ऐसी सम्पूर्णता कृष्ण में ही व्यक्त है
डॉ. अंकेश अनन्त पाण्डेय
ऐसी सम्पूर्णता कृष्ण में ही व्यक्त है!
द्वेष का विलोम बन
प्रेम का व्योम बन
धर्म के अभीष्ट कृष्ण,
देवकी के आठवें सुत
अष्टमी को जन्में
मोह लिया गोकुल को
नर, नारी, धेनु को
रास रच, मन भाव
जोड़ के परम से
लीलाधर से वृन्दावन
प्रेम नीर, सिंचित है
कृष्ण की नीति प्रीति
विचित्र अनोखी है
मन में प्रिय राधा को
बंसी संग रख दिया
चक्र धर ऊर्ध्व हुए
काल की ये रीति है
अधर्म राज मथुरा में
कंस संग मेट दिया
दिव उदित वाणी को
सत्य रूप ढालकर
जननी को न्याय
का एक अंश भेंट किया
दारुण जो मित्र देख
निज पद सौंप दे
द्रौपदी की लाज रख
वस्त्र कर अनंत दे
रथ मात्र हाँक कर
युद्ध सारा खेल दे
गीता आत्मबोध के
शोध आचारण की
चित्त वृत्ति की,
निर्विति हेतु सिद्ध है
ज्ञानयोग कर्मयोग की
एक साथ प्रधानता
ऐसी संपूर्णता
कृष्ण में ही व्यक्त है