भाषा की महक

15-07-2022

भाषा की महक

नवरात्रा (अंक: 209, जुलाई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

भाषा भावनाओं का स्वरूप है, 
व्यक्ति के व्यवहार का दूसरा रूप है
भाषा का प्रयोग अत्यंत सरल है, 
चाहो तो विरल नहीं तो अविरल है 
 
स्थान परिवर्तित होते ही
भाषा कुछ इस प्रकार बदल जाती है, 
कहीं रोहिड़ा खिलता है, 
तो कहीं हरसिंगार की कली मुस्कुराती है
फूल हाथों में कोई भी हो, 
अपनी सुगंध छोड़ ही देता है
अलग-अलग फूलों से मिलकर, 
बाग़ ख़ूबसूरती की चादर ओढ़ ही लेता है 
 
आख़िर भाषा चाहे जो हो, 
दिल से निकलती है
शब्द भले ही अलग हो, 
पर धारणा मिलती है
आप मुझे समझ रहे हैं, 
यही मेरी आशा है
हिन्दी मेरी बोली है, 
मेरी मातृभाषा है। 

2 टिप्पणियाँ

  • 8 Jul, 2022 10:04 PM

    बहुत ही सुंदर व गहरी!!

  • 7 Jul, 2022 05:57 PM

    बहुत ही बढ़िया कविता। भगवान तुम्हें सफलता देते रहें।

कृपया टिप्पणी दें