बँटा हुआ एक घर

15-10-2021

बँटा हुआ एक घर

डॉ. कुँवर दिनेश (अंक: 191, अक्टूबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

मैंने कविता लिखनी चाही
एक घर पे―
एक ही छत के नीचे
बँटा हुआ एक घर
कितने ही कट-
घरों में विभाजित,
सब में पृथक्-
पृथक् चूल्हा,
चूल्हे से उठता धुँआ
सब क-ट-घ-रों में फैल रहा,
धुँए में कुछ भी
साफ़ नहीं दीख पड़ रहा . . . 
धुँआ हटे 
तो कविता बने . . .  

1 टिप्पणियाँ

  • 22 Oct, 2021 04:45 PM

    धुँए में धूँ-धूँ करते रिश्ते...आपने गागर में सागर भर कर रख दिया।

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