया कि वह अपने कुछ ज़ेवरों के बदले लोन ले लेगीं और मीता को चंडीगढ़ के होम साइंस कॉलेज में प्रवेश अवश्य दिलवा देंगी। शेष ख़र्च के लिए उन्होंने अपना पुराना और प्रिय कार्य सिलाई-कढ़ाई दोबारा से शुरू करने का निश्चय किया। मीता की मम्मी ने विवाह से पहले सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण प्राप्त किया हुआ था। कुछ साल पहले तक तो सोसायटी में उनके बनाये हुए डिज़ाइनर कपड़ों की धूम मची रहती थी परन्तु बाद में घर की ज़िम्मेदारी के चलते उन्होंने यह काम बंद कर दिया था। आज उसे अपनी बेटी के भविष्य के लिए फिर से यह काम आरंभ करने में बहुत ख़ुशी और गौरव महसूस हो रहा था।
मीता को चंडीगढ़ के प्रसिद्ध होम साइंस कॉलेज में दाख़िला मिल गया। मीता अब पूरी मेहनत और लगन से अपनी पढ़ाई में जुट गई। उसकी पढ़ाई का ख़र्चा भी बहुत आसानी से निकलने लगा था। इधर परेश को जब फिजिक्स केमेंस्ट्री में अंक कम होने के कारण साइंस में दाख़िला नहीं मिल पाया तो उसने बी.कॉम. में प्रवेश लेकर आगे पढ़ाई करने जारी की। साथ-साथ अपना बाक़ी समय फ़ुटबाल की प्रैक्टिस में देना आरंभ कर दिया। समय बीतता गया। मेधावी बच्चे कोचिंग करके प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों में जुट गए लेकिन कुछ ऐसे भी बच्चे थे जो जो केवल अपने अभिभावकों की इच्छा और झूठी शान के आगे सिर झुका कर कोटा नगरी में कोचिंग लेने आ तो गए थे। पर शहर की चकाचौंध में वो अपने मुख्य उद्देश्य को भुला कर मौज और मस्ती, सैर-सपाटे के चक्कर लिप्त हो गए थे। मॉल, बाज़ार आदि में घूमते-फिरते रहते थे। इसी दौरान बहुत से लड़के और लड़कियों में आपसी आकर्षण भी बढ़ गया। इन सब बातों के कारण वो अपनी मंज़िल से विमुख हो गए। इसमें सारा दोष बच्चों का ही नहीं था। दरअसल कुछ अभिभावक अपने बच्चों का रुझान और योग्यता को आँके बिना ही, अपने रिश्तेदारों, पड़ोसियों से प्रतिस्पर्धा करते हुए बच्चों पर डॉक्टर, इंजीनियर आदि बनाने के लिए बहुत ही दबाव डालते हैं; इससे शायद उनके अहम को संतुष्टि मिलती है। भले ही उनके बच्चे के अंदर इतनी योग्यता हो या नहीं हो। ऐसे बच्चे पढ़ाई के अत्यधिक दबाव से बचने के लिए अपने मुख्य उद्देश्य और दिशा से विमुख हो जाते हैं। ऐसे ही करते-करते कोचिंग सेंटर में 1 या 2 साल तक कुछ वह नहीं कर पाते। वह बच्चे समय व पैसे का अपव्यय कर के न घर के रहते हैं न घाट के रहते हैं।
अचानक टैक्सी वाले ने पैट्रोल डलवाने के लिए गाड़ी रोकी तो अनुराधा अतीत से लौट आई। वो चाय पीकर ताज़ा हो कर आगे के सफ़र पर चल पड़े। वहाँ चंडीगढ़ में उनके दो दिन बहुत भाग दौड़ और उत्साह से भरे हुए गुज़रे। कॉलेज के कार्यक्रम का अभिभावक और सभी विद्यार्थियों को बड़ी उत्सुकता से इंतज़ार था। मुख्य अतिथि के भाषण के बाद कुछ होनहार छात्रों को गोल्ड और सिल्वर मैडल भी प्रदान किए। इस सूची में मीता का भी नाम था। मुख्य अतिथि ने जब स्टेज पर मीता को गोल्ड मैडल पहना कर सम्मानित किया तो अनुराधा की आँखें ख़ुशी के आँसुओं से छलक उठी। पूरा हॉल तालियों को गड़गड़ाहट से गूँज उठा। स्टेज से उतरते ही मीता ने वह मैडल अपनी मम्मी के गले में पहना दिया और उनके गले लग गई। इस मौक़े पर उसके पिता भी भावुक हो उठे। जिस बेटी को बारहवीं में कम अंक मिलने पर उसे खोटा सिक्का घोषित कर चुके थे। उसे कॉलेज की पढ़ाई के लिए अयोग्य घोषित कर दिया था। यही नहीं कम अंकों के लिए उन्होंने मीता को कितना प्रताड़ित किया था। उन्होंने सिर्फ़ बेटी को ही नहीं अपनी पत्नी अनुराधा को भी आड़े हाथों लिया था। आज उसी बेटी ने अपनी मम्मी अनुराधा की सूझबूझ और अपनी मेहनत और लगन से समाज में उनका नाम रोशन कर दिया।
चंडीगढ़ से लौट कर अनुराधा और निर्मला ने अपनी सोसाइटी के क्लब में एक छोटी सी पार्टी का आयोजन किया। इस पार्टी में बच्चों और बड़ों सभी की पसन्द को ध्यान में रखते हुए मेन्यू बनवाया गया। सारे पड़ोसियों को क्लब में आमंत्रित किया गया। इस अवसर पर उन्होंने आभा मैडम को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया। सभी पड़ोसी हैरान थे कि आज इन दोनों को ऐसी कौन-सी ख़ुशी मिल गई है जो इन्होंने पूरी सोसायटी को पार्टी में न्यौता दिया। पार्टी आरंभ हो, इसके पहले आभा मैडम सभी आमंत्रित लोगों से मुख़ातिब होकर बोलीं कि आज मैं आपको अपने दो ऐसे होनहार छात्रों से मिलवाने जा रही हूँ जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन से न केवल अपने जीवन नई और सही दिशा दी है इसके साथ अपने परिवार और अध्यापकों के नाम को भी रोशन किया है अपनी मेहनत का उन्हें बहुत सुखद परिणाम भी मिला है। मीता ने चंडीगढ़ के एक नामचीन होम सांइस कॉलेज में टॉप करके गोल्ड मैडल प्राप्त किया है। यही नहीं उसे उसी कॉलेज में लेक्चरार के पद पर नियुक्त करने का विचार भी किया जा रहा है दूसरी ओर परेश जो प्रदेश स्तर पर फ़ुटबाल का श्रेष्ठतम खिलाड़ी बन चुका है। उसे सरकार ने बैंक में सरकारी नौकरी प्रदान की है इसके साथ ही वह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फ़ुटबाल खेलने के लिए निरंतर अपना अभ्यास भी जारी रखेगा। आज इन्हीं दोनों बच्चों की ख़ुशियों में शामिल होने के लिए आप सभी को यहाँ आमंत्रित किया गया है। इतना कह कर आभा जी बैठ गईं।
निर्मला और अनुराधा ने सभी को लंच आरंभ करने के लिए हाथ जोड़ कर अनुरोध किया। भोजन बहुत लज़ीज़ बना था। सभी भोजन की तारीफ़ कर रहे थे परन्तु बीच में कुछ लोग ऐसे भी थे जो ईर्ष्या की अग्नि में जल रहे थे, वो खाना खाते आपस में खुसर-पुसर भी कर रहे थे। ख़ास तौर पर वो सब लोग जिन्होंने अपने बच्चों को जबरन कोचिंग सेंटर में भेजा था। वो बच्चे प्रतियोगी परीक्षाओं में जब कोई तीर न मार सके तो उनके माता-पिता ने प्राइवेट कॉलेजों में भारी-भारी डोनेशन दे कर उन्हें मेंडिकल ओर इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाख़िला दिलवाया था। मेहनत और योग्यता के अभाव में वो बार-बार सेमेस्टर परीक्षा के कुछ पेपर्स में फ़ेल हो रहे थे इससे उनके धन और समय दोनों का अपव्यय हो रहा था। कुछ लोगों के चेहरे पर ईर्ष्या साफ़ झलक रही थी। लंच के बाद सब लोग मीता और परेश को शुभकामनाएँ देकर जाने लगे। इसके बाद एक बात तो स्पष्ट हो गई कि महत्वाकांक्षी अभिभावक अपने बच्चों पर जबरन अपनी इच्छाएँ थोपने के कारण मन ही मन अपराध बोध से लज्जित सा महसूस कर रहे थे। पार्टी ख़त्म होने के बाद सब अपने घरों को लौटने लगे। जाते समय अधिकतर अभिभावकों के मन में एक ही प्रश्न बार-बार उठ रहा था कि जहाँ बच्चों के भविष्य का सवाल होता है, वहाँ पर अभिभावकों को बच्चों की क्षमता और रुचि का ध्यान न रखते हुए, जबरन उन्हें बलि का बकरा बनाना और अपने फैसले उन पर थोपना क्या सही है? अपने बच्चों की योग्यता को न आँक कर दूसरे बच्चों की बराबरी और स्पर्धा करना क्या उचित है? यह कुछ कुछ भेड़ चाल जैसा नहीं है तो और क्या है? जो भी हो पर मीता और परेश इन दोनों के उदाहरण ने सबको एक नया सबक़ तो अवश्य सिखा दिया था।