इसलिए नाम तक बेख़बर है मेरा
वैभव 'बेख़बर'
212 212 212 212
इसलिए नाम तक बेख़बर है मेरा
मुझको मालुम नहीं क्या हुनर है मेरा,
मुद्दतें हो गयीं उनसे बिछड़े हुए
प्रेम वो आज भी हमसफ़र है मेरा,
फ़िक्र की ही कहाँ मंज़िलों की कभी
रास्तों के हवाले सफ़र है मेरा,
चार दीवार हों, है तमन्ना यही
एक दीवार का नक्श-ए-घर है मेरा,
बैठे-बैठे ख़्यालों में खो जाता है
आज भी उनके दिल पे असर है मेरा