क्या देखा है तुमने
सन्तोष कुमार प्रसाददेखा है लोगों को मैंने
तूफ़ानों से लड़ते हुए
चक्रवातों को सहते हुए
अपनी मंज़िलों पर पहुँचते हुए
अपने डग के निशान छोड़ते हुए
देखा है मैंने उनको भी
अपने मद में इठलाते हुए
अपनी धुरी बनाते हुए
सुना था भरा-पूरा
पेड़ झुक जाता है
पर मैंने देखा है लोगों को तने हुए
देखा मैंने लोगों को बारिश में भीगते हुए
ठण्ड में ठिठुरते हुए
स्ट्रीट लाइट में पढ़ते हुए
क्या देखा है तुमने उनको
कुछ बनते हुए
अपने आप से लड़ते हुए
देखा है घर के कोने
में गौरैया को
घोंसला बनाते हुए
तिनका तिनका करके
आशियाना बनाते हुए
देखा है गौरैया को
चोंच से बच्चो को
खाना खिलाते हुए
क्या देखा है उस
दुष्ट कौवों को
उनका आशियाना उजाड़ते हुए
क्या देखा है तुमने
उनको बच्चों के लिये विलाप करते हुए
क्या देखा है तुमने उनको
बच्चों में भेद करते हुए
देखा है लोगों को मैंने
तूफ़ानों से लड़ते हुए