'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
सुशांत सुप्रियकिंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं थी
कथा में मेमनों की खाल में भेड़िये थे
उपदेशकों के चोलों में अपराधी थे
दिखाई देने के पीछे छिपी
उनकी काली मुस्कुराहटें थीं
सुनाई देने से दूर
उनकी बदबूदार गुर्राहटें थीं
इसके बाद जो कथा थी, वह असल में केवल व्यथा थी
इस में दुर्दांत हत्यारे थे, मुखौटे थे,
छल-कपट था और पीड़ित बेचारे थे
जालसाज़ियाँ थीं, मक्कारियाँ थीं,
दोगलापन था, अत्याचार था
और अपराध करके साफ़
बच निकलने का सफल जुगाड़ था
इसके बाद कुछ निंदा-प्रस्ताव थे,
मानव-श्रृंखलाएँ थीं, मौन-व्रत था
और मोमबत्तियाँ जला कर
किए गए विरोध-प्रदर्शन थे
लेकिन यह सब बेहद श्लथ था
कहानी के कथानक से
मूल्य और आदर्श ग़ायब थे
कहीं-कहीं विस्मय-बोधक चिह्न
और बाक़ी जगहों पर
अनगिनत प्रश्न-वाचक चिह्न थे
पात्र थे जिनके चेहरे ग़ायब थे
पोशाकें थीं जो असलियत को छिपाती थीं
यह जो 'काल्पनिक कहानी नहीं थी'
इसके अंत में
सब कुछ ठीक हो जाने का
एक विराट भ्रम था
यही इस समूची कथा को
वह निरर्थक अर्थ देता था
जो इस युग का अपार श्रम था
कथा में एक भ्रष्ट से समय की
भयावह गूँज थी
जो इसे समकालीन बनाती थी
जो भी इस डरावनी गूँज को सुन कर
अपने कान बंद करने की कोशिश करता था
वही पत्थर बन जाता था ...
1 टिप्पणियाँ
-
थोड़े शब्दों में वृहदार्थ समेटे सार्वकालिक सत्य... बहुत तथ्यात्मक कविता
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- 'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
- इधर से ही
- इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं
- ईंट का गीत
- एक जलता हुआ दृश्य
- एक ठहरी हुई उम्र
- एक सजल संवेदना-सी
- किसान का हल
- ग़लती (सुशांत सुप्रिय)
- जब आँख खुली
- जो कहता था
- डरावनी बात
- धन्यवाद-ज्ञापन
- नरोदा पाटिया : गुजरात, 2002
- निमंत्रण
- फ़र्क
- बोलना
- बौड़म दास
- महा-गणित
- माँ
- यह सच है
- लौटना
- विडम्बना
- सुरिंदर मास्टर साहब और पापड़-वड़ियों की दुकान
- स्टिल-बॉर्न बेबी
- हक़ीक़त
- हर बार
- अनूदित कहानी
- कहानी
- विडियो
-
- ऑडियो
-