धरित्री
प्रभात कुमारधान्यागार है वो धरित्री
सुरम्य कर उसे ये प्रकृति
महिषी बनी धरित्री
धरा की गोद में,
सर्वतोमुख सरोजिनी सरोवर में,
सर्ग करता उस नीर में,
उज्ज्वल सी किरण
पड़े उस सरोज में
धरा ले जिसे गोद में,
गिरि से गिर निर्झर धारा
कूलंकषा इसकी वाहिनी है
जल की प्रवाहिनी है
मानव जन्म का आवरण है
धरित्री सब में पावन है
है जो हम सब का पालनहार
कम कर, रे मानव अपना संहार
धरित्री ही है,अपना संसार॥
2 टिप्पणियाँ
-
आजकल के समय की आवश्यकता के अनुसार कवि प्रभात कुमार जी ने अपनी इस सुन्दर कविता धरित्री में प्रकृति के प्रति एक मानव की जागरूकता को अच्छी तरह से समझाया है।
-
आप का कविता पढ़कर बहुत खुश हूँ