अगर ख़बरें कुछ अच्छी होतीं तो कितना अच्छा होता! 

15-05-2025

अगर ख़बरें कुछ अच्छी होतीं तो कितना अच्छा होता! 

नवरात्रा (अंक: 277, मई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

रोज़ सुबह उठकर 
एक हाथ में चाय का प्याला
दूसरे में अख़बार उठाते हैं, 
यों तो हम बड़े शौक़ से रोज़ 
देश दुनिया की ख़बरें जुटाते हैं
 
पर पहला पन्ना पढ़ते ही सहम जाते हैं, 
दूसरे के बारे में किसी से कुछ नहीं कह पाते हैं, 
आजकल ख़बरें पढ़कर
दिन बनता नहीं बिगड़ जाता है, 
परिवार की चिंता रहती है
मन बहुत घबराता है
 
यों तो पहले भी भाई-भाई आपस में जायदाद के लिए लड़ा करते थे, 
पर चंद रुपयों के लिए एक दूसरे का ख़ून नहीं किया करते थे, 
यों तो पहले भी बहू बेटियों के मान की चिंता रहती थी, 
पर पूरे महल्ले की बहू बेटियाँ सब की बहू बेटियाँ हुआ करती थी, 
ज़रूरत के वक़्त पड़ोसियों के यहाँ भी हक़ से सो जाते थे, 
लोग चोरी चकारी, लूट पाट जैसी ख़बरों से ही बहुत डर जाते थे
 
आजकल हम हमारे बच्चों को बाहर भेजने तक से डरते हैं, 
चीर हरण वाला क़िस्सा बार-बार तो 
हम महाभारत का भी नहीं पढ़ते हैं, 
हाथ में एक मुसीबतों का डब्बा है
जो बना तो लोगों को जोड़ने के लिए था
लेकिन वो परिवारों को तोड़ रहा है
कोई अपने घर में भी सुरक्षित नहीं रहा
और समाज ने तो वैसे भी जाती–धर्म का चोग़ा ओढ़ रखा है
काश माता-पिता की गंभीर हालत का
इस बदलती दुनिया को पता होता, 
अगर ख़बरें कुछ अच्छी होती
तो कितना अच्छा होता! 

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