लागा चुनरी में दाग़ – 2

01-11-2021

लागा चुनरी में दाग़ – 2

नीलू चोपड़ा (अंक: 192, नवम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

विदेश जाने के बाद रोहित ने न तो नीता को कोई फोन ही किया  और न ही कोई खोज-ख़बर ही ली। विवश हो कर नीता ने ही उसे दो बार फोन किया और उसे अपनी सारी दुविधा बताई। इस पर रोहित ने जवाब दिया कि चिंता मत करो, मैं वापिस आने के बाद तुम्हारी सारी परेशानी दूर कर दूँगा। 

रोहित को गए हुए दो महीने बीत चुके थे। नीता को, आजकल अपनी तबीयत में बहुत बदलाव का अनुभव होने लगा था। हर समय थकावट और कमज़ोरी सी महसूस होती थी। माँ ने भी उसे पूछा कि उसका चेहरा क्यों पीला पड़ता जा रहा है और किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाने की सलाह भी दी। नीता को अब, अपनी गिरती हुई सेहत का कारण कुछ-कुछ समझ में आ रहा था, वह शर्म और भय से बुरी तरह व्यथित हो गई। अगर उसका शक वास्तविकता में बदल गया तब क्या होगा? उसने रोहित को तुरन्त फोन किया और अपनी बिगड़ती हुई तबीयत की सारी जानकारी दे दी। यह सुन कर रोहित बुरी तरह से झल्ला उठा और क्रोध में आ कर बोला, "तुम पढ़ी-लिखी हो कर भी इस तरह जाहिलों और अनपढ़ों वाली बातें कर रही हो? अब तक क्या तुम सो रही थी। तुम्हें मालूम नहीं ऐसी मुसीबत से कैसे छुटकारा पाया जाता है? अब तक तुम किसके इंतज़ार में बैठी हुई थी।"

नीता के हाथ पैर ठंडे पड़ गए। यह रोहित ने ऐसी ओछी बात कैसे कर डाली। उसने उसे ग़लत क़िस्म की लड़की तो नहीं समझ लिया? रोहित ने तो दो टके की बात कर अपना पीछा छुड़वा लिया। अब उसी को कुछ सोचना पड़ेगा। उसके घर के आसपास के जो डॉक्टर थे वो सब उनके परिचित थे; उनके पास जाने पर बहुत बदनामी का डर था। लाचार हो कर वह एक ऑटो रिक्शा लेकर शहर के दूसरे कोने में जा पहुँची, जहाँ उसे कोई भी जानता नहीं था। तनाव से उसका बुरा हाल था। मस्तक की शिराएँ फटने को थीं। वहाँ, वह सबसे पहले वह एक बुज़ुर्ग महिला डाक्टर के पास गई। उसने पूरा चेकअप करवाया। डॉक्टर बहुत अनुभवी थी। उसने नीता की अच्छी तरह से जाँच करने के बाद बताया कि उसे ढाई महीने का गर्भ है और अब उस अपने खाने-पीने का ख़ास ध्यान रखने की आवश्यकता है। उसने नीता को कुछ ताक़त की दवाइयाँ भी लिख दीं। डॉक्टर की सारी बात सुन कर नीता को मारे घबराहट से ज़ोर से चक्कर आने शुरू हो गए। शरीर ठंडा पड़ गया। डॉक्टर ने उसकी यह हालत देख कर पूछा, "क्या बात है? तुम प्रेग्नेंसी के बारे में सुन कर घबरा क्यों गई। माँ बनना तो एक स्त्री के लिए बहुत ख़ुशी और गौरव की बात है।"

डॉक्टर की इस बात को सुन कर नीता शर्म और बेबसी से रो पड़ी, और बोली, मैं अभी बच्चा नहीं चाह रही हूँ। मैं अभी गर्भपात करवाना चाहती हूँ, अभी मेरे ऐसे हालात नहीं हैं कि मैं अपने बच्चे का भली प्रकार पालन-पोषण कर सकूँ।" 
यह सुन कर डॉक्टर हैरान हो कर बोली, "यह तो बड़ी अनोखी सी बात है, मैंने तो ग़रीब से ग़रीब लोगों को भी यहाँ क्लिनिक में आते देखा है जो गर्भ धारण करने के बाद अपने को ख़ुशक़िस्मत समझते हैं और ख़ुशियों मनाते हैं। मुझे तो आपकी आर्थिक स्थिति अच्छी लग रही है; आप न जाने किस कारण से इस ख़ुशी से वंचित रहना चाह रहीं है। यदि आपका फिर भी बच्चा नहीं चाहिए तो कल आप अपने पति को साथ ले आइए उनकी आज्ञा के बिना तो हम आपका गर्भपात नहीं कर सकते," यह कह कर डॉक्टर उठ कर खड़ी हो गई। 

नीता, उसके बाद आसपास की और डॉक्टर्स के पास भी गई पर हर जगह यही जवाब मिल रहा था। अब वो परेशान हो हो चुकी थी। बदहवास-सी हो कर उसने रोहित को फोन किया परन्तु उसका फोन तो स्विच ऑफ़ आ रहा था। अब वो मजबूर-सी हो गई। कोई चारा न देख उसने अपनी माँ की शरण ली और अपने कलंक के विष का प्याला माँ के हाथ में थमा दिया। उसकी माँ उसकी सारी बात सुन कर एक पत्थर जैसी बन गई। यह देख कर नीता, माँ के गले लग प्रलाप करने लगी। 

"माँ तुम मुझे जान से मार डालो, मैं कुलटा हूँ, पतिता हूँ मैंने पाप किया है। तुम चुप न रहो। मैंने आपके विश्वास को तोड़ दिया।"

यह सुन माँ का ख़ून पानी बन गया। एक पल के लिए वो अत्यंत रोष में आ गई। नीता को अपने से दूर धकेलते हुए बोली, "तूने अपने मृत पिता और हमारे ख़ानदान का नाम मिट्टी में मिला दिया। दूर हो जा मेरी नज़रों से।"

नीरा सुध-बुध खो शून्य में देखने लगी। माँ ने जब नीता को ऐसे हाल में देखा तो उसका मातृत्व तड़प उठा। वह डर गई उसने सोचा उससे मिली प्रताड़ना पाकर नीता, कोई ग़लत क़दम न उठा बैठे। उसने खींच कर नीता को अपने गले से लगा लिया। दोनों माँ-बेटी फूट-फूट कर रोने लगीं। माँ ने नीता की पूरी बात सुनी। नीता ने बिना कुछ भी छिपाए सारी व्यथा-कथा अपनी माँ को कह डाली। अब उसकी माँ स्वयं ही उसे अपनी एक पुरानी और विश्वस्त डाक्टर के पास ले कर गई परन्तु उस डॉक्टर ने समझाया कि अब बहुत देर हो चुकी है अब एबॉर्शन करवाने से नीता की जान को ख़तरा हो सकता है। नीता की माँ किसी भी क़ीमत पर भी अपनी इकलौती बेटी की जान ख़तरे में नहीं डालना चाहती थी। अब उन्होंने रोहित की प्रतीक्षा करने का फ़ैसला किया। उसे पूरा विश्वास था 20 दिन बाद जब रोहित आ कर सब जान जाएगा तो सारी बात को सम्भाल लेगा। रोहित अपने बच्चे की ख़बर सुन कर सब कुछ ठीक कर लेगा वो दोनों बस बेक़रार हो कर रोहित की राह देखने लगीं। 

कुछ दिन बाद ही, एक दिन, जब नीता कॉलेज से लौट रही थी तो उसे रोहित के बँगले में कुछ रौनक़ सी देखी। अंदर से कुछ लोगों की, ज़ोर-ज़ोर से हँसने खिलखिलाने की आवाज़ें भी आ रहीं थीं। नीता ने अनुमान लगा लिया कि रोहित विदेश से वापिस आ गया है। उसे बहुत ही तसल्ली-सी हो गई। घर पहुँच कर वह माँ के गले लग गई उन्हें रोहित के लौटने की ख़बर दी। अब माँ और बेटी दोनों बहुत ही बेक़रारी से रोहित का उनके घर आने का इंतज़ार करने लगीं। नीता ने माँ को भोजन में कुछ अच्छा सा पकाने का आग्रह किया। उस दिन उसने कॉलेज से भी अवकाश लेने के लिए फोन भी कर दिया। उन दोनों की आशा के बिल्कुल विपरीत सुबह से शाम होने को आई पर रोहित का कुछ अता-पता नहीं था। रोहित के स्थान पर उनके घर पर अचानक देविका जी आ गईं। दोनों ने अपनी निराशा को छिपाते हुए बड़े आदर से उन्हें बिठाया। नीता ने माँ को चाय बनाने को कहा, स्वयं उनके पास बैठ बातचीत करने लगी। बातों-बातों में देविका जी उससे पूछ बैठीं कि नीता कल तुम लोग रोहित के घर पार्टी में नहीं दिखाई दे रहे थे? सभी अन्य पड़ोसी तो वहाँ उपस्थित थे। नीता ने विस्मित हो कर पूछा, "परन्तु हम लोगों को तो उन्होंने आमन्त्रित ही नहीं किया था। वहाँ पर आयोजन किस बात का था?"

देविका जी यह सुन कर बहुत हैरान हो उठी और बोली, "अरे तुम यह क्या बात कर रही हो कि तुम्हें वहाँ बुलाया ही नहीं गया। रोहित के घर में तो दो-दो ख़ुश ख़बरी थी पहली तो रोहित की ट्रेनिंग पूरी हो गई है और दूसरी रोहित की सगाई भी पक्की हो गई है। इस अवसर पर तो उसके पापा भी यहाँ एक दिन के लिए फ़्लाइट से आए थे।"

यह सुन कर नीता के चेहरे का रंग ही उड़ गया। वह यह ख़बर सुन कर सन्न-सी रह गई मानो किसी ने उसके शरीर से प्राण ही खींच लिए हों। वह आवाक्‌-सी बैठी रह गई तो देविका जी भी नीता में आए इस आकस्मिक बदलाव से चकित हो उठीं। देविका जी बहुत असमंजस में पड़ गईं। क्या बात हो गई? जो नीता का मूड एकाएक ही बदल बदल गया? उन्होंने किसी तरह चाय ख़त्म की और उठ कर खड़ी हो गईं। जाते-जाते बोलीं नीता, "लगता है शायद . . . तुम्हारी तबीयत मुझे कुछ ठीक नहीं लग रही है। तुम जाकर आराम करो अभी मैं जाती हूँ फिर किसी दिन आऊँगी।"

उनके जाने के बाद नीता कटे वृक्ष की तरह बिस्तर पर गिर पड़ी और विलाप करने लगी। नीता का रुदन सुन उसकी माँ किचेन से आटे से सने हाथ लिये दौड़ती हुई वहाँ आई। नीता को इस हाल में देख वह घबरा गई। जब उसे सारी बात मालूम हुई तो उसके पैरों के तले से लगी ज़मीन खिसक गई। भावी अनिष्ट की चिन्ता से उसकी रूह काँप उठी। अब नीता का क्या होगा यह सोच कर उसकी माँ बदहवास सी हो गई। वो बहुत ही शांत, सौम्य, मधुर भाषी महिला थी पर वह यह ख़बर सुन कर वह नागिन की तरह फुफकार उठी। वह आवेश में आकर, रोहित को कोसने लगी और भिन्न-भिन्न अपशब्दों से विभूषित करने लगी। नीता तो बिल्कुल निष्प्राण सी बैठी थी। इस ख़बर ने उसके जीवन को झिंझोड़ के रख दिया था। अचानक उसके मन में आत्मघात करने की इच्छा जागृत हो उठी। एकाएक उसने मन ही मन कुछ निर्णय लिया और एक झटके से उठ खड़ी हो गई। उसने अपने कमरे में जा कर अंदर से दरवाज़ा बंद कर लिया। यह देख उसकी माँ घबरा गई और उसके पीछे-पीछे दौड़ी। उन्हें, अब नीता का इरादा कुछ ठीक नहीं लग रहा था। किसी अनहोनी के होने का अंदेशा और आसार दिखाई दे रहे थे। नीता की माँ ने नीता से दरवाज़ा खोलने की बहुत मिन्नत की परन्तु नीता ने अंदर से कोई जवाब ही नहीं दिया। तब उसकी माँ ने नीता को बाहर लाने के लिए अपने अंतिम अस्त्र का सहारा लिया। उसने नीता को उसके मृत पिता की सौगंध दे दी। नीता को अपने पापा से बेहद लगाव था। मृत पिता की क़सम के कारण बेबस हो कर दरवाज़ा खोल कर वह बाहर आ गई। समय की नज़ाकत को देखते हुए माँ ने रोती हुई नीता को प्यार से समझाकर अपने गले से लगा लिया। उसे पुचकारते और सान्त्वना देते हुए बोली, "बेटी, धीरज और विश्वास रखो। ईश्वर के घर देर है परन्तु अँधेर नहीं है। हम कल ही रोहित और उसकी मम्मी से बात करने जाते हैं। मुझे पूरी आशा है कि रोहित की मम्मी को तुम्हारी इस हालत की कुछ भी ख़बर नहीं है। रोहित ने भय के कारण उन्हें कुछ भी बताया नहीं होगा। यह ख़बर सुन कर वह अविलम्ब ही तुम दोनों को विवाह सूत्र में बाँधने में देर नहीं करेंगी।" 


अगली शाम को दिन ढलने के बाद, साहस करके नीता और उसकी माँ, रोहित के बँगले में जा पहुँची परन्तु दरबान ने उन्हें बँगले के गेट पर ही रोक दिया। वह पूछने लगा कि आपको यहाँ किससे मिलना है? नीता ने जब रोहित का नाम लिया तो तो वह अंदर सूचित करने गया। रोहित का नाम सुनते ही उसकी मम्मी हैरान हो उठी। वह दरबान को पीछे करते हुए स्वयं तन कर उनके सामने जा खड़ी हुई। आधुनिक साज-सज्जा में, मेकअप से लिपी-पुती, उस गर्वीली महिला को देख वह दोनों ही सकपका-सी गईं। रोहित की मम्मी ने बड़ी अवज्ञा से उन्हें ऊँचे स्वर में पूछा, "आप लोग कौन हैं? रोहित को आप कैसे जानती हैं? उससे आपको क्या काम है?"

रोहित की मम्मी के ऐसे तेवर देख नीता अपमानित-सी हो कर क्रोध से भर उठी और उसने भी रोष में भर कर कहा, "ज़रा आप अपने बेटे को बुलाइए, वही आपको मेरा परिचय बहुत अच्छी तरह से दे देगा कि मैं कौन हूँ?"

नीता की ऐसी बुलन्द आवाज़ सुन कर, दबंग रोहित की मम्मी भी चकित रह गई। रोहित भी अपने कमरे में ही था। जब उसने, नीता और अपनी मम्मी की बहस की आवाज़ें सुनीं तो वह घबरा कर घर के स्टोर रूम में जा घुसा। उसकी मम्मी बुरी तरह से बौखला गईं और तुरन्त नौकर को रोहित को बुला लाने का आदेश दिया। मजबूर हो कर रोहित को आना ही पड़ा। नीता और उसकी माँ को सामने देख कर मारे घबराहट के उसके होश उड़ गए। उसने बड़ी चालाकी से उन दोनों की उपस्थित को अनदेखा करते हुए अपनी मम्मी से मुख़ातिब हो बहुत भोला बन कर पूछा, "आपने मुझे  बुलाया?"

उसकी मम्मी ने कड़क आवाज़ में उससे पूछा, "रोहित, क्या तुम इन दोनों औरतों को जानते हो? देखो तो सही, यह दोनों बेवज़ह मुझसे बहस कर रहीं हैं।"

रोहित ने यह सुनकर, नीता से आँखे चुराते हुए कहा, "हाँ मम्मी, मैंने इनको तो लगता है कि शायद देविका जी के घर हुई पार्टी में देखा था; परन्तु यह दूसरी महिला कौन हैं, मैं उन्हें नहीं जानता।"

यह सुन कर नीता क्रोध से बिफर उठी और आवेश में आकर उसने लपक कर रोहित का कॉलर पकड़ लिया। रोहित ने भी अपने को छुड़ाने के प्रयास में नीता को ज़ोर से धक्का दिया। नीता घायल शेरनी की भाँति दहाड़ते हुए बोली, "रोहित, तुम इस तरह अनजान बन कर अपने गुनाहों पर पर्दा नहीं डाल पाओगे। अपने माता-पिता की सौगंध खा कर कहो कि तुम मुझे नहीं जानते? तुमने मुझसे प्यार नहीं किया था? तुम मेरे घर नहीं आते थे? मुझे कॉलेज लेने नहीं आते थे? यही नहीं, मेरी माँ की अनुपस्थिति में मेरे लाख इंकार करने पर भी जबरन एक रात को मेरे घर रुके। तुमने, मेरे साथ जल्दी ही विवाह करने का वादा किया था? तुमने मेरा शील भंग किया था?"

इतना सुन कर भी रोहित बिल्कुल अनजान बनते हुए अपनी मम्मी से बोला, "मम्मी, मैं तो यह सुन कर बहुत हैरान हो रहा हूँ। मैं तो इस लड़की को अच्छी तरह जानता तक नहीं हूँ। यह मुझ पर न जा क्यों इल्ज़ाम पर इल्ज़ाम ही लगाती जा रही है?"

रोहित के इस सफ़ेद झूठ को सुन नीता अपने आपे से बाहर हो गई। उसने आगे बढ़ कर रोहित के गाल पर ज़ोर से तमाचा जड़ दिया और ज़ोर से चिल्लाते हुए बोली, "नीच, फ़रेबी! ईश्वर से डरो इस तरह मुझसे धोखा करके तुम कभी सुख की नींद नहीं सो पाओगे। कभी शांति नहीं पाओगे।" 

यह कहते कहते नीता की आवाज़ भर्रा उठी। मारे बेबसी के वो रो पड़ी। रोहित के इनकार और अपनी बेटी के प्रलाप को सुन नीता की माँ क्षुब्ध रह गई। वह रोहित की मम्मी से बड़ी नम्रता से बोली, "सुनिए, बहनजी आप थोड़ी समझदारी से काम लो। कोई भी शरीफ़ घर की लड़की ऐसे इल्ज़ाम किसी लड़के पर क्यों लगाएगी जिनमें उसके अपने चरित्र पर भी बदनामी के छींटें पड़ रहे हों? अब आप दोनों का यह निर्मम व्यवहार असहनीय है। मुझे अपनी बेटी की बात पर पूरा-पूरा यक़ीन है; वो कभी झूठ नहीं बोलती है। आप मेरी भोली-भाली बेटी के साथ ऐसा अन्याय मत करिए।" यह कहते हुए नीता की माँ बेबस-सी हो कर रोहित की मम्मी के क़दमों में झुक गई और बोली, "आप, नीता को अपना लीजिये इसीमें सब की भलाई है।"

अपनी माँ को इस तरह अपमानित होते, गिड़गिड़ाते हुए देख नीता का आत्मसम्मान छलनी-छलनी हो गया। उसने अपनी माँ को उठा कर गले लगा लिया और आवेश में बोली, "माँ, तुम किन निर्दयी और पापियों के क़दमों मे गिर कर इंसाफ़ की भीख माँग रही हो? यह वो लोग हैं जिनके केवल कपड़े ही उजले हैं परन्तु इनके मन अंदर से घोर काले और कलुषित है।"

यह सुन रोहित की मम्मी के तन बदन में आग लग गई। उसने बाहर खड़े गार्ड को बुलाकर उन दोनों को बँगले से बाहर निकालने का आदेश दिया। गार्ड के आगे बढ़ने से पहले ही, अपनी आँखों से अंगारे बरसाती नीता अपनी माँ का हाथ पकड़ कर बँगले से बाहर निकल आई। घोर निराशा, और अपमान की आग में जलती हुई दोनों माँ और बेटी, घने अंधकार में एक दूसरे के हाथ पकड़े हुऐ निःशब्द रोते हुए अपने घर वापिस आ गई। दोनों के व्यथित हृदय से ऐसी आह निकल रही थी जो रोहित जैसे पापियों को जला कर भस्म करने में सक्षम थी। 

— क्रमशः

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