अनुत्तरित प्रश्न
प्रगति गुप्ता
रात गहरी नींद में नीता के शरीर पर अचानक ही अनमोल का एक हाथ ज़ोर से आकर गिरा तो वह घबरा कर उठ बैठी। मुश्किल से घंटा डेढ़ घंटा पहले उसको नींद आई होगी। वह कुछ पल को तो स्तब्ध और हक्की-बक्की सी रह गई कि अचानक यह हुआ क्या? ड्रेसिंग रूम में लगे ज़ीरो वाट के बल्ब की रोशनी, उसके कमरे में बहुत हल्की-हल्की पहुँचती थी। नीता ने तेज़ी से उठकर अपने बेड-साइड पर लगे हुए ट्यूब-लाइट के स्विच को ऑन किया, तो उसका चेहरा एकदम फक्क पड़ गया।
नीता ने जैसे ही आड़े पड़े हुए अनमोल को सीधा किया तो उसकी चीख ही निकल गई। अनमोल ने अपनी कलाई पर किसी धारदार चीज़ से कट लगाया हुआ था। बिस्तर पर बिखरे हुए ख़ून को देखकर नीता बुरी तरह घबरा गई। उसने जल्दी से ड्रॉअर खोलकर बैन्डेज निकाली और उसे टाइट करके अनमोल के हाथ पर दो-तीन जगह से बाँध दिया, ताकि बहते हुए ख़ून का बहाव कम हो सके।
अनमोल की इस ग़लत हरक़त से नीता कुछ ज़्यादा ही सकपका गई, क्योंकि उसकी दृष्टि में किसी भी समस्या का समाधान ख़ुद को ख़त्म करना नहीं होता। उसने घबराहट में बेसुध पड़े हुए अनमोल को तेज़ आवाज़ में पुकारकर बोलना शुरू कर दिया, “अनमोल! अनमोल . . . यह क्या किया है आपने? होश में आइए। . . . अनमोल होश में आइए।” . . . अनमोल के जवाब न देने से नीता की घबराहट और भी ज़्यादा बढ़ रही थी।
रात के सन्नाटे में गूँजती हुई माँ की आवाज़ों को सुनकर उनकी ग्यारह वर्षीय बेटी निकिता भी कमरे में दौड़कर पहुँच गई।
जैसे-तैसे नीता ने एम्बुलेंस को बुलाया। अस्पताल के स्टाफ़ और घर के नौकर की मदद से अनमोल को एम्बुलेंस में शिफ़्ट किया। एम्बुलेंस में ही नीता अपने साथ निकिता को भी लेकर रवाना हो गई। नीता बार-बार अनमोल का हाथ पकड़कर उसकी नब्ज़ टटोल रही थी . . . पर घबराहट में उसको नब्ज़ नहीं मिल रही थी। वह अनमोल को बराबर आवाज़ें देकर उसके आँख खोलने का इंतज़ार कर रही थी।
“आप ठीक तो हो न अनमोल . . . आपको कुछ नहीं होना चाहिए। प्लीज़ बोलिए . . . कुछ तो बोलिए।”
माँ की आँखों में आँसू देखकर मासूम निकिता ने भी रोते हुए अनमोल को पुकारना शुरू कर दिया, “पापा! प्लीज़ एक बार अपनी आँखें खोलिए . . . प्लीज़।”
तभी अचानक अनमोल ने अपनी हल्की-सी आँख खोलकर . . . दोनों की तरफ़ देखा और धीमी आवाज़ में बोला, “तुम सब मुझे मरने क्यों नहीं देते, और कितना अपमानित करोगे। मैं ज़िन्दा नहीं रहना चाहता। इस तरह की नाख़ुश ज़िन्दगी जीने से तंग आ चुका हूँ।”
अपनी बात बोलते-बोलते अनमोल अचानक ही सुबकने लगे, और उन्होंने आँखें बंद कर लीं। नीता ने उसकी किसी भी बात का कोई जवाब नहीं दिया। निकिता के पुकारते ही अनमोल का आँखें खोलकर बोलना, मगर नीता के पुकारने पर कोई प्रतिक्रिया न देना, उसको असमंजस में ज़रूर डाल गया था।
अस्पताल पहुँचते ही नीता तेज़ी से एम्बुलेंस से उतरी और निकिता का हाथ थामकर अस्पताल के रिसेप्शन की ओर दौड़ पड़ी। उसने रिसेप्शन पर अनमोल के सभी विवरण दिए और ज़रूरी औपचारिक पेपर्स साइन किए। तब तक अस्पताल का नर्सिंग स्टाफ़ अनमोल को एम्बुलेंस से स्ट्रेचर पर लिटाकर आई.सी.यू. में पहुँच गया। नीता रिसेप्शन से हटी तो उसे अनमोल का पी.ए. अमित आता हुआ दिखा, मगर चिंताओं से घिरी नीता की उससे कोई बात नहीं हुई।
नीता ने आई.सी.यू. के बाहर बैठकर भगवान को याद करना शुरू किया ही था कि अचानक माँ के फोन की घंटी ब्लिंक होते देखकर नीता ने फोन लिया। कुछ भी बताने से पहले उसके शब्द कुछ सेकंड को मुँह में ही क़ैद होकर रह गए। हिम्मत बटोरकर उसने कहा, “माँ! . . . आज अनमोल ने ख़ुद को ख़त्म करने की कोशिश की। घर में वह सिर्फ़ आपकी बात सुनते हैं। आपको हमारे पास ही होना चाहिए था। आप जल्द ही वापस लौट आइये। मैं अनमोल को नहीं सँभाल पाऊँगी।”
अपनी बात बोलकर नीता फूट-फूटकर रोने लगी। वह अभी तक अपनी घबराहट पर क़ाबू नहीं कर पाई थी। माँ-बेटे के तार शायद कुछ इस तरह जुड़े थे कि उनको आभास हो गया था। तभी सवेरे चार बजे उन्होंने फोन किया। नीता को परेशान महसूस कर माँ धीमी आवाज़ में बोली, “बहुत बुरा ख़्वाब देखा था बेटा। काफ़ी देर तक जब वापस नींद नहीं आई तो . . . सोचा फोन ही लगा लूँ। ख़ुद को सँभालो। मैं और तुम्हारे पापा जल्द से जल्द पहुँचने की कोशिश करते हैं। कानपुर से लखनऊ बहुत दूर नहीं है। सब ठीक हो जाएगा . . . उम्मीद मत छोड़ना बेटा। निकिता कहाँ है?”
“निकिता मेरे पास है माँ . . . उसको घर में अकेला कैसे छोड़ती?”
नीता की बात सुनकर माँ ने राहत की साँस ली। आज नीता को माँ की भर्राई हुई कंपनों से भरी आवाज़ कुछ-कुछ अपनी ही आवाज़ लगी।
कल ही तो माँ-पापा लखनऊ से कानपुर गए थे। अनमोल की बड़ी बहन सीमा का ससुराल वहाँ था। शायद अनमोल माँ-पापा के घर से जाने का ही इंतज़ार कर रहे थे। तभी तो उनके निकलते ही उसी रात अनमोल ने आत्महत्या का प्रयास किया।
लगभग तीन घंटे बाद आई.सी.यू. का स्टाफ़ नीता को थियेटर से अपनी ओर आता हुआ दिखा। जैसे-जैसे वह नीता के पास पहुँच रहा था, नीता की धड़कनें बेक़ाबू होती जा रही थीं। उसके नज़दीक पहुँचते ही नीता ने निकिता का हाथ कसकर थाम लिया। उस पल नीता को लगा, मानो उसकी साँसों ने भी अनमोल की साँसों की तरह साथ छोड़ दिया हो। तभी स्टाफ़ ने नीता को आवाज़ दी, “मैडम! आपका मरीज़ अब ठीक है। जब डॉक्टर्स आपको मिलने की अनुमति दे देंगे . . . मैं आपको आकर बता दूँगा। आप चाहे तो अस्पताल में लिए हुए कमरे में आराम कर सकती हैं।”
स्टाफ़ की बात सुनकर नीता की जान में जान आई, और उसने एक गहरी साँस ली। पर वह साथ ही साथ बुदबुदा भी गई, ‘अनमोल मरीज़ ही तो है . . . इतना पढ़ा-लिखा व्यक्ति, अपनी ज़िद पूरी करवाने के लिए ऐसा कृत्य करता है . . . तो उसे मरीज़ ही कहेंगे।’ नीता के हिसाब से अच्छे माँ-पापा, ख़ूब रुपया-पैसा, आलीशान घर और प्यारी-सी बेटी साथ थे। फिर कमी कहाँ थी?
अनमोल की तबीयत में सुधार होने की इत्तला मिलते ही नीता थोड़ा सोचने की स्थिति में आ गई थी। कमरे में जाने से पहले उसने आई.सी.यू. के बाहर लगे काँच से अनमोल को देखा। दूर से मॉनिटर पर अनमोल की चलती हुई साँसों को देखकर नीता को थोड़ी राहत मिल गई थी। वरना रात बिस्तर पर बिखरे हुए ख़ून को देखकर वह अजीब-सी दहशत में आ गई थी। हादसे के बाद तो उसको महसूस हो रहा था कि वह पूरी तरह साँस नहीं ले पा रही है। एक अव्यक्त-सा शून्य उसके अंदर फैल गया था।
नीता ने सबसे पहले निकिता को अस्पताल की केंटीन में ले जाकर सेंडविच खिलवाया, और ख़ुद एक बड़ा मग कॉफ़ी ली। काफ़ी घंटों से चल रही दिमाग़ी मशक़्क़त ने उसे बहुत थका दिया था। उसके सोचने-समझने की क्षमता भी शिथिल हो चुकी थी। सेंडविच खाते हुए जब निकिता ने नीता से सवाल पूछा तो वो असमंजस में पड़ गई . . . नन्ही-सी बच्ची को क्या जवाब दे?
“माँ! पापा ने ऐसा क्यों किया? पापा मर जाने की बात क्यों बोल रहे थे? इज़ देयर सम अदर वुमन इन हिस लाइफ़? . . . मेरे फ़्रेंड्स कहते हैं जब ऐसा होता है, तभी कोई मरने की कोशिश करता है।”
निकिता बहुत छोटी नहीं थी। आजकल बच्चे उम्र से पहले बड़े हो जाते हैं। वह भी अपने पापा के सुसाइड करने की वजह खोज़ने की कोशिश कर रही थी।
“अभी मेरा मन ठीक नहीं है निकिता। मैं तुम्हारी सभी बातों का जवाब ज़रूर दूँगी। तुम्हारा खाना ख़त्म होते ही हम कमरे में चलेंगे। वहाँ जाकर तुम थोड़ी देर सो जाना बेटा। परेशान मत हो, तुम्हारे पापा ठीक हो जाएँगे।”
नीता ने कुछ समय के लिए निकिता को तो चुप कर दिया, मगर कमरे में पहुँचते ही नीता के अतीत ने पन्ने उलटने शुरू कर दिए।
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नीता की पीएच.डी. पूरी होते ही पढ़े-लिखे लड़कों के रिश्ते आने शुरू हो गए थे। वह जॉब लगने का इंतज़ार कर रही थी कि एक रोज़ माँ ने उससे कहा, “नीता! किसी दूर के परिचित ने एक रिश्ता बताया है। तुम्हारे पापा और मुझे रिश्ता बहुत जँच रहा है। लड़का आई.आई.टी. से ग्रैजुएइट व एम.बी.ए. है। सुनते हैं . . . उसका साल भर का पैकेज़ लगभग एक करोड़ का है। लड़का दिखने में भी हैन्डसम है। तुम भी फोटो देख लो। पहले फोन पर बात करना। अगर तुम्हें बातचीत में सब ठीक लगेगा . . . तभी मिलने जाने का प्रोग्राम बनाएँगे।”
माँ-पापा को उसके पैकेज से ज़्यादा दोनों के मन मिलने की प्राथमिकता थी। आख़िरकार उनकी बेटी भी बहुत पढ़ी-लिखी और इकलौती संतान थी।
नीता की अनमोल से फोन पर दो-तीन बार बात हुई। उसे बातचीत करने में जब अनमोल अच्छा लगा, तब वे अनमोल व उसके घर वालों से मिलने इलाहाबाद से लखनऊ पहुँचे। अनमोल का पुश्तैनी घर बहुत आलीशान था। उसके माँ-पापा भी उन्हें बहुत मिलनसार व प्यार करने वाले लगे। चाय-नाश्ते के बाद अनमोल की मम्मी ने अनमोल से कहा, “बेटा! तुम दोनों चाहो तो पास वाले कमरे में जाकर एक-दूसरे से बातें कर लो, ताकि हम तुम दोनों के भविष्य के लिए किसी निर्णय पर पहुँच सकें।”
अनमोल के माँ-पापा बहुत सुलझे हुए इंसान थे। उन्होंने बहुत अच्छे से अटेन्ड किया, पर अनमोल से मिलने के बाद नीता को उसके व्यवहार में कुछ ऐसा था . . . जो समझ नहीं आया। दोनों एक-दूसरे के साथ दो घंटे बैठे। पढ़ाई-लिखाई, करिअर और भविष्य से जुड़ी योजनाओं पर बहुत तसल्ली से बातें हुईं, पर विदा लेते समय नीता बहुत सकारात्मक तरंगों के साथ नहीं उठी। साथ ही उसको अनमोल का ड्रेसिंग-सेन्स भी कुछ अटपटा-सा लगा।
वहाँ से लौटते समय उसने पापा-मम्मा से कहा, “माँ! सब कुछ ठीक है, पर कुछ है जो मुझे समझ नहीं आया। मुझे उनका ड्रेसिंग-सेन्स अजीब लगा। हालाँकि हरेक का अपना ड्रेसिंग होता है। हो सकता है उन्हें मेरा ड्रेसिंग अजीब लगा हो पर . . .”
“अजीब मानी? . . . बेटा! जो बच्चे आई.आई.टी. या ऑल इंडिया जैसे संस्थानों में पढ़ते हैं . . . बहुधा उनकी कुछ बातें समझ नहीं आतीं। ऐसा लोग कहते हैं।”
माँ ने अपना पॉइंट रखकर उस बात को वहीं ख़त्म कर दिया। फिर वह आगे बोली, “उसके मम्मी-पापा से मिलकर अच्छा लगा। बहुत नेक व भले हैं। बोल रहे थे बच्चे एक-दूसरे को पसंद कर लें तो दो महीने बाद शादी का मुहूर्त निकलवा लेंगे।”
नीता को भी अनमोल के माँ-पापा से मिलकर अच्छा लगा था, पर आज के हादसे के बाद नीता असमंजस में थी कि उसने शादी के लिए हाँ क्यों और कैसे कर दी थी? जबकि अनमोल का व्यक्तित्व कुछ प्रश्न खड़े कर रहा था। उसे हाँ करने से पहले थोड़ा समय और लेना चाहिए था। सही कहते हैं लोग . . . “शादी जुआ है। लिखे हुए भाग मति भ्रमित कर देते हैं।”
दीपावली से कुछ दिनों पहले दोनों का विवाह बहुत धूमधाम से हो गया। विवाह के बाद कुछ साल बहुत अच्छे निकले . . . सिवाय अनमोल की कुछ आदतों के जो अक्सर नीता को परेशान करती थी। वह अनमोल से कहती भी थी, “अनमोल! तुम इतनी बड़ी कंपनी में हो। थोड़े डीसन्ट कपड़े पहनोगे तो और भी ज़्यादा हैन्डसम लगोगे। इतने बड़े-बड़े फूलों वाले शर्ट्स और फ़्लेयरड पैंट . . मुझे इस तरह के कपड़े बहुत अजीब लगते हैं। तुम्हारे बोलने का अंदाज़ भी कभी-कभी क्यों बदल जाता है?”
नीता की बात सुनकर अनमोल कुछ इस तरह हँसता कि नीता ख़ौफ़ में आ जाती। नीता ने सुन रखा था कि हर स्त्री में कुछ पुरुष के गुण होते हैं और पुरुषों में स्त्री के गुण। अनमोल की हँसी में उसके अंदर की स्त्री जब खिलखिलाती . . . तो वह उसके कपड़ों से बहुत मेल खाती थी। नीता की बात पर अनमोल खिलखिलाकर हँसता और अपने कंधे उचकाकर कहता, “नीता! तुम्हें मेरे कपड़े पहनने का स्टाइल अच्छा नहीं लगता तो न लगे पर मुझे तो बहुत अच्छा लगता है। जहाँ तक बोलने का सवाल है, मैं ऐसा ही हूँ। जैसा भी हूँ . . . वैसा ही अपनाना पड़ेगा तुम्हें। कभी नहीं बदल पाऊँगा ख़ुद को। माँ ने बहुत कोशिश की, पर रहा न डिट्टो वैसा ही। अब तो हमारे बच्चा भी होने वाला है। तुम ख़ुश रहा करो बस। उसके होने के बाद ख़ुद को बदलने की कोशिश करूँगा।”
इस तरह की बातें करके अनमोल नीता का ध्यान उन बातों से हटवा देता, पर अनमोल जिस तरह तैयार होकर ऑफ़िस जाता . . . नीता को हमेशा ही खटकता था।
नीता को लगता था अनमोल शायद समय के साथ बदल जाए। नीता ने शादी के एक महीने बाद ही कंसीव कर लिया था। कंसीव करने के बाद नीता को एक अनजान ख़ौफ़ ने घेर लिया था कि कहीं बच्चा भी अनमोल जैसा न हो जाए। समय आने पर बेटी निकिता ने जन्म लिया। वह अपनी बेटी से बहुत प्यार करता था। समय के साथ बहुत कुछ बदला। अगर नहीं बदला तो वह अनमोल था।
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समय की तेज रफ़्तार में शादी के बाद आठ साल गुज़र गए। नीता बार-बार निकिता की आदतों को ध्यान से देखती . . . कहीं वह अनमोल जैसी तो नहीं हो रही।
अनमोल अधिकतम समय ऑफ़िस में ही रहता था। समय के साथ दोनों के बीच बातचीत कम हो गई थी। पाँच साल नौकरी करने के बाद अनमोल ने अपनी फ़र्म खोल ली। जिसमें उसने बहुत रुपया-पैसा कमाया। नीता को उसकी आदतों की थोड़ी-थोड़ी आदत होने लगी थी। इतने साल साथ रहने से उसका जुड़ाव अनमोल के साथ हो गया था, पर वह अनमोल से प्यार कभी भी नहीं कर पाई। नीता ने अनमोल के हाव-भाव को देखते हुए अगला बच्चा न करने का निर्णय ले लिया था।
अनमोल जब भी स्नान करने जाता कमरा अंदर से बंद कर लेता था। शायद उस रोज़ वह अपना कमरा बंद करना भूल गया था। नीता जैसे ही कमरे में अचानक पहुँची, अनमोल नहाकर नीता की ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ा था। उसने नीता का बाथरोब अपने ऊपर लपेटा हुआ था, और वह शीशे के सामने खड़ा होकर नीता के ज़ेवर पहन रहा था।
यह सब देखकर नीता के हाथों में जो तह किए हुए कपड़ों की गड्डी थी, वह उसके हाथों से अनायास ही छूट गई, और वह लगभग चीखते हुए अनमोल से बोली, “यह क्या कर रहे हो तुम। शर्म आनी चाहिए तुम्हें। अभी तक सोचती थी तुम्हारा ड्रेसिंग सेन्स ही गड़बड़ है। पर तुम तो पूरे ही गड़बड़ हो। हट जाओ मेरे सामने से! मुझे बहुत ग़ुस्सा आ रहा है।”
“ग़ुस्सा आ रहा है . . . तो करो न ग़ुस्सा। किसने रोका है तुम्हें। ऐसा क्या गुनाह कर दिया मैंने, जो तुम इतना ज़ोर से बोलने लगी। मैं ऐसा ही हूँ। अच्छा लगता है मुझे यह सब करना। तुम्हें नहीं देखना तो आँखें बंद कर लो।”
अपना राज़ खुलता हुआ देखकर अनमोल ने बहुत ढिठाई से जवाब दिया। दोनों के बीच बढ़ती लड़ाई की आवाज़ें जब माँ के कमरे तक पहुँचीं तो वह दौड़कर अनमोल के कमरे में आ गई। उन्होंने अनमोल को डाँट लगाते हुए कहा, “क्या हो गया है तुम्हें। तुमने मुझे प्रॉमिस किया था, ऐसी हरकतें नहीं करोगे। आज इतनी बड़ी कंपनी के मालिक हो। इतने लोग तुम्हारे अंडर काम करते हैं। फिर क्यों? प्यारी-सी बेटी है तुम्हारी, और नीता जैसी सुघड़ पत्नी भी।”
माँ की बात सुनकर अनमोल एक अरसे बाद ठीक वैसे ही हँसा, जिस हँसी को सुनकर नीता ख़ौफ़ में आ गई थी। नीता माँ से सटकर खड़ी हो गई। अनमोल ने माँ से कहा, “माँ! मैंंने आपकी वजह से यह शादी की थी। नहीं करनी थी मुझे शादी, पर शायद आपको लगता था, शादी होने से मैंं ठीक हो जाऊँगा। सालों साल पहले मैंने कहा था न, मुझे लड़की बन जाने दो। आप और पापा ही मेरे पीछे पड़ गए, और क़सम ले ली। मुझे अच्छा लगता है लड़कियों की तरह रहना, उनकी तरह के कपड़े पहनना। माँ! तुम्हारा बेटा लड़का नहीं लड़की बनकर पैदा होना चाहिए था।”
अपनी बात बोलकर अनमोल फिर ज़ोर से खिलखिलाकर हँस पड़ा। उसकी आँखों में कोई अपराधबोध नहीं था। उस रोज़ नीता ने अनमोल को छोड़ने का पक्का निर्णय ले लिया था। इस घटना के वक़्त नीता ईश्वर का लाख-लाख शुक्र मना रही थी कि निकिता स्कूल गई हुई थी।
अनमोल को छोड़ने का ख़्याल उसके मन में पहले भी कई बार आया था, पर अनमोल अपने उन्माद से निकलने के बाद नीता और माँ-पापा से माफ़ी माँग लेता था। अनमोल के बदले व्यवहार का लिहाज़ कर वह चुप रह जाती थी।
आज नीता को महसूस हो रहा था कि पहले भी इस तरह की हरक़त अनमोल अधिक चौकन्ना होकर या छिपकर करता होगा। उस रोज़ भी माँ से बात करने के बाद अनमोल तो सामान्य होकर ऑफ़िस चला गया, पर नीता को बेचैन कर गया था।
रात अनमोल के साथ सोने में नीता बहुत डरी हुई थी। उसको दिन भर की थकान के बाद भी नींद नहीं आ रही थी। नीता को रह-रहकर अनमोल की हँसी याद आ रही थी। अनमोल का व्यवहार उसको वितृष्णा से भर रहा था। उसने अपने मम्मी-पापा को भी सभी बातें विस्तार से बता दी थीं।
अभी तक अनमोल का यह राज़ नीता से छिपा हुआ था, पर राज़ खुलने के बाद वह सामान्य दिख रहा था। तभी माँ-पापा के शहर से बाहर जाते ही उसने यह निर्णय लिया।
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अब माँ-पापा भी कानपुर से वापस आ गए थे। माँ ने जब नीता को परेशान देखा तो उन्होंने नीता का हाथ अपने हाथों में लेकर पहली बार अनमोल के बारे में बताना शुरू किया, “बेटा! जब अनमोल नौ-दस साल का था, तब सीमा के कपड़े पहनने की ज़िद करता था। कभी उसके सिर पर लगाने वाली रंग-बिरंगी पिनों को अपने बालों में लगा लेता। कभी उसकी चप्पलों को पहन कर सारे घर में दौड़ता। मेरे और पापा के ग़ुस्सा करने पर बोलता, ‘दीदी भी तो पैंट-शर्ट पहनती है . . . तो मैं उनके कपड़े क्यों नहीं पहन सकता?’ उसके दलीलें देने पर हम चुप हो जाते। तुम्हारे पापा के एक डॉक्टर मित्र हैं। हमने उनसे बात की थी। उन्होंने कहा, ‘अक्सर घर में बड़ी बहन होने से लड़के उनकी आदतों का अनुसरण करने लगते हैं। तभी आपने देखा होगा कि लड़के या लड़कियाँ वाक्यों को बोलते समय लिंग का अंतर नहीं कर पाते। आप उसकी इन आदतों को बस हतोत्साहित करिए। सब समय के साथ ठीक हो जाएगा।’ उनकी बातें सुनकर हम निश्चिंत हो गए।”
आज माँ की आँखों से झाँकती हुई नमी में उनकी लाचारी झलक रही थी। वह आगे बताने लगीं, अनमोल पढ़ने-लिखने में बहुत होशियार था। हर क्लास में टॉप करता था। जब उसको पता चल गया कि हम उसको किन बातों पर टोकने वाले हैं . . . तो वह शायद बहुत चौकन्ना हो गया था। उसके बाद हमको उसकी कोई भी ऐसी हरक़त नज़र नहीं आई।”
अनमोल के बारे में बताते-बताते न जाने कितनी बार माँ की आँखों से आँसू निकल पड़े। पापा भी साथ में बैठे थे, पर उनके मुँह से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था। जब माँ बहुत भावुक हो गई तो पापा नीता से बोले, “नीता बेटा! हमने सुन रखा था ऐसे जीनियस बच्चे थोड़ा अलग होते हैं। ज़्यादा टोका-टोकी करने पर ग़लत निर्णय भी ले लेते हैं। तुम्हारी माँ और मैं हमेशा ही डरते थे, कहीं हमारी ज़्यादा टोका-टोकी से कुछ ग़लत न हो जाए।”
“आपने फिर कभी डॉक्टर्स से बात की?”
बहुत से परिचित डॉक्टर्स से बात की। सभी ने कहा, ‘बेटे का आई.आई.टी. में सलेक्शन हो गया है। जब बिज़ी हो जाएगा . . . सब ठीक हो जाएगा।’ उसके बाद एक बार घर से क्या निकला कि आठ-नौ साल बाद लौटा। इंजिनियरिंग के बाद मैनेजमेंट कोर्स करने के कारण बहुत अच्छी जॉब मिल गई। हमने सोचा सब ठीक ही होगा। हम दोनों बहुत निश्चिंत हो गए थे। तभी तो हमने शादी के लिए लड़की की तलाश की। हालाँकि अनमोल ने बस एक बार ही बग़ैर वजह बताए शादी करने के लिए मना किया था। मगर हमको लगा बेटा कमाने लगा है तो हमारी यह ज़िम्मेदारी भी पूरी हो जाए।”
पापा के चुप होते ही माँ ने अपनी बात पुनः शुरू की, ‘आज अनमोल ने जो भी किया है। पूरा का पूरा अतीत एक बार उलट गया बेटा। हमने बहुत समय दिया है अनमोल को। सीमा को भी उतना समय कभी नहीं दिया। शायद अनमोल की बातें समझने में हमसे भूल हो गई, शायद अनमोल की बातें समझने में हमसे भूल हो गई। समय के अदृश्य लेखे-जोखे को कौन देख पाया है बेटा? आज मैं और पापा तुम्हारे अपराधी हो गए हैं। तुम्हारे हर निर्णय में हम दोनों साथ हैं बेटा। बस निकिता को हमसे दूर मत करना। हमारे घर का इकलौता बच्चा है यह।”
अपनी बात बोलकर माँ ने नीता का ज्यों ही हाथ पकड़ा दोनों की आँखों से आँसू उतर पड़े। नीता माँ की पीड़ा नहीं समझती तो कौन समझता! अब वह भी तो एक बेटी की माँ थी। इतनी बड़ी औलाद को कुछ भी समझाना सच में बहुत टेढ़ी खीर था। बाहर वालों के लिए अनमोल बहुत समझदार था।
अब तो अस्पताल के कमरे में बैठे हुए काफ़ी घंटे गुज़र चुके थे। तभी अस्पताल के स्टाफ़ ने आकर बताया कि हम मरीज़ से मिल सकते हैं। सभी अतीत से निकल कर वर्तमान में आ गये। माँ ने नीता को हिम्मत दी और कहा, “चलो अनमोल को देख आएँ।”
आई.सी.यू. के कमरे में अनमोल ने सभी को खड़े देखा, पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। बस शून्य में ताकता रहा। अगले दिन उसको भी कमरे में शिफ़्ट कर दिया गया। माँ और नीता ने ज्यों ही कुछ बोलने का सोचा वह ख़ुद ही एक दृष्टि सोई हुई निकिता पर डालकर बोला, “बहुत सोच चुका हूँ, आप सबके मन के हिसाब से। मुझे अब कुछ भी नहीं सुनना। अब मैं और घुट-घुट कर नहीं मर सकता। माँ-पापा आप दोनों का दबाव . . . फिर नीता का . . . बस अब और नहीं। मैं अपना सेक्स चेंज करवा रहा हूँ। मुझे नीता से डिवोर्स लेना है। आप दोनों चाहें तो नीता को अपने साथ रख सकते है। मैं अब अमित के साथ रहूँगा।” अपनी बात बोलकर अनमोल करवट लेकर लेट गया।
आज पहली बार नीता ने पापा की आँखों में आँसू देखे। अनमोल अपने साथ अमित को देश-विदेश में होने वाली हर मीटिंग में लेकर जाता था। आज तीनों के सामने यह भेद भी खुल गया था।
पापा ने नीता और माँ से कहा, “पैंतालीस साल के आदमी को अब कोई नहीं समझा पाएगा। ऐसा आदमी जिसके पास बहुतायत में रुपया हो, वह अपनी मनमानी के लिए कुछ ज़्यादा ही स्वछन्द हो जाता है। अनमोल तुम्हारा जो मन आए करो। बस एक बात ध्यान रखना, हम नीता और निकिता के साथ हैं। हमें भी अब कहीं न कहीं तुम्हारे लिए सोचने की आदतों पर पूर्ण विराम लगाना ही होगा।”
आख़िरी वाक्य बोलते ही पापा की आवाज़ भर्रा गई, और वह कमरे से बाहर निकल गए। उस दिन के बाद न तो पापा अस्पताल आए . . . न माँ को उन्होंने आने दिया। माँ और पापा इतना कुछ बोल चुके थे कि नीता को अब कुछ भी बोलने की ज़रूरत नहीं थी। गुज़रे हुए सालों में वह इतना आहत हो चुकी थी कि वह भी अब इस पीड़ा से निकलना चाहती थी।
अनमोल का यह फ़ैसला भी शायद अपनी मनमानी करवाने के लिए था, क्योंकि अनमोल के अस्पताल में भर्ती होने के बाद से ही अमित आई.सी.यू. के बाहर बैठा था। चूँकि नीता की उससे कभी बात नहीं हुई थी . . . उसने अमित की उपस्थिति पर कोई ध्यान नहीं दिया। दोनों के बीच औपचारिक-सी नमस्ते हुई थी बस। होश में आते ही अनमोल ने घरवालों की बजाय अमित को ही सबसे पहले मिलने के लिए बुलवाया। नीता को अब किसी भी बात से कोई चोट नहीं पहुँच रही थी।
नीता से डिवोर्स लेने के लिए अनमोल ने कंपनसेशन में दस करोड़ रुपया दिया और काफ़ी रुपया माँ-पापा के भी बैंक में ट्रांसफ़र किया ताकि उनको भविष्य में कोई दिक़्क़त नहीं आए।
इन सभी औपचारिकताओं को पूरा करने में लगभग एक साल लगा। इस बीच अनमोल ने अपना सेक्स भी बदलवा लिया। जब वह कोर्ट में आया तो सलवार-सूट पहना हुआ था। उसके साथ अमित भी था। अब अनमोल ने अपना नाम अनन्या कर लिया था।
अनमोल को इस रूप में देखकर नीता व माँ-पापा की आँखें भाव-शून्य हो गईं। अस्पताल से डिस्चार्ज होने के दो दिन बाद ही अनमोल ने घर छोड़ दिया था। निकिता ने जब अपने पापा को एक लंबे अरसे तक नहीं देखा, तो उसने नीता के आगे प्रश्नों के अंबार लगा दिए थे।
आख़िरी बार अनमोल जब घर सबसे मिलने घर आया तो उसने जीन्स और टॉप पहना हुआ था। निकिता अपने पापा के गले लगकर बोली, “पापा! आप कहाँ चले गए थे? . . . आई मिसस्ड यू अ लॉट . . . मुझे छोड़ कर मत जाइए कभी।”
निकिता की बात सुनकर अनमोल ने कहा, “अभी मुझे बहुत दूर जाना है बेटा। जब बड़ी हो जाओगी तब मिलूँगा।”
शायद निकिता से उसका मोह जुड़ा था। तभी उसने उसकी भावनाओं का ध्यान रखा। वह सलवार सूट या अन्य और कोई ड्रेस नहीं पहनकर आया।
नीता भी अनमोल के साथ अपनी जीवन यात्रा पर पूर्ण-विराम लगा चुकी थी। यह सच है सभी को अपनी तरह जीने का अधिकार है, पर किसी को किसी की ज़िन्दगी के साथ खिलवाड़ करने का भी अधिकार नहीं है। भविष्य के बारे में बहुत सोचकर निर्णय लेना भी किसी के बस में नहीं होता, और वक़्त स्वीकारोक्ति के अलावा विकल्प नहीं देता।
नीता से गले मिलते समय अनमोल ने उससे कहा, “अच्छी पत्नी थी तुम। बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी सौंप कर जा रहा हूँ। मुझे माफ़ कर सको तो माफ़ कर देना।”
नीता के पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं था। जिस व्यक्ति के गले लगकर उसने अपनी ज़िन्दगी शुरू की थी, यह उसका आख़िरी स्पर्श था। जाने से पहले माँ-पापा को गले लगाते समय अनमोल बोला, “आप में से किसी को भी जीवन में रुपयों पैसों की ज़रूरत हो, मुझे फोन कर देना। ट्रांसफ़र कर दूँगा। माँ! आपका बेटा बनकर नहीं रह पाया। बेटी के रूप में स्वीकार कर सको तो मिलने ज़रूर आऊँगा। आप लोगों के साथ रहा तो आप दोनों को हर रोज़ पीड़ा होगी। मैं बस यही नहीं चाहता।”
माँ-पापा का घर छोड़ते समय अनमोल फूट-फूटकर रोने लगा था।
अब नीता भी जल्द से जल्द निकिता को इस माहौल से दूर, हिंदुस्तान के बाहर ले जाना चाहती थी। नीता हाल-फिलहाल निकिता के सभी प्रश्नों से बचना चाहती थी। सिंगापुर की टिकट करवाते समय निकिता ने नीता से पूछा, “माँ! हम सिंगापुर क्यों जा रहे हैं?”
नीता ने उससे सिर्फ़ इतना ही कहा, “तुम्हारी बेटर एजुकेशन के लिए हम बाहर जा रहे हैं। जब बड़ी हो जाओगी, सब बताऊँगी। अभी बहुत छोटी हो। सभी बातें तुम्हारी समझ नहीं आयेंगी, और मैं नहीं चाहती कि तुम कुछ भी आधा-अधूरा समझों। तुम्हारे बाबा-दादी हमारे इस निर्णय में साथ हैं। उन्हें हमेशा बहुत प्यार करना।”
निकिता ने फिर अपनी माँ से पूछा, “और पापा, उनके लिए क्यों कुछ नहीं बोलती आप? मैं नहीं रह सकती पापा के बिना। क्या आप पापा को छोड़कर जाना चाहती हैं? या पापा आपको छोड़ना चाहते हैं? पापा और बाबा-दादी हमारे साथ क्यों नहीं जा रहे?”
“अभी इतने सारे प्रश्न मत पूछो निकिता बेटा। मैं जवाब नहीं दे पाऊँगी। बस यह समझ लो तुम्हारे पापा हमारे साथ नहीं रहना चाहते। तुम्हारे बाबा और दादी के साथ भी नहीं।”
घरवालों के काफ़ी प्रश्नों के उत्तर अनमोल देकर गया था, पर हरेक के कुछ न कुछ प्रश्न अनुत्तरित ही रहे। जीवन का लेखा-जोखा ही कुछ ऐसा है। नन्ही निकिता के तो सभी प्रश्न अनुत्तरित थे, और उसको उत्तरों जानने के लिए एक लंबी उम्र की यात्रा तय करनी थी।
नीता अपनी बेटी को कुछ सालों के लिए उस माहौल से दूर ले जाकर बड़ा करना चाहती थी, ताकि वह सामान्य जीवन जी सके, और किन्हीं उलट विचारों में न उलझ जाए।
4 टिप्पणियाँ
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सरसजी बहुत बहुत शुक्रिया। आपको कहानी अच्छी लगी। ????????
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एक बहुत ही ज़रूरी विषय पर आपने कलम चलायी। एक सुघड परिपक्व कहानी के लिये बहुत बहुत बधाई प्रगति जी।
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बहुत आभार भावना जी
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बेहतरीन मार्मिक कहानी