रेणुका ने द्वार पर खड़ी माँगने वाली को खाना देकर दरवाज़ा बन्द कर लिया, सहसा उसके मुँह से निकल पड़ा- "ये माँगने वाले भी, सुबह-सवेरे ही... ख़ैर।"

"माँ आपने खाना किसको दिया?" बच्चे ने पूछा।

"बेटा माँगने वाली थी, द्वार पर आ खड़ी हुई, उसे दे दिया।"

"आपने तो सारी मिठाई भी दे दी, मेरे लिए कुछ रखा ही नहीं," बच्चे ने नाराज़ होते हुए कहा।

"बेटा वो रात का बासा खाना था, मिठाईयाँ भी ख़राब हो चली थीं, तुम खाते तो उल्टियाँ करते और बीमार पड़ जाते। मैं तुम्हारे लिए ताज़ा मिठाईयाँ बना दूँगी," रेणुका ने बच्चे को समझाते हुए कहा।

बच्चे ने पूछा- "माँ ओ माँगने वाली कैसे खायेगी मिठाई, वो बीमार....?"

बात काटकर- "बेटा वो ग़रीब ठहरी, इन लोगों को सब हज़म होता है, ये न बीमार होती है, न कुछ और।"

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