आत्मयुद्ध
डॉ. शबनम आलम
हर किसी को जीवन में
एक बार
करना पड़ता है आत्मयुद्ध
आत्मयुद्ध,
रणयुद्ध से भी ज़्यादा होता है मुश्किल
क्योंकि, रणयुद्ध लड़ा जाता है
प्रतिद्वंद्वी के ख़िलाफ़
जहाँ होते हैं
अनेक योद्धा उनके साथ
जहाँ बढ़ाते हैं
एक दूसरे का मनोबल
पर, यहाँ
ख़ुद को ख़ुद से लड़ना होता है
बार-बार गिरना और उठना होता है
अपने मृत मनोबल में
स्वयं ही जान फूँकनी पड़ती है
ताकि बची रहे जिजीविषा
सच मानो
अगर जीत लिये तुमने
इस आत्मयुद्ध को
फिर, इस जीवन में
तुम्हें कोई हरा नहीं सकता
1 टिप्पणियाँ
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अति उत्तम। मनोबल का ही सहायक है आत्मयुद्ध।